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परिचय –
मूली जल्दी और आसानी से तैयार होने वाली सब्जी है। यह 35-50 दिन में सब्जी-सलाद योग्य हो जाती है। मूली की खेती से बहुत ही कम समय में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। मूली ठंड के मौसम की फसल है और इसकी खेती मुख्य रूप से रबी के मौसम में की जाती है। यूरोपियन.रैपिड रैड व्हाइट टिप्ड किस्में से 80-100 क्विंटल और एशियाटिक किस्मों से 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिल जाती है।
मूली खाने से स्वास्थ्य में फायदे –
बढ़ती सर्दी में ब्लड प्रेशर त्वचा और डाइजेस्टिव सिस्टम से लेकर इम्यून सिस्टम तक के लिए भी मूली जरूरी है। मूली को परांठे और सलाद के रूप में खा सकते हैं या अचार के रूप में भी खा सकते हैं। मूली में एंटी कैंसर्स गुण होते हैं मौजूद और एंटी.डायबिटिक गुण इम्यून प्रतिक्रिया को ट्रिगर करते हैं। ग्लूकोज को बढ़ाते हैं और ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करते हैं। मूली में एडिपोनेक्टिन एक हार्मोन है जो ब्लड शुगर लेवल को विनियमित करने के लिए जिम्मेदार है। इसमें फाइबर से भरपूर होती है जो पाचन संबंधी समस्याओं में मदद करती है। यदि आपके पास प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में मूली का सलाद है तो आपका मल त्याग सुचारू तथा इसके सेवन से आपको कब्ज नहीं होगी। एंटीऑक्सीडेंट और कैल्शियम और पोटेशियम जैसे मिनरल्स से भरपूर होती है। यह हाई ब्लड प्रेशर को कम करने और हार्ट रोग के जोखिम को कम करने में मदद करते हैं।
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भूमि एवं जलवायु –
मूली को ठण्डी जलवायु की आवश्यकता होती है। वैसे मूली वर्ष भर उगाई जा सकती है लेकिन इसकी अच्छी जड़ें बनने, सुवास और स्वाद के लिए 10-15 डि.स तापमान उपयुक्त रहता है तथा वानस्पतिक वृद्धि के लिए 20-30 डिसें. तापक्रम उपयुक्त माना जाता है। मूली सभी प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती है लेकिन बलुई, दोमट और जीवांश युक्त भूमि जिसमें उचित जल निकास की व्यवस्था तथा पी. एच. मान 5.5-6.8 हो सर्वोत्तम है।
उन्नतशील किस्मे –
विभिन्न प्रदेषों की भूमि, जलवायु आदि को ध्यान में रखते हुए कृषि विभाग एवं अनुसंधान केन्द्रों द्वारा अनुमोदित आलू की उन्नत प्रजातियों का चयन करें। कुछ प्रजातियां निम्न प्रकार हैं।
ओपन पौलिनेटेड-
पूसा चैतकी, पूसा हिमानी, जापानी व्हाइट, काशी श्वेता आदि।
एशियाटिक –
पंजाब सफेद, पंजाब अगेती, पंजाब पसंद
यूरोपियन-
रैपिड रैड व्हाइट टिप्ड
बुआई का समय व बीज मात्रा –
मूली की बुआई जड़ों व पत्तों के लिए दिये गये विवरण के अनुसार वर्ष भर की जा सकती है लेकिन मैदानी क्षेत्रों में सितबंर से जनवरी माह तक बिजाई करना लाभकारी रहता है। एक हेक्टे. क्षेत्र में बुआई के लिए 6-8 कि.ग्रा बीज पर्याप्त रहता है।
बुआई का तरीका –
खेत की तैयारी करने के बाद बुआई हेतु छोटी.छोटी समतल क्यारियों या मेंढ़ों पर बिजाई करनी चाहिए। मेढ़ की ऊँचाई 20-25 सेमी. और दो मेंढ़ों के बीज का फासला 20-30 सेमी. रखना चाहिए। इन मेंढ़ों पर बीज की बुआई 5-8 सेमी. की दूरी तथा 1.5-3 सेमी. की गहराई में करनी चाहिए। उचित नमी होने पर बीज 4-5 दिन बाद अंकुरित हो जाता है।
सिंचाई –
उचित अंकुरण, अच्छी बढ़वार एवं जड़ों के उत्तम विकास हेतु खेत की सिंचाई बिजाई के तुरन्त बाद या तीसरे दिन अवश्य करनी चाहिए। इसके उपरान्त नमी बनाए रखने के लिए 10-15 दिन के उपरांत सिंचाई करते रहना चाहिए।
खाद एवं जैविक उवर्रक –
मूली कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली फसल है। इसके लिए 100-120 कुन्टल सड़ी गोबर की खाद अथवा 50-60 कुन्टल नादेप कम्पोस्ट या 25-30 कुन्टल वर्मी कम्पोस्ट प्रति हेक्टे. की दर से खेत तैयार करते समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए।
अजेटोबैक्टर/एजोस्पोरिलम/पी.एस.बी./पोटाश को क्रियाशील करने वाला जैव उर्वरक 3-5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. की दर से पूरक तत्वों के रूप में भूमि में बुआई पूर्व या निराई.गुड़ाई के समय प्रयोग करें।
भूमि में सिंचाई के साथ जीवामृत या वेस्ट डिकम्पोजर घोल 500 ली./ हेक्टे. का 2-3 बार प्रयोग करें।
