गेहूँ की जैविक खेती कैसे करें? जाने पैदावार और देखभाल

परिचय –

गेहूँ रबी मौसम में उगाई जाने वाली अनाज की मुख्य फसल है। वर्षा, भूमि की नमी तथा सिंचाई के साधनों के अनुसार इसका क्षेत्रफल घटता.बढ़ता रहता है। गेहूं का उत्पादन एक एकड़ में 18 से 20 कुंतल होता है। एमएसपी केंद्र सरकार के 1840 रुपए और राज्‍य सरकार के 160 रुपए मिलाकर यह 2 हजार रुपए होते हैं

भूमि एवं जलवायु –

गेहूँ प्रायः सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है लेकिन मध्यम दोमट भूमि जिसमें पानी का निकास हो इसके लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। अम्लीय तथा क्षारीय भूमि में इसकी बुआई नहीं करनी चाहिए। यह सर्दी के मौसम में उगाए जाने वाली फसल है।

Organic Wheat Farming

Organic Wheat Farming

किस्मों का चयन -गेहूँ की जैविक खेती कैसे करें? जाने पैदावार और देखभाल

भूमि, जलवायु तथा सिंचाई के साधनों के अनुसार क्षेत्रों में अलग.अलग प्रजातियाँ बोई जाती हैं। अतः कृषि अनुसंधान केन्द्र द्वारा संस्तुत उन्नत किस्मों का चयन करें।

सिंचित क्षेत्र में गेहूँ की प्रचलित उन्नत किस्में निम्न प्रकार हैं –

एच.डी. 2851 (पूसा विशेष), एच.डी. 4713, डब्लू.आर. 544 (पूसा गोल्ड), एच.डी. 2894 (2008), एच.डी. 4713, पी.बी.डब्लू. 502, यू.पी. 2338, डब्लू.एच. 542, पी.बी.डब्लू. 343, एच.डी. 2967।

खेत की तैयारी –

खरीफ फसलों की कटाई के तुरंत बाद गेहूँ की बुआई हेतु खेत की तैयारी शुरु कर देनी चाहिए। खेत को भली प्रकार तैयार करने हेतु एक गहरी जुताई तथा दो.तीन बार हैरो द्वारा जुताई करें तथा रोटावेटर द्वारा एक जुताई करके फसल अवशेषों को छोटे.छोटे टुकड़ों में काटकर मिट्टी में मिला लें। मिट्टी को भुरभुरी बनाने तथा नमी को संरक्षित करने हेतु दो.तीन बार पाटा लगाना चाहिए।

भूमि उपचार –

भूमिगत हानिकारक कीट जैसे.दीमक, सफेद गिडार (व्हाइट ग्रब), निमेटोड आदि की रोकथाम के लिए 5.6 क्विंटल प्रति हेक्टे. नीम की खली या 3.4 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. बिवेरिया बेसियाना को 150.200 कि.ग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर बुआई पूर्व जुताई के समय खेत में मिला लें। भूमिजनित 30 फफूंद की रोकथाम हेतु 4.5 कि.ग्रा. ट्राईकोडर्मा पाउडर को 150.200 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर बुआई पूर्व खेत में प्रयोग करें।

बुआई का समय एवं विधि –

विभिन्न क्षेत्रों में भूमि, जलवायु, सिंचाई के साधनों तथा प्रजातियों के अनुसार गेहूँ की बुआई अलग.अलग समय पर की जाती है। अतः राजकीय कृषि विभाग, कृषि विश्वविद्यालय या कृषि अनुसंधान केन्द्र की सिफारिश अनुसार बुआई करनी चाहिए। गेहूँ की बुआई समय से तथा पर्याप्त नमी होने पर करनी चाहिए। मैदानी क्षेत्रों में नवम्बर का दूसरा एवं तीसरा सप्ताह बुआई का उचित समय है। पछेती किस्मों की बुआई दिसम्बर के दूसरे.तीसरे सप्ताह तक कर देनी चाहिए। अधिक देर से बुआई करने से गेहूँ की पैदावार 4.5 कि्ंवटल प्रति एकड़ की दर से घटती है। बुआई सीडड्रिल या हल के पीछे कूण्डों में 18 से 20 सेंमी. की दूरी पर तथा 5 सेंमी. गहराई पर करनी चाहिए।

