फव्वारा सिंचाई विधि फसलों के लिये लाभकारी। Sprnkler irrigation method is beneficial for crops

परिचय-

खेतीबाड़ी के लिए सिंचाई बहुत ही आवश्यक है बगैर सिंचाई के कृषि से एक भी दाना उपजाना संभव नहीं है। जिन क्षेत्रां में नदियों-नहरों, भूमिगत नलकूपों की अच्छी व्यवस्था है वहां तो सिंचाई फसलों, सब्जियों व बागवानी में आराम से होती है परन्तु जिन क्षेत्रों में भूमिगत जल दोहन की समस्या है तथा नदी या नहरों की व्यवस्था नहीं है तथा ऊँचे-नीचे क्षेत्रों पर सिंचाई करना एक कठिन कार्य हो जाता है। ऐसे क्षेत्रों के लिए फव्वारा सिंचाई प्रणाली और ड्रिप सिंचाई प्रणाली एक कारगर पद्धति है। सिंचाई की इन पद्धतियों से कम पानी में अच्छी उपज ली जा सकती है। फव्वारे छोटे से बड़े क्षेत्रों जैसे गेहूं, चना आदि के साथ सब्जियों, कपास, मूंगफली, तम्बाकूं सोयाबीन, चाय-कॉफी व अन्य चारा फसलों को कुशलता से कवरेज प्रदान करते हैं। यह सभी प्रकार की सिंचाई वाली मिट्टियों के लिये अनुकूल है क्यांकि फववारे विस्तृत विसर्जन क्षमता पर निर्भर रहता है। पानी का छिडकाव दबाव द्वारा छोटी नोजल या ओरीफिस, पम्पों द्वारा धीमे-धीमे वर्षा की जाती है। इसलिए खेत में न तो कहीं पर पानी का जमाव होता है और न ही मिट्टी दबती है। इससे जमीन और हवा का सबसे सही अनुपात बना रहता है और बीजों में अकुंरण भी जल्दी निकलते है। यह एक बहुत ही प्रचलित व सरल विधि है जिसके द्वारा पानी की 30-50 प्रतिशत तक बचत की जा सकती है। इस विधि से सिंचाई करने पर पौधों की देखरेख पर खर्च कम लगता है तथा फसलों में रोग भी कम लगते हैं। फव्वारा सिंचाई एक ऐसी पद्धति है जो गिरते भू-जल स्तर को बचाने एवं अधिक जल दोहन को रोकते हुये पानी को हवा में फसलों, सब्जियों एवं बागवानी क्षेत्रों में पानी भूमि की सतह पर वर्षा के समान बौछार करके फसलों पर गिरता है। यह विधि बलुई मिट्टी, ऊंची-नीची जमीन तथा जहां पर पानी कम उपलब्ध है वहां पर प्रयोग की जाती है। इस विधि के द्वारा गेहूँ, कपास, मूंगफली, तम्बाकू तथा अन्य फसलों में सिंचाई की जा सकती है। इस विधि के द्वारा सिंचाई करने पर पौधों की देखरेख पर खर्च कम लगता है तथा रोग भी कम लगते हैं।

Sprnkler irrigation method

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फव्वारा और सतही सिंचाई –

  • सतही सिंचाई की अपेक्षा छिड़काव सिंचाई द्वारा जल प्रबन्धन आसान होता है।
  • फव्वारा सिंचाई में उत्पादन हेतु लगभग 10 प्रतिशत अधिक क्षेत्रफल उपलब्ध होता है। इसमें नालियों की जरूरत नहीं होती।
  • फव्वारा सिंचाई विधि में पानी का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा पौधों द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है, जबकि पारम्परिक विधि में सिर्फ 30 प्रतिशत पानी का ही उपयोग होता है।
  • इस विधि में सिंचाई के पानी के साथ घुलनशील उर्वरक, कीटनाशी तथा जीवनाशी या खरपतवारनाशी दवाओं का भी प्रयोग आसानी से किया जा सकता है।
  • पाला पड़ने से पहले बौछारी सिंचाई पद्धति से सिंचाई करने पर तापक्रम बढ़ जाने से फसल का पाले से नुकसान नहीं होता है।
  • पानी की कमी सीमित पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में दुगना से तीन गुना क्षेत्रफल सतही सिंचाई की अपेक्षा किया जा सकता है।
  • जिससे मिट्टी की पानी सोखने की दर की अपेक्षा छिड़काव कम होने से पानी के बहने से हानि नहीं होती है।

जिन जगहों पर भूमि ऊंचीण्नीची रहती है वहॉ पर सतही सिंचाई संभव नहीं हो पाती उन जगहों पर बौछारी सिंचाई वरदान साबित होती है।बौछारी सिंचाई बलुई मिट्टी अधिक ढाल वाली तथा ऊंची-नीची जगहों के लिए सर्वोत्तम विधि है।

