फूलगोभी की जैविक खेती कैसे करें। उन्नतशील किस्में

परिचय –

फूलगोभी यह प्रायः सभी प्रदेशों में उगाई जाती है। मैदानी क्षेत्रों में सर्दियों में तथा पहाड़ी क्षेत्रों में गर्मियों में पैदा की जाती है। भारतवर्ष में फूलगोभी ठण्डे मौसम में होने वाली एक मुख्य फसल है।

भूमि एवं जलवायु –

यह कई प्रकार की भूमि बलूवार दोमट, दोमट, मटियार दोमट आदि में पैदा की जा सकती है। फूलगोभी की अच्छी फसल उत्पादन हेतु भूमि का उचित पी.एच. 6-7 होना चाहिए। यदि पी. एच. 5-5 से कम हो तो भूमि में चुना आदि डालकर फसल की बुआई करनी चाहिए। तापमान तथा दीप्तिकाल का फसल की वृद्धि अवस्था कडलिंग तथा फूल बनने आदि पर प्रभाव पड़ता है। यदि अगेती किस्मों की देर से बुआई की जाए तो उनमें बहुत छोटे बटन आकार के फूल लगते हैं। इसके विपरीत यदि पछेती किस्मां की समय से पहले बुआई की जाय तो उनमें पत्तियों की बढ़वार लम्बे समय तक होती रहती है और बहुत समय बाद फूल आते हैं। फूलगोभी की अगेती किस्मों की 35 डि.सें. तथा पछेती किस्मों की 15-20 डि.सें. तापक्रम पर अच्छी पैदावार मिलती है।

Organic farming of cauliflower

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उन्नतशील किस्म –

किसानों को बागवानी विभाग, कृषि विष्वविद्यालय तथा अनुसंधान केन्द्र की सिफारिशों के अनुसार प्रजातियों का चुनाव करना चाहिए। फूलगोभी की कुछ प्रचलित प्र्रजातियां निम्न प्रकार हैं

(अ) बहुत अगेती किस्म –

अर्ली कुंआरी. गोभी की सबसे पहले तैयार होने वाली किस्म है। इसके फूल लगभग 80 दिन बाद तैयार हो जाते हैं। इसकी औसत उपज 100-115 कुन्टल प्रति हेक्टे. है। इसके बीज बोने का समय मई के अन्तिम सप्ताह से जून के द्वितीय पखवाड़े तक होता है।

(ब) अगेती किस्म –

पूसा कातकी .नर्सरी में बीज की बुआई मध्य जून से मध्य जुलाई माह तक की जा सकती है। इसके फूल अक्टूबर-नवम्बर माह में तैयार हो जाते हैं। इसकी औसत उपज 115-125 कुन्टल प्रति हेक्टे. होती है।

पूसा दीपाली बीज बोने का समय मध्य जून से मध्य जुलाई है। फूल रोपाई के 90 दिन बाद तैयार हो जाते है। किस्म की औसत उपज 125-150 क्विं. प्रति हेक्टे प्राप्त हो जाती है।

(स) मध्य फसलीय किस्म (मुख्य फसल) –

हिसार.1 बीज की बिजाई नर्सरी में अगस्त माह के दूसरे पखवाडे में करते हैं। इसके फूल दिसम्बर.जनवरी में तैयार हो जाते हैं। किस्मकी पैदावार 225-250 क्विंटल प्रति हेक्टे. की दर से प्राप्त की जा सकती है। इसके अतिरिक्त पन्त शुभ्रा, जापानी इम्प्रव््रूड, पूसा सिन्थेटिक इस ग्रुप की अच्छी किस्में हैं। इन किस्मों की नर्सरी में बिजाई अगस्त माह के दूसरे पखवाडे में करनी चाहिए। यह सभी प्रजातियां नवम्बर-दिसम्बर माह में तैयार हो जाती हैं।

