अमरूद की जैविक खेती करकें बाजार से अच्छा आमदनी लें| Organic farming of Guava get good income by the market

परिचय –

अमरूद का पैदावार पूरे भारत में की जाती है। भारत में औसतन 1 हेक्टेयर भूमि में 25 टन अमरूद के फल होने का अनुमान है। बिहार, उत्तर प्रदेश, महांराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिमी, बंगाल, आंध्र प्रदेश और तामिलनाडू के इलावा इसकी खेती पंजाब और हरियाणा में भी की जाती है। इसे उष्णकटिबंधीय और उप उष्णकटिबंधीय इलाकों में उगाया जाता है।

अमरूद खाने से स्वास्थ लाभ –

पोषक गुणों में अमरूद सेब से भी अच्छा होता है। यह विटामिन ”सी” से भरपूर होता है। इसके फल में एन्टी ऑक्सीडेण्ट तत्त्व पाए जाते हैं जो सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मददगार होते हैं। इसमें विटामिन सी और पैक्टिन के साथ साथ कैल्शियम और फासफोरस भी अधिक मात्रा में पाया जाता है।
यह शरीर के वजन को कम करता। कब्ज की समस्या को दूर करता है और पाचन क्रिया में सुधार करता है। बवासीर में असरदार तथा पेट की जलन शांत करता है।

Organic farming Guava

Organic farming Guava

भूमि एवं जलवायु –

अमरूद विभिन्न प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है परन्तु अच्छे उत्पादन के लिए उपजाऊ गहरी बलुई दोमट, जीवांशयुक्त, जिसमें जल के निकास की अच्छी सुविधा हो, उपयुक्त रहती है। ऊसरीली भूमि में भी अमरूद की खेती की जा सकती है। यह 6.5 से 7.5 पी.एच. वाली मिट्टी में इसका उत्पादन अधिक होता है। फूल एवं फल बनने के समय उपयुक्त तापमान 23 से 28 डिग्री. सेंटीग्रेड है।

उन्नतशील प्रजातियाँ-

क्षेत्रों की भूमि, जलवायु आदि को ध्यान में रखते हुए कृषि/बागवानी विभाग एवं अनुसंधान केन्द्रों द्वारा अनुमोदित अमरूद की उन्नत प्रजातियों का चयन करें।

इसकी निम्न प्रजातियाँ हैं –

इलाहाबादी सफेदा, ललित, स्वेता, प्रभात, चित्तीदार, सरदार (लखनऊ.49), हिसार सफेदा, आदि।

प्रजनन/संवर्धन –

अमरूद को बीज एवं वनस्पतिक प्रजनन द्वारा पैदा किया जाता है। इसका प्रजनन बीज द्वारा नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इसमें पौधों की वनस्पतिक वृद्धि की अवस्था लंबी होती है, पौधे अधिक जगह घेरते हैं एवं फलों की गुणवत्ता एवं उत्पादन कम होता है। वनस्पतिक प्रजनन की मुख्य विधियाँ पैचबडिंग, वैज ग्राफ्टिंग एवं स्टूलिंग है।

भूमि की तैयारी –

खेत को हल एवं हेरों द्वारा जोत कर समतल कर लें। सिंचाई एवं पानी के निकास को सुगम बनाने हेतु खेत में थोड़ा ढ़लान बनाएँ ताकि भूमि में पानी खड़ा न हो सके।

गड्ढे तैयार करना –

जून माह के प्रारंभ में 75×75 x75 सेमी. या 60x60x60 सेमी. आकार के गड्ढे खोद लें। जून के अन्त में गड्ढे के ऊपर की मिट्टी में 25-30 कि.ग्रा. सडी गोबर की खाद (20-25 ग्राम ट्राईकोडर्मा पाउडर गोबर की खाद में मिलाकर) तथा एक कि.ग्रा. नीम की खली मिलाकर गड्ढ़े को अच्छी तरह जमीन से 20 सेमी. ऊँचाई तक भर दें।

Organic Manure

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पौध रोपण –

जलवायु एवं मानसून के अनुसार क्षेत्रों में अलग-अलग समय तक पौध रोपण किया जाता है। यह प्रजाति, भूमि की उर्वरा शक्ति एवं सिंचाई की सुविधाओं पर निर्भर करता है। जुलाई से सितम्बर पौध रोपण का उपयुक्त समय है। प्रायः अमरूद का 6×6 मीटर पर रोपण किया जाता है तथा एक हेक्टे. में 270 पौधे लगाए जा सकते हैं। अधिक घनत्व वाली रोपाई करने के लिए 6×3 मीटर (555 पौधे प्रति हेक्टे.) तथा 3×3 मीटर (1111 पौधे प्रति हेक्टे.) पर रोपाई की जा सकती है। इनमें सबसे लाभदायक विधि 6×3 मीटर पर रोपण करें। इसके पश्चात् खेत की सिंचाई कर देते हैं जिससे कि गड्ढे की मिट्टी बैठ जाए। गड्ढा खोदकर उसके बीच में पौधा लगाकर चारों तरफ से अच्छी प्रकार हल्की सिचांई कर दें।