छटाई, निकाई-गुड़ाई एवं खरपतवार प्रबंधन –
पहली निराई करने के बाद फालतू पौधों को निकाल दें ताकि पौधे से पौधे की दूरी 8.10 सेंमी. रखी जा सके। दूसरी गुडाई बुआई के 20-25 दिन बाद करें तथा 8-10 कुन्टल वमी.कम्पोस्ट अथवा बारीक सडी़ गोबर की खाद मिलाकर मिट्टी चढ़ा दें। इससे जड़ें चमकदार तथा लम्बी बनती हैं। मूली की जड़ों की खुदाई करने से पहले खेत में पानी लगाना चाहिए। इससे जडा़ें को उखाडऩे में आसानी होती है, जड़ें ताजी बनी रहती हैं और गर्मियों में मूली की जड़ों में तीखापन कम हो जाता है।
कीट प्रबंधन –
माहू/जैसिड/सफेद मख्खी. ये कीट मूली की पत्तियों का रस चूसकर उसे हानि पहुँचाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए अगेती बुआई करें। माहू लगने की संभावनाओं को देखते हुए पीले चिपचिपे ट्रैप लगाएं। सुरक्षात्मक तौर पर फसल पर तरल वनस्पति कीटनाशक (1ः10 ली. पानी) या लहसुन व हरी मिर्च का सत (10 प्रतिशत) या नीम का तेल (3 प्रतिशत) का 15 दिन के अन्तर में 2 छिड़काव करें। अधिक प्रकोप होने पर वर्टिसिलियम/मैटाराइजियम (5.10 ग्रा./ली. पानी) का छिड़काव करें।
मस्टर्ड सा फ्लाई-
इसके काले रंग के लारवा पत्तियों को खाकर उसमें छेद बना देते हैं। अधिक प्रकोप होने पर पूरी पत्ती एवं पौधों को नष्ट कर देते हैं।
प्रबंधन-
- गर्मियों की गहरी जुताई, अगेती बिजाई, समय पर खरपतवार एवं परपोषी पौधों का निष्कासन।
- तरल कीटनाशक एवं अग्नि अस्त्र का 1.2 छिड़काव करें।
- लकड़ी की राख (20 ली. गौ.मूत्र $ 100 कि.ग्रा. राख) का पौधों पर बुरकाव करें।
रोग प्रबंधन –
आर्द्र गलन,जड़ गलन एवं पत्ती का झुलसा इन रोगों की रोकथाम हेतु-
- ट्राइकोडर्मा 5 कि.ग्रा. को गोबर की खाद में मिलाकर बुआई पूर्व खेत में मिलाकर भूमि शोधन।
- स्वस्थ बीज का चुनाव तथा बीजामृत घोल या ट्राइकोडर्मा (5 ग्रा. प्रति 100 ग्रा. बीज) द्वारा बीज शोधन।
- खरपतवार एवं वैकल्पिक पौधों का निष्कासन, उचित फासला रखना।
- 8-10 दिन पुरानी 10 लीटर खट्टी छाछ/मट्ठा (छाछ) में 20 ग्राम हल्दी मिलाकर 200 लीटर पानी में घोल कर 10 दिन के अन्तराल पर 2.3 छिड़काव।
बीज उत्पादन –
मूली एक पर परागित फसल है जिसमें कीडों द्वारा परागण होता है। इसलिए मूली की दो किस्मों के बीच की 1000 मीटर पृथक्करण दूरी रखनी चाहिए ताकि अनुवांशिक शुद्ध बीज प्राप्त किया जा सके। बीज उत्पादन हेतु नवम्बर माह के मध्य में मुख्य फसल से शुद्ध किस्म की जडें उखाड़ ली जाती हैं और जड़ों के नीचे व ऊपर का लगभग दो तिहाई भाग काटकर अलग कर देते हैं। इसके बाद तैयार खेत में गोबर की सड़ी खाद मिलाकर मूली की काटी गई जड़ों को पुनः 60 सेंमी. ग 60 सेमी. की दूरी पर रोपित कर दिया जाता है। जड़ों को खेत में लगाने के बाद खेत में हल्की सिंचाई कर देनी चिहए और आवश्यकतानुसार 8-10 दिन के अन्तर से सिंचाई करते रहना चाहिए। दिसंबर.जनवरी माह में मूली पर माह कीट का प्रकोप हो सकता है। अतः माहू कीट की रोकथाम हेतु 10-12 दिन के अन्तराल पर ब्रह्मास्त्र/अग्नि अस्त्र या नीम-गुठली पाउडर आदि के 5 प्रतिशत घोल का एक से दो बार छिड़क़ाव करना चाहिए। पचंगव्य के 3 प्रतिशत घोल का फूल आने से पहले एक दो बार छिड़काव करने पर फसल में कीड़ों के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है। जनवरी माह में पौधों पर फूल आने लगते हैं। फरवरी माह में मूली में फलियां बनकर मार्च के अन्त अथवा अप्रैल में बीज तैयार हो जाता है। पकी हुईं फलियों को पक्के फर्श या तिरपाल पर धूप में अच्छी प्रकार सुखाकर फलियों को लकड़ी के डण्डे से पीटकर बीज अलग कर लेना चाहिए। बीज को अच्छी प्रकार से साफ करके धूप में इतना सुखाएं कि बीज में आठ प्रतिशत नमी बनी रहे। इसके बाद बीज का शोधन करके कांच के डिब्बों में सील बन्द कर सूखे स्थान पर सुरक्षित रख देना चाहिए।
बाजार से मुनाफा –
उत्पाद बेचने से पहले किसान फसल का मूल्य अवश्य पता कर ले सामान्य तौर पर मूली 600 से 1800 रूपये प्रति कुंतल की दर से बिक जाती है। यदि सामान्य रूप से खेत से 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर भी उत्पादन निकलता है तो कम से कम मूल्य होने पर भी किसान 1.5 लाख रूपये प्रति हेक्टेयर तक आसानी से कमा सकता है