(द) पछेती किस्म –

पूसा स्नोबाल 16 के बीजों की बुआई अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े में की जाती है। इसके फूल लगभग 90 दिन बाद तैयार हो जाते हैं। इस किस्म की औसत पैदावार 175-200 क्विं. प्रति हेक्टे. है।

अन्य प्रजातियां (संकर). पूसा हिमज्योति, पूसा सुभरा, स्नोहॅाट (ओपन पॉलीनेटेड), ग्रीस्मा पूसा सिन्थेटिक, पूसा हाईब्रिड.2, एन.एस-60 तथा एन.एस-66।

भूमि उपचार –

खेत की अच्छी तरह से तैयारी करने के बाद खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में विभाजित करें। इसके बाद मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने एवं भूमि जनित फफूंदी रोगों की रोकथाम हेतु जीवामृत/वेस्ट डिकम्पोजर 500 लीटर प्रति हेक्टे. का प्रयोग करें। खेत की तैयारी करते समय ट्राइकोडर्मा से संवर्धित गोबर की खाद को मिलाएं तथा उसके बाद बुआई करें।

बीज की मात्रा व बीज एवं पौध शोधन –

फूलगोभी की किस्मों का बीज उनके वर्गां के अनुसार उचित समय पर बोना अति आवश्यक होता है। बीज को समय पर न बोने से पौधे पर फूल जल्दी आ जाते हैं और फूलों का आकार बहुत ही छोटा रह जाता है। अगेती तथा मध्यम किस्मों की एक हेक्टे. में रोपाई करने के लिए 500-600 ग्राम बीज तथा पछेती किस्मों के लिए 450-500 ग्राम बीज की पौध पर्याप्त रहती है। ट्राईकोडर्मा जैविक फफूंदीनाशक 4 ग्राम प्रति 100 ग्राम बीज की दर से शोधित कर नर्सरी में बुआई करें। रोपाई पूर्व स्यूडोमोनास के 5 प्रतिशत घोल में पौध को 25-30 मिनट तक भिगोने के बाद रोपाई करें।

बुआई का समय –

विभिन्न क्षेत्रों में बुआई अलग.अलग समय पर की जाती है। प्रायः अगेती किस्में मई माह के अन्तिम सप्ताह से जून माह, मध्य फसलीय किस्में (मुख्य फसल) अगस्त माह में तथा पछेती किस्मों की बुआई अक्टूबर माह में करनी चाहिए।

नर्सरी एवं देखभाल –

पौध तैयार करने के लिए खासतौर से वर्षा ऋतु में नर्सरी जमीन से 15-20 सेमी. ऊँची बनाएं ताकि पौध को अधिक वर्षा एवं आर्द्र गलन रोग से बचाया जा सके। एक हेक्टे. क्षेत्र में बीज की बुआई के लिए लगभग 250 वर्गमीटर क्षेत्रफल पर्याप्त होता है। नर्सरी में बुआई से 8-10 दिन पूर्व 200-250 कि.ग्रा. सड़ी गोबर की खाद में 200 ग्राम. एजोस्पोरिलम तथा पी.एस.बी. मिट्टी में मिला लें। बीज की बुआई लाईनों में 10 सेमी. के फासले पर करें। बारीक सड़ी हुयी गोबर की खाद से ढक़ दें तथा ऊपर से घास-फूस अथवा पुआल की पतली परत (पलवार) बिछा दें। जैसे ही बीज में जमाव प्रारम्भ हो जाए तो पलवार को हटा दें। गर्मी के दिनों में आमतौर पर 25-30 दिन में तथा जाड़ों के मौसम में 40-45 दिन में पौध तैयार हो जाती है। नर्सरी में आवश्यकतानुसार सायं काल के समय हल्की सिंचाई एवं निकाई करते रहें। ध्यान रहे की नर्सरी में अधिक नमी होने पर आर्द्र गलन रोग लगने की सम्भावना बनी रहती है। ऐसी स्थिति में सिंचाई बन्द कर दें। गाय के गोबर का घोल या गौ.मूत्र (1ः10 ली. पानी) को प्रयोग करने से पौधे स्वस्थ रहते हैं। पौध रोपण से एक सप्ताह पहले नर्सरी की सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए। तथा पौध रोपण से पहले दिन नर्सरी की सिंचाई करनी चाहिए। ताकि पौध को आसानी से उखाड़ा जा सके।