बीज दर तथा बीज उपचार –

समय से बुआई हेतु 100 कि.ग्रा. तथा देर से बुआई हेतु 120 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. प्रयोग करें।
बीज एवं भूमिजनित रोगों के जीवाणुओं से बचाव हेतु बुआई पूर्व बीज का जैविक उपचार करें। बीज को 10.12 घण्टे के लिए रात में पानी में भिगोएँ। सुबह पानी से निकालकर फर्श पर छाया में सुखाएंँ तत्पश्चात् बीज को अनुमोदित जैविक कीटनाशक, फफूंदनाशक एवं जैव उर्वरक से उपचारित करके 2.3 घण्टे बाद बिजाई करें।

बीज उपचार के तरीके निम्न प्रकार हैं-

बीजामृत/वेस्ट डिकम्पोजर द्वारा-

बीज को फर्श पर फैलाकर बीजामृत या वेस्ट डिकम्पोजर घोल को बीज पर छिड़कें तथा अच्छी प्रकार मिलाकर 2.3 घण्टे बाद बुआई करें।

ट्राइकोडर्मा विरिडी (जैव फफूंद) द्वारा-

बीज में 5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से ट्राइकोडर्मा पाउडर अच्छी तरह मिलाए तथा 2.3 घण्टे बाद बुआई करें।

जैव उर्वरक द्वारा-

जैव उर्वरक जैसे.अजेटोबैक्टर/एजोस्पोरिलम, फास्फेटिका आदि द्वारा 20 ग्राम. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीज का उपचार करें। इसके लिए जैव उर्वरक को गुड़ में मिलाकर घोल बनाए तथा बीज पर छिड़ककर अच्छी तरह मिलाएँ तथा 2.3 घण्टे बाद बुआई करें।

जैविक खाद एवं उर्वरक –

जैविक फसलों में पोषक तत्त्वों की आपूर्ति हेतु जैविक खाद/उर्वरक की मात्रा निर्धारित करना कठिन है क्योंकि किसान पोषण प्रबंधन हेतु अलग.अलग जैविक खादों/उवर्रकों का प्रयोग करता है तथा उनकी गुणवत्ता भी अलग.अलग होती है। इनका प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। पोषक तत्त्वों की पूर्ति करने हेतु खरीफ में दलहनी फसलें व हरी खाद का उपयोग किया जाना चाहिए। उपराक्त तत्त्वों की पूर्ति के लिए 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टे. की दर से सड़ी गोबर की खाद अथवा 100-125 कि्ंवटल कम्पोस्ट अथवा 40.50 कि्ंवटल वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग बुआई के पूर्व करें। इसके अतिरिक्त जैव उर्वरक. जैसे.एजेटोबैक्टर तथा पी.एस.बी. 4.5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. एवं जिंक घोलक 2.3 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. को 200 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर बुआई पूर्व प्रयोग करें। खड़ी फसल में 2-3 बार जीवामृत तथा वेस्ट डिकम्पोजर घोल 500 ली. प्रति हेक्टे. को सिंचाई के साथ प्रयोग करें। फसल के बाद की अवस्था में पोषक तत्त्वों की कमी होने पर तो 8-10 लीटर पंचगव्य या 25 लीटर गौ.मूत्र प्रति हेक्टे. छिड़काव करें।

