हल्दी की जैविक खेती कैसे करें? उन्नतशील प्रजातियां|

परिचय –

हल्दी मसाले की एक प्रमुख फसल है तथा भारत में इसका बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इसके प्रकंदों (Rhizome) का प्रयोग मसाले व औषद्यियों में किया जाता है। इसमें 1.8-5.4 प्रतिशत कुरक्यूमिन तथा 2.5.-7.2 प्रतिशत तेल होता है।

भूमि एवं जलवायु –

विभिन्न प्रकार की उपजाऊ भूमि जैसे हल्की काली दोमट मटियार- दोमट, बलुआर, बलुआर दोमट आदि जिसमें एक प्रतिशत से अधिक जीवांश तथा पी.एच. 5.7-.5 हो इसके लिए उपयुक्त है। भूमि में पानी के निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। मृदा में थोडी अम्लीयता का होना अच्छा होता है। इसके लिए गरम आर्द्रता की आवश्यकता होती है। किन्तु वातावरण के तापमान का इस पर काफी प्रभाव पड़ता है। 20-30 डि.सें. तापमान वाले क्षेत्र हल्दी उत्पादन के लिए उत्तम माने गए हैं। यह अधिकतर कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में उगाई जाती है। सिंचित क्षेत्रों में इसकी पैदावार अधिक होती है तथा पेड़ों की छाया में इसको आसानी से उगाया जा सकता है।

Organic farming Turmeric

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उन्नतशील प्रजाति –

विभिन्न क्षेत्रों की जलवायु, भूमि आदि को ध्यान में रखकर विभागीय/कृषि विश्वविद्यालय द्वारा सिफारिश की गई प्रजातियों का चयन करें। फसल के पकने के समय के अनुसार कुछ प्रजातियां निम्न प्रकार हैं.
1 .सात माह में तैयार.सुगन्धम, सुगना, स्वर्णा, सुदर्षना
2. आठ माह में तैयार.सुरोमा, रोमा, रश्मि, कृष्णा
3. नौ माह में तैयार.सी.ओ..1, कान्ती

बीज की मात्रा –

बीज के लिए हल्दी की गांठें पिछली फसल से ली जाती हैं। घनकन्द बड़े आकार की व सुविकसित आंखों वाले होने चाहिए। एक हेक्टे. में बुवाई के लिए 15-20 कुन्टल बीज की आवश्यकता होती है।

बीज शोधन –

बुवाई पूर्व प्रकन्दों को बीजामृत घोल या ट्राइकोडर्मा/स्यूडोमोनास के 5 प्रतिशत घोल द्वारा उपचारित करके छायादार जगह में सुखाकर बुआई करें।

खेत की तैयारी –

पिछली फसल की कटाई के तुरंत बाद या वर्षा प्रारंभ होने पर ख्ेत की दो.तीन बार जुताई करके भुरभुरी बना लें। अंतिम जुताई के पहले निर्धारित मात्रा में गोबर की सड़ी खाद, जैव उर्वरक, नीम की खली, को खेत में मिलाएं।

भूमि शोधन –

भूमि जनित जीवाणु रोगों की रोकथाम हेतु ट्राइकोडर्मा जैव फफूंदनाशक 4.5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. की दर से 150.200 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर बुआई पूर्व जुताई के समय खेत में मिलाएं। अम्लीय भूमि मे हाइड्रेटिड चूना 500 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. डालकर भूमि में मिलाएं।

बुआई-

सिंचित क्षेत्रों में बुआई का उपयुक्त समय मार्च से जुलाई है। गर्मी में नाली बनाकर तथा बरसात में ऊंची क्यारी या मेंड बनाकर 45-60 x20-30 सेमी. दूरी पर बोएं। सिंचाई के बाद नाली को सूखे पत्ते की 5-6 सेमी. मोटी तह से ढक दें। बरसात होने पर मिट्टी चढ़ा दें। बुआई करने के तुरंत बाद क्यारियों को सूखी खास या पत्तियों से ढकने से पैदावार में वृद्धि होती है तथा निराई.गुडाई एवं सिंचाई की भी कम आवश्यकता होती है। पंक्ति से पंक्ति का फासला 50.70 सेमी. तथा पौधे से पौधे का फासला 40-45 सेमी. रखना चाहिए। कम वर्षा वाले क्षेत्रों मे मानसून के अनुसार हल्दी की बुवाई मई-जुलाई तक की जाती है।

खाद एवं जैविक उवर्रक –

भूमि का परीक्षण कराएं तथा सुझाव के अनुसार खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए। फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूर्ति करने के लिए आवश्यक हो तो चूना/डोलोमाइट, रॉक फॉस्फेट और लकड़ी की राख का प्रयोग करें। अंतिम जुताई के समय 150-200 क्विंटल गोबर की खाद/70-80 क्विंटल नादेप कम्पोस्ट का प्र्रयोग करें। एजोस्पोरिलम, पी.एस.बी. एवं जिंक उपलबध कराने वाले जैव उर्वरकों का 3-4 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. की दर से भूमि में प्रयोग करें। 30-35 दिन बाद 500 लीटर जीवामृत या वेस्ट डिकम्पोजर का सिंचाई के साथ प्रयोग करें। प्रकन्दों के विकास एवं फसल की वृद्धि के लिए दो महीने बाद 50-60 क्विंटल केंचुए की खाद का प्रयोग करें।

