आलू की जैविक खेती करने का सही तरीका क्या है? जिससे कम लागत और ज्यादा मुनाफा मिलें

परिचय-

आलू भारत में उगाए जाने वाली मुख्य फसल है। जिससे कम समय में अन्य प्रमुख खाद्यान फसलों के मुकाबले प्रति इकाई अधिक उत्पादन मिलता है। आलू कम समय में अन्य प्रमुख खाद्यान फसलों के मुकाबले प्रति इकाई अधिक उत्पादन मिलता है।आलू एक शाकाहारी व मांसाहारी हर तरह के व्यंजन में इस्तेमाल किया जाता है। यह सबसे आम सब्जी है। आलू छिलके में जहां न्यूट्रियंट्स की मात्रा काफी ज्यादा होती है वहीं इसको पैदा करने में भी अधिक दवा या खाद की जरूरत नहीं पड़ती। चाहे इन्हें तल के खाओ या उबाल के या फिर बेक करके खाने में ये हमेशा स्वादिष्ट ही लगते हैं। प्रसंस्करण/चिप्स बनाने के लिए कुफरी चिपसोना एव कुफरी.2, आदि लेते है।
खेत की मिट्टी में  जैविक खाद जैसे वर्मी कम्पोस्ट सड़ी गोबर की खाद या सी.पी.पी. कम्पोस्ट एजोस्पाइरिलम एवं पी.एस.बी. डालेंगे तो आपके खेत का आलू हरा नहीं होगा। मीठा नहीं होगा उत्पादन अच्छा होगा और कीट और बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी ज्यादा रहेगी। इसलिए मिट्टी में जितना हो सके जैव उर्वरकों का प्रयोग करें। जिससे कम लागत और ज्यादा मुनाफा मिलेगा।

भूमि जलवायु एवं खेत की तैयारी –

आलू की अच्छी पैदावार लेने के लिये अच्छे जल-निकास वाली समतल एवं अधिक उपजाऊ बलुई दोमट एवं दोमट मृदासर्वोत्तम होती है। पहले 2-3 जुताई करके खेत को खाली छोड़ दें। आलू की अच्छी फसल लेने के लिये बोने से पहले पलेवा करना आवश्यक है। ओट आने पर आवश्यकतानुसार जुताई करें एवं पाटा चलाकर खेत को समतल कर लें।
आलू सर्दी के मौसम में कम समय में तैयार होने वाली फसल है। फसल की वृद्धि एवं विकास के लिए 15 से 25 डि.सें. तापमान उपयुक्त होता है। यह सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है परन्तु हल्की तथा बलुई तथा बलवार दोमट मिट्टी जिसमें पानी का निकास हो, इसके लिए अधिक उपयुक्त है। इसके लिए भूमि का पी. एच. मान 5.5 से 7 होना चाहिए।

Organic Potato Farming

प्रजातियां –

विभिन्न प्रदशों की भूमि, प्रचलित प्रजातियां, जलवायु आदि को ध्यान में रखते हुए विभाग एवं अनुसंधान केन्द्रों द्वारा अनुमोदित आलू की उन्नत प्रजातियों का चयन करें। पकने की अवधि के अनुसार कुछ प्रमुख प्रजातियों निम्न प्रकार हैं.

  • अगेती प्रजाति.कुफरी चन्द्रमुखी, कुफरी पुखराज, कुफरी अशोका, कुफरी जवाहर, आदि।
  • मध्यम प्रजाति.कुफरी ज्योती, कुफरी बहार, कुफरी लालिमा, कुफरी अरुण, कुफरी सतलुज, आदि।
  • पछेती प्रजाति.कुफरी सफेद, कुफरी सिंदूरी, कुफरी देवा, कुफरी स्वर्णा, कुफरी बादशाह, आदि।