रोपाई –

लगभग 30-40 दिन की आयु के पौधों को मुख्य खेत में रोप दिया जाता है। खेत में मेंड बनाकर पौध को 40-45 सेमी. के फासले पर रोप दिया जाता है। रोपाई करने से पूर्व पौध के जड़ व तने में लगने वाले सड़न रोग से बचाव हेतु बीजामृत 3 प्रतिशत या स्यूडोमोनास 5 प्रतिशत घोल में पौध की जडों को 15-20 मिनट डूबोकर तैयार खेत में रोपाई करें। पौध रोपाई के 4-5 दिन बाद जिन स्थानों पर पौधे मर गये हों वहां पर शाम के समय स्वस्थ पौधों की रोपाई कर सिंचाई करे।

खाद एवं जैविक उर्वरक –

पोषण प्रबंधन हेतु 100-150 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद या 50-60 क्विंटल, कम्पोस्ट या 25-30 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट को खेत में जुताई से पूर्व अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें। रोपाई से पूर्व खेत का पलेवा करते समय जीवामृत या वेस्ट डिकम्पोजर का घोल 500 ली. प्रति हेक्टे. सिंचाई के साथ प्रयोग करें।
गौ.मूत्र के 10 प्रतिशत घोल का पहला छिडकाव रोपाई के 25-30 दिन बाद तथा दूसरा फूल आने की अवस्था पर करें। पहली निकाई-गुड़ाई के समय वर्मी कम्पोस्ट बिखेरकर मिट्टी में मिलाए तथा बाद में सिंचाई करें। वर्मीवाश के 10 प्रतिशत घोल के 3 छिडक़ाव क्रमशः फूल आने से पहले, फूल आने के समय तथा फल लगने की अवस्था में करने से फल चमकदार तथा पूर्ण विकसित होते हैं। समन्वित पोषण प्रबंधन हेतु हरी खाद, दलहनी फसलें, सी.पी.पी. खाद, पंचगव्य, वर्मीवाश, गौ.मूत्र आदि को सम्मिलित करें। हरी खाद व दलहनी फसलों से लगभग 30-40 प्रतिशत नाइट्रोजन की आपूर्ति हो जाती है। इसके अतिरिक्त एजेस्पोरिलम 2.5.3.0 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे.़ गोबर की खाद में मिलाकर बुआई पूर्व खेत में प्रयोग करें।

खरपतवार नियंत्रण –

फूल गोभी में साधारणतः 3-4 निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है पहली निकाई पौध रोपाई के लगभग 20-25 दिन बाद तथा दूसरी व तीसरी निकाई.गुड़ाई क्रमशः 35-40 एवं 50-55 दिन बाद करनी चाहिए। यदि खेत में खरपतवार की सख्ंया अधिक है तो चौथी गुडाई 70-75 दिन बाद करें। दूसरी गुड़ाई के दौरान पौधों पर मिट्टी चढ़ा देने से खरपतवार में कमी एवं सिंचाई पानी की बचत की जा सकती है। मध्य फसलीय एवं पछेती फूलगोभी में पलवार (मल्चिंग) का प्रयोग करने से खरपतवार पर नियंत्रण के साथ-साथ सिंचाई पानी की बचत भी की जा सकती है।

कीट प्रबंधन –

कटवर्म, कैबेज कटरपिलर, केबेज बटर फ्लाई, डाइमण्ड बैक मौथ (डी.बी.एम.) तथा माहू मुख्य कीट हैं।

