आम खेती जैविक तरीके से कैसे करें ? मुनाफे के लिये| How to do Mango farming organically. for profit in Hindi

परिचय –

आम प्राचीन समय से उगाया जाने वाला फल है तथा भारत में यह सर्वाधिक क्षेत्र में उगाया जाता है। आम कि कई किस्मे होती है – जैसे लंगडा, दशहरी, तोतापरी, और चौसा आदि।

आम खाने से स्वास्थ लाभ –

गर्मियों में आम का सेवन आमतौर पर सभी लोग पसंद करते है। एक बहुत ही स्वादिष्ट फल होता है। आम को फलों का राजा भी कहा जाता है। यह स्वादिष्ट होने के साथ-साथ ही बहुत से स्वास्थ लाभ है। इसमें अधिक मात्रा में फाइबर पाया जाता हैं। आम में बहुत सारे गुण होते है जैसे – विटामिन सी, और ए फोलेट, बीटा, केराटिन, आयरन, कैल्शियम, जिंक और विटामिन ई जैसे पोषक तत्व होते है। इस फल में एंटीऑक्सीडेट से भरपूर होता है।

  • आम खाने से पाचन तंत्र सही रहता है। इसमें पाचन एंजाम होता है तथा आम में फाइबर, पानी अधिक मात्रा में पाया जाता है।
  • आम खाने से इम्युनिटी को मजबूत करने में मदद करता है। इसमे एंटीऑक्सीडेंट गुण होता है जो इम्युनिटी को मजबूत करता है।
  • आम खाने से त्वचा संबंधित सभी रोगों से मुक्ति मिलती है जैस – त्वचा के बंद रोमछिद्र एक्सफोलिएट करने में मदद करता है
  • तथा त्वचा के तेल उत्पादन को कम करने में मदद करता है और यह बढ़ते उम्र की झुरियां और महीन रेखा आदि को कम करता है। इसमें विटामिन सी और ए भरपूर मात्रा में पाये जाते है।
  • इसके सेवन से ह्दय को स्वस्थ रखता है जैसे कि इसमे फाबर, पौटेशियम और विटामिन प्रचूर मा़त्रा में होता है।
  • शरीर के वजन को कम करने में मदद करता है
  • ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल करता है। इसमे मौजूद मैग्नीशियम थायरॉइड से संबंधित समस्याओं को दूर करने मदद करता है।

भूमि एवं जलवायु –

आम उष्ण कटिबंधीय एवं उप उष्ण कटिबंधीय दोनों प्रकार के जलवायु क्षेत्र में उगाया जा सकता है। आम के छोटे पौधे अधिक ठंड और पाले को सहन नहीं कर सकते। अधिक तापमान कम आर्द्रता और तेज हवाऐं पौधों को प्रभावित करती है। फूल आने तथा फल पकने के समय वर्षा से हानि पहुंचती है। उचित पानी के निकास वाली उपजाऊ दोमट भूमि तथा गहरी मिट्टी जिसमें जीवांश की अधिकता हो इसके लिए उपयुक्त है। इसके लिए 5.5 से 7.5 पी.एच.वाली भूमि अच्छी होती है। रेतीली, हल्की, कम गहरी, पठारी तथा क्षारीय भूमि इसके लिए उपयुक्त है।

उन्नतशील प्रजातियाँ –

क्षेत्रों की भूमि, जलवायु आदि को ध्यान में रखते हुए बागवानी विभाग एवं अनुसंधान केन्द्रों द्वारा अनुमोदित आम की उन्नत प्रजातियों का चयन करें। इसकी कुछ प्रजातियाँ निम्न प्रकार हैं.
दशहरी, चोंसा, लँगड़ा, फजली, लखनऊ सफेदा, अल्फांसों, बॉम्बे ग्रीन, केशर, नीलम, बोंगन पल्ली, तोतापुरी आदि।