खाद एवं उर्वरक –

आलू की अच्छी पैदावार लेने के लिए खरीफ में हरी खाद/दलहनी फसलों का फसल चक्र में समावेश करना चाहिए। पोषण प्रबंधन हेतु 175-200 कुन्टल सड़ी गोबर की खाद/कम्पोस्ट, 70-80 कुन्टल कम्पोस्ट खाद को अन्तिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए।

निराई.गुड़ाई व मिट्टी चढ़ाते समय (बुआई के 30.35 दिन बाद) 1.5-2.0 कुन्टल सी.पी.पी. कम्पोस्ट का प्रयोग करें। जैव उर्वरक, एजोस्पाइरिलम एवं पी.एस.बी. को 3-5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. की दर से गोबर की खाद में मिलाकर बुआई पूर्व खेत में मिलाएं। खड़ी फसल में 10-15 कि.ग्रा. सी.पी.पी. खाद को 250-300 ली. पानी में मिलाकर दो बार छिड़काव करें। सिंचाई के साथ जीवामृत/वेस्ट डिकम्पोजर घोल (500 ली./हेक्टे.) का प्रयोग करें।

बुआई का समय –

समय के अनुसार फसल की बुआई करनी चाहिए। मैदानी क्षेत्रों में आलू की अगेती फसल की बुआई 25 सितम्बर के आसपास करनी चाहिए। इस फसल की खुदाई बुआई के 80-90 दिन बाद कर लें। मुख्य फसल की बुआई के लिये मध्य अक्टूबर से नवम्बर के प्रथम सप्ताह का समय उपयुक्त रहता है।

बीज की मात्रा –

आलू का रोग रहित, शुद्ध जैविक प्रमाणित बीज हमेशा विश्वसनीय स्रोतों, विशेषकर सरकारी संस्थान/राज्य बीजनिगम या बीज उत्पादन एजेन्सी से ही प्राप्त करें। खेत में बुआई के लिये लगभग 40-50 ग्राम वजन वाले अच्छे अंकुरित बीज का प्रयोग करें। आलू की एक हेक्टे. क्षेत्र में 20-25 क्विंटल (15 ग्राम वजन वाले) या 25-30 क्विंटल (30 ग्राम भार वाले) या 35.40 क्विंटल (45 ग्राम भार वाले) बीज पर्याप्त होता है।

बीज शोधन –

आलू की फसल को भूमि जनित रोगों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए बुआई से पूर्व बीज को बीजामृत/वेस्ट डिकम्पोजर अथवा ट्राईकोडर्मा/स्यूडोमोनास के 5 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक भिगोकर उपचारित करें। बीज को छाया में सुखायें एवं खेत में लगायें। बीज उपचार हेतु पंचगव्य का प्रयोग किया जा सकता है।

बुआई की विधि –

आलू की बुआई के समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेमी. तथा बीज से बीज की दूरी 20 सेमी. रखनी चाहिए। आलू बुआई के बाद पंक्तियों पर अच्छी तरह से मिट्टी चढ़ा दें।

खरपतवार प्रबंधन एवं मिट्टी चढा़ना –

आलू बिजाई के 20.25 दिन बाद पौधे 8.10 सेमी. ऊँचाई के हो जाएं तो कल्टीवेटर या खुरपी से खरपतवार निकालने का कार्य करें। इस समय 150.200 कि.ग्रा. वेस्ट डिकम्पोजर संवर्धित सड़ी गोबर की खाद कों सिंचाई के समय बुरकाव कर बाद में हल्की मिट्टी चढा दें।

सिचाई –

आलू की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिये प्रायः 6-8 सिंचाइयां की आवश्यकता होती है। बुआई के 8-10 दिन बाद तथा भारी मृदा में 10-12 दिन बाद अंकुरण से पूर्व पहली सिंचाई करें। सिंचाई करते समय ध्यान रखें कि आलू की गूलें पानी में दो तिहाई से अधिक न डूबे अन्यथा पानी की अधिकता के कारण मृदा में खरपतवार उग आते हैं। आलू की फसल में दूसरी सिंचाई बिजाई के 20-22 दिन बाद (प्ररोह.शाखाए बनते समय) तथा तीसरी सिंचाई मिट्टी चढ़ाने के तुरन्त बाद (आलू बनने की प्रारम्भिक अवस्था में) अर्थात बुआई के लगभग चार सप्ताह बाद करें। अन्तिम सिंचाई खुदाई के लगभग 10 दिन पूर्व बन्द कर दें।