सिंचाई –

हल्दी के लिए अंतराल पर बार-बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। जो मृदा और जलवायु की स्थिति पर निर्भर करते हैं। सामान्यतः चिकनी भूमि में 15-23 तथा रेतीली एवं दोमट भूमि में 40 बार सिंचाई की जाती है। पहली सिंचाई बुआई पूर्व, दूसरी बुआई के तुरन्त बाद तथा बाद की सिंचाई 8-10 दिन के अन्तराल पर की जाती हैं।

निकाई-गुडाई एवं खरपतवार प्रबंधन –

हल्दी में बुआई के 60-90 और 120 दिन बाद खरपतवार निष्कासन करना चाहिए। खेत में पत्तियों की पलवार बिछाने पर काफी हद तक खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है। पहली निराई.गुडाई 80-90 दिन बाद तथा दूसरी इसके 30 दिन बाद करनी चाहिए तथा मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए।

कीट प्रबंधन-हल्दी के मुख्य कीट निम्न प्रकार हैं –

तना छेदक-

इस कीट की लारवी तने में छेद करके हानि पहुंचाते हैं तथा सेंट्रल शूट सूख जाता है।

इसके उपचार हेतु प्रभावित तने को काटकर खोलें तथा लारवे को पकड़ कर नष्ट कर दें। नीम ऑयल 5 मिली. प्र्रति लीटर पानी, निमोली सत 5 प्रतिशत या वनस्पतिक तरल कीटनाशक 5-10 प्रतिशत का 15-20 दिन के अन्तर पर छिड़काव करें।

प्रकन्द कीट-

(एस्पिडिएला हार्टी) यह बहुत सूक्ष्म कीट है जो बाद की अवस्थाओं में और भण्डारण के समय क्षति पहुंचाते हैं। ये शिराओं के दृव्य को खाते हैं जिससे प्रकन्द रस रहित व सूख जाते हैं। इसके उपचार हेतु नियमित निगरानी और स्वच्छता रखें।

हल्दी का थ्रिप-

यह बहुत छोटे रस चूसने वाले कीट हैं जो पत्तियों का रस चूस कर उन्हें सुखा देते हैं। सूखे क्षेत्रों में या वर्षा के बाद इनका अधिक प्रकोप होता है। इनके उपचार हेतु निमोली सत 5 प्रतिशत/नीम ऑयल 0.5 प्रतिशत या खट्टी छाछ एवं गौ.मूत्र 5 प्रतिशत के 15 दिन के अन्तराल पर दो-तीन छिड़काव करें।

रोग प्रबंधन –

पत्तियों के धब्बे. अगस्त-सितंबर महीने में भूरे रंग के धब्बे पत्तियों पर दोनों तरफ बनते हैं। पत्तियां का रंग लाल-भूरा हो जाता है तथा पीली होकर सूख जाती हैं।

प्रतिरोधी किस्मों और स्वस्थ्य बीज का प्रयोग, बुआई पूर्व प्रकन्दों का बीजामृत या स्यूडोमोनास द्वारा उपचार तथा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड/ बोर्डेक्स मिश्रण का छिड़काव आदि द्वारा रोग प्रबंधन करें।

प्रकन्द एवं जड़ गलन प्रभावित पौधों की पत्ती धीरे.धीर किनारों से सूखने लगती हैं तथा सारी पत्तियां सूख जाती हैं। तने का निचला हिस्सा नम और मुलायम हो जाता है जिसके परिणाम स्वरूप पौधा गिर जाता है एवं प्रकन्द सड़ जाता है।

प्रतिरोधी किस्मों और स्वस्थ्य बीज का प्रयोग, बुआई पूर्व प्रकन्दों का बीजामृत या स्यूडोमोनास द्वारा उपचार, बुआई पूर्व भूमि का ट्राइकोडर्मा द्वारा शोधन तथा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड/बोर्डेक्स मिश्रण का छिड़काव आदि द्वारा रोग प्रबंधन करें।

कटाई, खुदाई और विपणन –
फसल रोपण के 7-9 महीने बाद फसल परिपक्व हो जाती है। भूमि की जुताई करके या हाथ से खुदाई करके प्रकन्दों को एकत्र किया जाता है। कटाई किए गए प्रकन्दों से मिट्टी और उनसे चिपके अन्य तत्वों को साफ करना चाहिए।

हल्दी की जैविक खेती कैसे करें? उन्नतशील प्रजातियां|

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