Mango farming organically

Mango farming organically

वनस्पतिक प्रजनन/संवर्धन –

यह बीज एवं वनस्पतिक प्रजनन द्वारा पैदा किया जाता है। इसका प्रजनन बीज द्वारा नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इसमें पौधों की वनस्पतिक वृद्धि अवस्था लंबी होती है, पौधे अधिक जगह घेरते हैं एवं फलों की गुणवत्ता एवं उत्पादन कम होता है। वनस्पतिक प्रजनन की मुख्य विधियां इनारचिंग एवं ग्राफ्टिंग है।

भूमि की तैयारी –

खेत को हल एवं हेरों द्वारा जोत कर समतल कर लें। सिंचाई एवं पानी के निकास को सुगम बनाने हेतु खेत में थोड़ा ढ़लान बनाएं ताकि भूमि में पानी खड़ा न हो सके।

गड्ढे तैयार करना –

बुआई के एक माह पूर्व दोमट एवं गहरी भूमि में 0.5×0.5 x.0.5 मीटर तथा उथली, पठारी भूमि में 1.0×1.0x1.0 मीटर आकार के गड्ढे खोद लें। गड्ढे के ऊपर की मिट्टी में 25-30 कि.ग्रा. सडी गोबर की खाद (50 ग्राम ट्राईकोडर्मा पाउडर गोबर की खाद में मिलाकर) तथा एक कि.ग्रा. नीम की खली मिलाकर गड्ढ़े को अच्छी तरह जमीन से 20 सेमी. ऊँचाई तक भर दें।

गड्ढे तैयार करना

गड्ढे तैयार करना

पौध रोपण –

जलवायु एवं मानसून के अनुसार क्षेत्रों में अलग-अलग समय पर पौध रोपण किया जाता है। प्रायः जुलाई से अक्टूबर तक रोपण की जाती है। पौध रोपण प्रजाति, भूमि की उर्वरा शक्ति एवं सिंचाई की सुविधाओं पर निर्भर करता है। बोंगनपल्ली, लंगड़ा तथा नीलम आदि में लाइन तथा पौधों का फासला 10 मी. x5 मी. या 9मी. x6 मी. या 7.5मी. x5 मी. तथा दशहरी में 7.5 मी x5मी. या 6मी.x5 मी. तथा आम्रपाली में 5 मी. x5 मी. या 5 मी. x2.5 मी. रखना चाहिए। पौधे की रोपाई के बाद खेत की सिंचाई कर दें ताकि गड्ढ़ों की मिट्टी बैठ जाए। इस प्रकार गड्ढा खोदकर उसके बीचो-बीच पौधा लगाकर चारों तरफ से अच्छी प्रकार हल्की सिचांई कर दें।

जैविक पोषण प्रबंधन –

आम में दाल वाली फसलों को अन्तः फसल के रूप में उगाएँ तथा इनको कटाई के बाद खेत में जुताई करके मिला दें। इनसे 50 से 80 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हेक्टे. की पूर्ति हो जाती है। पौधों की गिरी हुई पत्तियाँ, फल, टहनियाँ आदि अवशेषों को खेत में मिलाकर पोषण प्रबंधन करें। इसके अतिरिक्त आवश्यकताअनुसार जैविक खाद एवं जैव उर्वरकों जैसे.गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, लकड़ी की राख, नीम की खली, वर्मीवाश, जीवामृत आदि का प्रयोग करें। खाद की निर्धारित मात्रा को पौधे के थालों में डालकर भूमि में मिला दें तथा सिंचाई करें।

सिंचाई –

आम में स्वच्छ पानी से सिंचाई करनी चाहिए। पानी का पी.एच. 6.5-7.5, ई.सी. और नमक आदि की मात्रा सामान्य होनी चाहिए। सिंचाई की संख्या भूमि, जलवायु तथा प्रजाति के अनुसार कम अधिक हो सकती है। नए रोपित पौधों में गर्मी में 2-3 दिन के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिए। 5.8 वर्ष के पौधों में 15-20 दिन के अन्तराल पर तथा फल बनने के समय 2.3 सिंचाई 15-20 दिन के अन्तर पर करें। फूल बनने से 2-3 माह पूर्व सिंचाई रोक दें क्योंकि इसका फूल बनने पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
ड्रिप द्वारा सिंचाई करना अति उत्तम है। इसके साथ गौ.मूत्र/वर्मीवाष/वेस्ट डिकम्पोजर घोल को मिलाकर प्रयोग करें।