  • प्रबंधन-
    बहुत अगेती या बहुत पछेती रोपाई न करें।
  • गोभी में टमाटर की अन्तः फसल उगाए।
  • गोभी में सरसो को ट्रैप क्रॉप (20ः 1) के रुप में प्रयोग करें।
  • सुण्डियों एवं अण्डों को हाथ से पकड़कर नष्ट कर दें।
  • लाईट ट्रैप लगाकर कीटों को नष्ट करें।
  • नीम की पत्ती/नीमोली सत 5 प्रतिशत या नीम तेल (3.5 मिली./ली. पानी) का कीड़े लगने की प्रारंभिक अवस्था में छिड़काव करें।
  • इसके बाद तरल कीटनाशक 25 ली. या अग्निअस्त्र 8.10 ली. को 250 ली. पानी में घोल बनाकर एक हेक्टे. क्षेत्र में दो बार छिड़काव करें।
  • कीट का अधिक प्रकोप होने पर बिवेरिया 2.3 कि.ग्रा./बी.टी. 1.0.1.5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. की दर से छिड़काव करें।

रोग प्रबंधन –

फूलगोभी में लगने वाले मुख्य रोग.जड़ गलन, ब्लैक रोट, कर्ड रोग, चूर्ण आसिता रोग तथा पत्तियों के धब्बा हैं।

उपचार –

  • रोग प्रतिरोधी किस्मों का स्वस्थ बीज प्रयोग करें।
  • एक ही खेत में बार.बार गोभी, सरसों आदि की फसल न उगाएं।
  • खरपतवार एवं रोग ग्रसित पौधों को नष्ट कर दें।
  • बीज एवं पौध का स्यूडोमोनास (5 प्रतिशत घोल) द्वारा शोधन करें।
  • स्यूडोमोनास/ट्राइकोडर्मा 3.4 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे को गोबर की खाद में मिलाकर भूमि में प्रयोग करें।
  • लकड़ी की 10.12 कि.ग्रा. राख को 250.300 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें।
  • फफूंद रोगों के लिए 8.10 पुरानी लस्सी 20 ली. खट्टी छाछ में 50 ग्राम हल्दी मिलाकर 250.300 ली. पानी में घोलकर 10 दिन के अन्तराल पर दो.तीन छिड़काव करें।

फूल की कटाई ग्रेडिंग, पैकिंग एवं विपणन –

फूलगोभी के फूलों की कटाई 3.4 दिन के अन्तराल पर फूल की परिपक्व अवस्था के समय करनी चाहिए। रोग ग्रस्त, सड़े.गले फूलों को अलग करने के बाद शेष फूलों को आकार के अनुसार ग्रेड (बड़े,मध्यम एवं छोटे आकार) में रखें। बाजार में भेजने के लिए गोभी से फूलों के बडे पत्तों को निकाल कर साफ करके लकड़ी के क्रटेस का उपयोग करना चाहिए।

बीज उत्पादन-

फूलगोभी एक परसेचित फसल है, जिसमें परागण मधुमक्खियों के द्वारा होता है। फूलगोभी की अगेती एव मध्यम मौसमी किस्मों का उत्पादन मैदानी क्षेत्रों में किया जा सकता है परन्तु पछेती किस्मों का बीज उत्पादन केवल पर्वतीय क्षेत्रों में ही किया जा सकता है। बीज उत्पादन हेतु उपयुक्त जलवायु पर्वतीय क्षेत्रों में 1200-1500 मीटर ऊँचाई पर मिलती है। फूलगोभी के आनुवांशिक शुद्ध बीज उत्पादन हेतु बन्द गोभी, फूलगोभी की दो किस्मों तथा सरसों कुल की अन्य फसलों के बीच एक हजार मीटर की प्रथककरण दूरी रखना आवश्यक है।