 

  • Sprnkler Irrigation Method

फव्वारा सिंचाई के फायदे –

  • सिंचाई क परम्परागत तरीकों के मुकाबले इस विधि से सिंचाई करने पर मात्र 50-70 प्रतिशत जल की आवश्यकता होती है।
  • जमीन को समतल करने की जरूरत नहीं होती।
  • ऊंचे-नीचे और मुश्किल माने जाने वाले भू-भागों में भी खेती की जा सकती है।
  • बजाय इस बात के इंतजार में बैठे रहने के कि स्वाभाविक वर्षा या फिर सतही सिंचाई के बाद जमीन ठीक से नम हो तो जुताई की जाये, फव्वारा पद्धति से उचित समय पर जुताई और पौध रोपाई का काम किया जा सकता है।
  • पाले और अत्यधिक गर्मी से फसल की गुणवत्ता कम हो जाती है। इस सिंचाई से फसल को बचाया जा सकता है।
  • पौधों की रक्षा पर होने वाला खर्च कम हो जाता है क्योंकि कीड़े-मकोड़े और बीमारियां जैसी समस्याऐं कम पैदा होती हैं। छिड़काव की पद्धति के जरिए कीटनाशकों अथवा पौधों को पौष्टिकता देने वाली दवायें बेहतर ढंग से छिड़की जा सकती है।
  • फव्वारा द्वारा की जाने वाली सिंचाई का लाभ सभी प्रकार की किस्मों में होता है।
  • नालियां या बांध बनाने की जरूरत नहीं पड़ती जिससे खेती के लिए ज्यादा जमीन उपलब्ध हो जाती है।
  • इस विधि से घुलनशील खाद भी दी जा सकती है, जिससे खाद की बचत होती है

फव्वारा सिंचाई की सीमाएं –

  • पानी साफ हो, उसमें रेत, कूड़ा करकट न हो और पानी खारा नहीं होना चाहिए।
  • इस पद्धति को चलाने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
  • चिकनी मिट्टी और गर्म हवा वाले क्षेत्रों में इस पद्धति के द्वारा सिंचाई नहीं की जा सकती है।
  • यह विधि सभी प्रकार की फसलों कपास, मूंगफली, तम्बांकू, कॉफी, चाय, इलायची, गेंहूं, जौ, चना, आदि फसलों के लिए यह विधि अधिक लाभदायक है।
  • यह विधि बलुई मिट्टी, उथली मिट्टी ऊंची-नीची जमीन, मिट्टी के कटाव की समस्या वाली जमीन तथा जहां पानी की उपलब्धता कम हो, वहां अधिक उपयोगी है।
  • नालियों या बांध बनाने की जरूरत नहीं पड़ती जिससे खेती के लिए ज्यादा जमीन उपलब्ध हो जाती है।
  • अधिक हवा होने पर पानी का तिरण समान नहीं रह पाता है।
  • पके हुये फलों को फुहारे से बचाना चाहिए।
  • पद्धति के सही उपयोग के लिए लगातार जलापूर्ति की आवश्यकता होती है।
  • रखरखाव एवं सावधानियाँ –

बौछारी सिंचाई के प्रयोग के समय एवं प्रयोग के बाद परीक्षण कर लेना चाहिए और कुछ मुख्य सावधानियाँ रखने से सेट अच्छी तरह चलता है। जैसे प्रयोग होने वाला सिंचाई जल स्वच्छ तथा बालू एवं अत्यधिक मात्रा घुलनशील तत्वों से युक्त होना चाहिए तथा उर्वरकोंए फफूंदी खरपतवार नाशी आदि दवाओं के प्रयोग के पश्चात सम्पूर्ण प्रणाली को स्वच्छ पानी से सफाई कर लेना चाहिए।
प्लास्टिक वाशरों को आवश्यकतानुसार निरीक्षण करते रहना चाहिए और बदलते रहना चाहिए। रबर सील को साफ रखना चाहिए तथा प्रयोग के बाद अन्य फिटिंग भागों को अलग कर साफ करने के उपरान्त शुष्क स्थान पर भण्डारित करना चाहिए।

सिंचाई पद्धति की सामान्य नियम –

  • पानी का स्रोत सिंचित क्षेत्रफल के मध्य में स्थित होनी चाहिए जिससे कि कम से कम पानी खर्च हो।
  • ढलाऊ भूमि पर मुख्य नाली ढलान की दिशा में स्थित होनी चाहिए।
  • पद्धति की अभिकल्पना और रूप रेखा इस प्रकार होनी चाहिए जिससे कि दूसरे कृषि कार्यों में बाधा न पडे़।
  • असमतल भूमि में अभिकल्पित जल वितरण परे क्षेत्रफल पर समान रहना चाहिए, अन्यथा फसल वृद्धि में गिरावट आ जायेगी।