सिंचाई प्रबन्धन –

सामान्यतः बौने गेहूँ की अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिये हल्की भिम में 5-6 सिंचाइयाँ निम्न अवस्थाओं में करनी चाहिए। इन अवस्थाओं पर जल की कमी का उपज पर भारी कुप्रभाव पड़ता है। सिंचाई हल्की तथा समय पर करें।

  • पहली सिंचाई : क्राउन रूट (ताजमूल ) अवस्था पर (बुआई के 22-24 दिन बाद)।
  • दूसरी सिंचाई : कल्ले निकलते समय (बुआई) के 44-46 दिन बाद)।
  • तीसरी सिंचाई : गाँठे बनते समय (बुआई के 64-66 दिन बाद)।
  • चौथी सिंचाई : पुष्पावस्था (बुआई के 84-86 दिन बाद)।
  • पाँचवीं सिंचाई : दुग्धावस्था (बुआई के 104-106 दिन बाद)
    छठवीं सिंचाई : दाना भरते समय (बुआई के 118-120 दिन बाद)

खरपतवार प्रबंधन –

गेहूँ में संकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसे.गेहूँ का मामा, गुल्ली.डण्डा व चौडी पत्ती वाले खरपतवार की रोकथाम हेतु पहली व दूसरी सिंचाई के बाद ओट आने पर निराई.गुड़ाई अवश्य करें।

कीट प्रबंधन-

गेहूँ के प्रमुख कीट दीमक, गुलाबी तनाभेदक एवं माहू हैं जिनकी रोकथाम के जैविक उपाय निम्न प्रकार हैंं.
दीमक/तनाभेदक.प्रायः हल्की भूमि व कम नमी की अवस्था में इसका प्रकोप अधिक होता है। इसकी रोकथाम हेतु खेत में फसलों के सूखे अवशेष नहीं रहने चाहिए। खेत में बराबर नमी बनी रहने पर दीमक का प्रकोप कम होता है। खेतों में कच्चे गोबर का प्रयोग न करके सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। बुआई से पूर्व नीम की खली 5.6 कि्ंव प्रति हेक्टे. या बिवेरिया/मैटाराइजियम 3.4 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. को गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करें।

माहू कीट –

मौसम अनुकूल होने पर गेहूँ की फसल का चैंपा/माहू कीट द्वारा नुकसान हो सकता है। इसकी रोकथाम हेतु कीट आने की प्रारंभिक अवस्था में नीमास्त्र या तरल कीटनाशी 10 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।

रोग प्रबंधन –

गेहूँ की फसल प्रायः भूरे.पीले रतुआ तथा झुलसे से प्रभावित होती है। काली गेरुई तना तथा पत्ती दोनों पर लगती है। भूरे एवं पीले रंग के गेरुई के धब्बे पत्तियों पर लगते हैं। झुलसा रोग में कुछ पीले व कुछ भूरापन लिए हुए अण्डाकार धब्बे शुरु में निचली पत्तियां में दिखाई देते हैं। बाद में ये धब्बे किनारों पर कत्थई भूरे रंग के तथा बीच में हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं।
इनकी रोकथाम हेतु रोग.प्रतिरोधी किस्मों की समय से बुआई करें तथा बुआई पूर्व बीजामृत या ट्राइकोडर्मा द्वारा बीज उपचार करें। छाछ, हल्दी व कॉपर से बनाए गए जैविक घोल का छिड़काव रोग आने की प्रारंभिक अवस्था में करें।

कटाई.मड़ाई –

फसल पकने के तुरंत बाद कटाई शुरू करें। जैविक एवं अजैविक फसलों की कटाई के लिए अलग.अलग यंत्रों का प्रयोग करें।
भण्डारण व्यवस्था
अनाज को अच्छी प्रकार सुखाकर एवं साफ करके धातु की बनी कोठियों में भण्डारित करें। जैविक उत्पाद की भण्डारण व्यवस्था अजैविक अनाज के भण्डारण से अलग रखें।

गेहूँ की जैविक खेती कैसे करें? जाने पैदावार और देखभाल