कीट प्रबंधन. –

माहू तथा जेसिड-

ये कीट आलू की पत्तियों का रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन कम हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए आलू की बुआई समय से यानि 20-25 अक्टूबर तक कर लेनी चाहिए। माहू लगने की संभावनाओं को देखते हुए सुरक्षात्मक तौर पर फसल पर तरल वनस्पति कीटनाशक (1ः 10 ली. पानी ) या लहसुन व हरी मिर्च का सत (10 प्रतिशत) या नीम का तेल (3.5 मिली. प्रति ली.पानी का घोल) का 15 दिन के अन्तर पर 2-3 छिड़काव करें। अधिक प्रकोप होने पर वर्टिसिलियम/मैटाराइजियम (5.10 ग्राम/ली. पानी) का छिड़काव करें।
कटवर्म, सफेद गिडार तथा ट्यूबर मोथः ये कीट फसल की जड़ व तने को काटकर हानि पहुंचाते हैं।

प्रबंधन –

  • गर्मी में गहरी जुताई करके सुण्डी व प्रौढ़ कीटों को नष्ट करें।
  • खरपतवार एव होस्ट पौधों को निकालकर भूमि में दबा दें।
  • लाईट ट्रेप लगाकर प्रौढ़ कीटों की निगरानी एवं प्रबंधन करें।
  • निमोली सत 5 प्रतिशत, अग्नि अस्त्र 3.5 प्रतिशत तथा तरल वनस्पति कीटनाशक का छिड़काव करें।
  • मैटाराइजियम या बिवेरिया 3.4 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे.का बुआई पूर्व भूमि में प्रयोग करें।

रोग प्रबंधन –

अगेती.पछेती झुलसा-

झुलसा रोग लगने पर पत्तियों की निचली सतह पर छोटे हल्के भूरे अनियमित आकार के गहरे भूरे रंग के गोल धब्बे बन जाते हैं। बाद में इनका आकार बढ़ जाता है और पत्तियां सूख जाती हैं। पत्तियों पर अनियमित आकार के धब्बे दिखाई दें उसी समय तुरन्त रोग की रोकथाम का उपाय करें। यह रोग मौसम के अनुसार बढ़ता है। यदि मौसम में आर्द्रता 80-90 प्रतिशत है तो इसका प्रकोप तीव्र गति से फैलता है तथा पत्तियां प्रभावित होकर एक या दो दिन में सूख जाती हैं।

कॉमन स्कैब –

इस बीमारी में आलू के कन्द पर खुरदरे लाल या भूरे धब्बे बन जाते हैं तथा कन्द भद्दे हो जाते हैं जिससे बाजार में उपज का अच्छा दाम नहीं मिल पाता है।

प्रबंधन-

  • संक्रमित पौधों खरपतवार आदि को उखाड़कर नष्ट कर दें।
  • स्वस्थ बीज एवं रोग प्रतिरोधक किस्मों की बुआई करें।
  • ट्राइकोडर्मा/स्यूडोमोनास के 5 प्रतिषत घोल में बीज शोधन करें।
  • ट्राइकोडर्मा/स्यूडोमोनास 4.5 कि.ग्रा. (200.300 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर) भूमि में प्रयाग करें।
  • लकड़ी की राख 12.15 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. का छिड़काव करें।
  • 7.8 ली. पुरानी 20 ली. खट्टी छाछ में 50 ग्रा. हल्दी मिलाकर 250.300 ली. पानी में घोलकर दो छिड़काव।