निराई-गुडाई/खरपतवार प्रबंधन –

मानसून आने से पहले तथा बाद में 2.3 बार जुताई.खुदाई करें। सब्जियां, अरहर, मूंग, लोबिया आदि दलहन की फसलों को अन्तः फसल के तौर पर उगाएं। अन्य शस्य क्रियाएं जुताई.खुदाई, मिट्टी चढ़ाना, मल्चिंग आदि शस्य क्रियाओं को जून एवं अक्टूबर माह में करें।

कटाई-छटाई –

पौधे की नियंत्रित वनस्पतिक वृद्धि आवश्यक है। पौध रोपण के बाद पौधे की छटाई करें ताकि तने पर 70.80 सेमी. के बाद ही शाखाएं निकलें। छटाई.कटाई करने से अधिक शाखाऐं बनती हैं तथा फल स्वस्थ, बड़े आकार के एवं गुणवत्तायुक्त होते हैं। बड़े पेड़ों में पौधे का सही आकार रखने के लिए समय.समय पर कटाई.छटाई करते रहना आवश्यक है। फलों की तुड़ाई के बाद पौधे की कटाई.छटाई करनी चाहिए।

कीट प्रबंधन –

आम का फुदका –

यह फूल बनते समय अधिक नुकसान पहुँचाता है तथा छाल आदि में छिपा रहता है। इसके निम्फ तथा वयस्क फूलों, मुलायम पत्तियों तथा फलों का रस चूसते हैं जिससे पत्तियाँ मुड़कर सूख जाती हैं तथा फूल.फल गिर जाते हैं। प्रभावित पत्तियों पर चिपचिपा पदार्थ बनने से फफूंद पैदा हो जाती है।

फल मख्खी –

यह फूलों पर अण्डे देती हैं तथा इसके लारवी फलों में घुसकर गूदे को खा जाती हैं। फल सड़कर नीचे गिर जाते हैं।

मिली बग –

सफेद मटमैले रंग के निम्फ पौधे का रस चूसकर पौधों को कमजोर कर देते हैं। चिपचिपा पदार्थ निकलने से फफूंद पैदा हो जाती है।

तना छेदक-

इस कीट की सुण्डी तने एवं शाखाओं में छेद करके नुकसान पहुँचाती हैं जिससे तना, शाखाएँ तथा पूरा पेड़ सूख जाता है।

लीफ वैबर-

इसकी सुण्डियाँ पत्तियों को खुरचकर खाती रहती हैं तथा बाद में नए तनों एवं पत्तियों पर जाला बनाकर खाती हैं।

कीटों को रोकथाम करने हेतु निम्न उपाय अपनाएँ –

  • बागों की जुताई, समय-समय पर खरपतवार निष्कासन, घनी शाखाओं की कटाई.छँटाई करें।
  • कीटों से प्रभावित पत्तियों, टहनियों एवं तनों की छटाई करें तथा प्रभावित फल नष्ट कर दें।
  • मिली बग की रोकथाम हेतु जुताई करें, तनों पर पॉलीथीन एल्काथिन शीट/चिप.चिपे बैण्ड लगाएँ।
  • प्रभावित तनों एवं शाखाओं में सुण्डियों को नष्ट कर दें।
  • सफेद मक्खी की रोकथाम हेतु फैरोमोन ट्रैप/मिथाइल यूजीनोल ट्रैप (6.7 प्रति हेक्टेयर)।
  • निमौली सत.5 प्रतिशत, वनस्पति कीटनाशक.10 प्रतिशत घोल तथा नीम का तेल 5 एम.एल. प्रति लीटर का कीट लगने की प्रारम्भिक अवस्था में आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।

अधिक प्रकोप होने पर जैव कीटनाशक वरटीसिलियम या मैटाराइजियम या विवेरिया का छिड़काव करें।