जैविक पोषण प्रबंधन –

अमरूद के खेत में दाल वाली फसलों कां अन्तः फसल के रूप में उगाएँ तथा कटाई के बाद खेत में मिला दें। पौधों के अवशेषों को खेत में मिलाकर पोषण प्रबंधन करें। इसके अतिरिक्त आवश्यकतानुसार जैविक खाद एवं जैव उर्वरकों का भूमि में मिलाकर प्रयोग करें। आयु के अनुसार निम्न प्रकार जैविक खाद का प्रयोग करें।

सिंचाई –

अमरूद को पानी की आवष्यकता कम होती है। गर्मी में 10.15 दिन तथा सर्दियों में 20.25 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए। ड्रिप द्वारा सिंचाई करना अधिक लाभदायक है। मार्च से मध्य जून तक सिंचाई बंद कर देनी चाहिए ताकि पौधे की पत्तियाँ छड़ जाएँ एवं पौधा आराम की अवस्था में चला जाए। इसके बाद थालों में खुदाई करके खाद मिलाएँ तथा सिंचाई करें।

कटाई.छँटाई –

पौधे लगाने के 3.4 महीने बाद 1 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले पौधो को मजबूत बनाने के लिए छटाई.कटाई की आवष्यकता होती है। ताकि अधिक शाखाएं बने एवं फलों की संख्या अधिक हो। बड़े पेड़ों में फालतू शूट.शाखाओं को पौधे का सही आकार रखने के लिए कटाई.छटाई करते रहना आवश्यक है।

फलन.अमरूद में मुख्यत –

दो फसलें आती हैं। प्रथम फसल बरसात के मौसम में तथा दूसरी सर्दियों में आती है। बरसाती मौसम के फल फीके, कीटग्रस्त तथा घटिया स्तर के होते हैं। जबकि जाड़ों के फल मीठे, स्वस्थ्य तथा गुणवत्ता युक्त होते हैं। बरसाती फसल न लेने के लिए मार्च माह से सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। ताकि फूल झड़ जाएं। जैविक खेती के माध्यम से दोनों फसलें भी ली जा सकती हैं।

कीट प्रबंधन –

फल मक्खी –

यह सबसे अधिक हानिकारक कीट है। मादा मक्खी फलों में छेद करके छिलके के नीचे अण्डे देती है। तथा उनके लारवी फलों को क्षति पहुँचाते हैं। प्रभावित फल सड़कर पकने से पहले गिर जाते हैं।

रोकथाम –

इसकी रोकथाम हेतु गरमी में खेत की जुताई करें, ग्रसित फलों को नष्ट कर दें, फेरोमोन ट्रेप.10 ट्रेप प्रति हेक्टे. लगाएं, निमोली सत 5 प्रतिशत/नीम ऑयल 3-5 मिली. प्रति लीटर/वनस्पतिक कीटनाशक 10 प्रतिशत का का 15-20 दिन के अंतर पर छिड़काव करें।
फल छेदक.बैंगनी रंग की तितली फूलों एव फलों पर अण्डे दे देती हैं तथा इसकी लारवी फलों में घुसकर गूदे को खा जाती है।

रोकथाम –

प्रभावित फलों को नष्ट करना, खरपतवारों का निष्कासन, लाइट ट्रेप लगाकर तितली को नष्ट करना तथा निमोली सत 5 प्रतिषत/नीम ऑयल 3.5 मिली. प्रति लीटर/वनस्पतिक कीटनाषक 10 प्रतिषत का का 15.20 दिन के अंतर पर छिड़काव करें।

रोग प्रबंधन –

उकठा रोग –

यह फफूंद से फैलने वाली एक मुख्य बीमारी है। प्रायः क्षारीय भूमि में इसका अधिक प्रकोप होता है। सामान्यतः जुलाई से नवंबर में अधिकतर फैलता है। इसमें पत्तियां पीली होकर सूखने लगती हैं तथा पौधा 15 जून से दो माह के बीच में लगभग सूख जाता है।
रोकथाम.अवरोधी किस्मों का प्रयोग, बागों की सफाई रखना, प्रभावित पौधों को नष्ट करना, हरी खाद का प्रयोग तथा रोगी पौधे की जड़ों को ट्राईकोडर्मा (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) से उपचारित करना।

फल सड़न –

फल पकने के समय सफेद फफूंदी, फलों की पर्त पर दिखाई देती है, जिससे फल सड़ जाते हैं।
रोकथाम.प्रभावित फलों को नष्ट करना, पौधों पर फल बनने के समय ट्राइकोडर्मा/बोर्डेक्स मिक्चर (1 प्रतिशत) का छिड़काव।

फलों की तुड़ाई/ग्रेडिंग.पैकिंग –

अमरूद में फलों की तुड़ाई लगभग पूरे वर्ष (मई.जून को छोड़कर) चलती रहती है। उत्तरी भारत में अगस्त, मार्च अप्रैल और दिसंबर.जनवरी माह में फसल की तुड़ाई होती है। बीमारी से प्रभावित फलों को छाँटकर निकाल दें। फलों को तोड़ने के बाद साफ करके आकार के अनुसार ग्रीडिंग करें तथा लकड़ी की टोकरियों में पैक करके बाजार में भेज दे।

भण्डारण –

अमरूद का अधिक दिनों तक भण्डारण नहीं किया जा सकता है। इसको 8-10 डिग्री. सेंटीग्रेट तापमान तथा 80-90 प्रतिषत आपेक्षिक आर्द्रता पर 2-3 सप्ताह तक भण्डार में रखा जा सकता है।