रोग प्रबंधन- आम की मुख्य बीमारियाँ एवं उनकी रोकथाम निम्न प्रकार है –

पाउडरी मिल्डयू –

यह एक मुख्य बीमारी है। इसके प्रकोप से पत्तियाँ, फूल, फलों आदि पर सफेद फफूंदी फैल जाती है तथा प्रभावित फूल एवं फल गिर जाते हैं। ठण्डे मौसम में वर्षा एवं कोहरा होने पर यह बहुत तेजी से फैलती है। रोकथाम. खट्टी छाछ एवं गोमूत्र.5 प्रतिशत घोल या गंधक.2 प्रतिशत या बोरडिएक्स मिक्चर.1 प्रतिशत का छिड़काव करें।

एनथ्रेक्नोज/डाइबैक –

इस बीमारी से पत्तियाँ, फूल एवं फल प्रभावित होते हैं। इन पर उठे हुए छोटे गोल धब्बे बन जाते हैं तथा पत्तियाँ व फल झड़ जाते हैं। इसके लिए अधिक आर्द्रता, वर्षा और 24-32 डिग्री तापमान अनुकूल होता है।अधिक प्रकोप होने पर नई शाखाएँ सिरे से नीचे की ओर सूखना शुरू हो जाती हैं तथा पुरानी शाखाएँ भी प्रभावित होकर सूख जाती हैं।

रोकथाम –

प्रभावित पत्तियाँ, फलों आदि को काटकर नष्ट कर दें। पौधों की कटाई-छँटाई करके उचित फासला बनाए रखें। शाखाओं की छँटाई करने के बाद उनके कटे हुए भाग पर गाय के गोबर या बोरडेक्स मिक्चर का पेस्ट लगाएँ। अधिक प्रभाव होने पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या बोरडेक्स मिक्चर.1 प्रतिशत का छिड़काव करें।

सूटीमोल्ड-

रस चूसने वाले कीटों के प्रकोप से पत्ती की सतह पर काली चिपचिपी फफूंद जम जाती है तथा पत्तियाँ काली पड़ जाती हैं।

रोकथाम- बीमारी फैलाने वाले व रस चूसने वाले कीट जैसे-हापर, सफेद मक्खी आदि की रोकथाम करें। इसके लिए नीम ऑयल.3 प्रतिशत या निमौली सत.5 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।

फलों की तुड़ाई/ग्रेडिंग.पैकिंग –

आम के फलों को उचित परिपक्व अवस्था में तोड़ना चाहिए। पकने की अवस्था में फल का छिलका गहरे हरे रंग का हो जाता है तथा धीरे-धीरे हल्के पीले रंग में बदल जाता है। फलों को सुबह या शाम के समय तोड़ना चाहिए क्योंकि दोपहर के समय अधिक तापमान फलों को नुकसान पहुँचाता है। वर्षा के समय फलों को न तोड़ें तथा वर्षा के 4-5 दिन बाद फलों की तुड़ाई करें। तुड़ाई के समय यह ध्यान रखें कि फलों को चोट न पहुँचे।

कटाई उपरान्त प्रबंधन –

डिसेपिंग-फलों को तोड़ने के बाद उन्हें 2.3 घण्टों के लिए उल्टा करके रख देते हैं ताकि उनके डण्ठल से रस निकल जाए अन्यथा इस रस से फलों पर दाग पड़ जाते हैं।
छँटाई. अधपके छोटे आकार के तथा क्षतिग्रस्त फलों को अलग निकाल दें।
फलों की धुलाई/सफाई. दाग.धब्बे, मिट्टी आदि को हटाने के लिए फलों की धुलाई करें तथा कपड़े से साफ करें।

ग्रेडिंग व पैकिंग व भण्डारण-

आकार के आधार पर फलों का ग्रेडिंग करें तथा लकड़ी के बॉक्स की जगह फाइबर बॉक्स में पैक करें क्योंकि इनमें फलों को कम क्षति पहुँचती है।