यांत्रिक और जैविक कीट रोग प्रबंधन कैसे करें ? How to do Mechanical and Biological pest disease management

यांत्रिक कीट रोग प्रबंधन (Mechanical Pest Management)

  1. हानिकारक कीडों तथा बीमारियों से प्रभावित पौधों या उनके प्रभावित भाग को नष्ट करना।
  2. हानिकारक कीटों के अण्डों, लारवा आदि को पकड़कर नष्ट कर देना।
  3. चिड़ियों के मचान (Bird Percher) बनाना-पक्षी मचान पर बैठकर कीडों को खा जाते हैं।
Mechanical Pest Management

Mechanical Pest Management

प्रकाश प्रपंच (Light Trap) लगाना-

प्रकाश पर आकर्षित होने वाले कीडों को नष्ट करने हेतु खेतों पर रात के पहले पहर में 2.3 घण्टे के लिए प्रयोग करना चाहिए।

फेरोमोन ट्रेप-

फलछेदक, तनाछेदक, फलमक्खी आदि कीटों की निगरानी (Monitoring) करने एवं उनकी संख्या पर नियंत्रण रखने हेतु फेरोमोन ट्रेप का प्रयोग करें। अलग-अलग कीटों के लिए विषेष प्रकार के ट्रेप उपलब्ध हैं। जिनमें विशेष प्रकार के ल्यूर लगाए जाते हैं। एक एकड़ क्षेत्र में दो-तीन फेरोमोन ट्रेप लगाने चाहिए।

पीले चिप-चिपे ट्रेप-

छोटे, उड़ने वाले कीट जैसे-माहू, जेसिड, फल मक्खी आदि पीले रंग पर आकर्षित होती रहती हैं अतः उनके नियंत्रण हेतु पीले चिपचिपे ट्रेप लगाने चाहिए।

जैविक कीटरोग प्रबंधन – (Biological Pest Management)

पारिस्थितिक तंत्र/पर्यावरण संतुलन में प्रकृति का विशेष योगदान है। फसलों मे हानिकारक कीडों, रोगाणुआें के साथ-साथ लाभदायक मित्रकीट-परभक्षी एवं परजीवी कीट भी पाए जाते हैं जो हानिकारक 19 कीटों को खाकर उनको आर्थिक क्षति स्तर से नीचे रखते हैं। विवरण निम्न प्रकार हैं-

Biological Pest Management

Biological Pest Management

परभक्षी/ परजीवी कीट-

परभक्षी कीडे़ हानिकारक कीटों एवं उनके अण्डे, सुण्डी आदि का भक्षण करते हैं एवं फसलों को होने वाले नुकसान से बचाते हैं। इसी प्रकार परजीवी कीट हानिकारक कीडों की विभिन्न अवस्थाओं पर अपना जीवन बिताते हैं तथा उनको नष्ट कर देते हैं। मुख्य परजीवी एवं परक्षक्षी कीट निम्न प्रकार हैं-

परभक्षी कीट-

मकड़ियाँ, लेडीबर्ड बीटल, क्राईसोपा, ग्राउण्ड बीटल, परभक्षी चीटियाँ आदि मुख्य परभक्षी कीट हैं।

अण्ड परजीवी-

ट्राइकोग्रामा, टैटरास्टीकस-टिलोनोमस आदि मुख्य अण्ड परजीवी हैं।
सुण्डियों के परजीवी-स्टेनोब्रेकॉन, कोटेषिया, जैन्थो पिम्पला आदि।

सुण्डियों के परजीवी-

स्टेनोब्रेकॉन, कोटेषिया, जैन्थो पिम्पला आदि।

हानिकारक कीटों की सभी अवस्थाओं को नियंत्रन करने हेतु प्रकृति में उपरोक्त लाभकारी मित्रकीट खेतो में उपलब्ध हैं

सूक्ष्म जीवाणु कीटरोगनाशी-

हानिकारक कीड़ों, फफूंदी, बैक्टीरिया, वायरसजनित रोगों आदि से बचाव हेतु प्रकृति में लाभदायक जीवाणु भी मौजूद हैं जो रोगाणुओं से फैलने वाले रोगों से फसलों की रक्षा करते हैं। सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा निर्मित जैव कीटरोगनाशक बाजार में उपलब्ध हैं जिनका प्रयोग सिफारिश की गई मात्रा में अन्तिम विकल्प के रूप में करना चाहिए। मुख्य रूप से प्रयोग में आने वाले कुछ जैव कीटरोगनाशकों का विवरण निम्न प्रकार है

ट्राइकोडर्मा विरिडी/हरजेनियम-

यह एक जैव फफूंदनाशक है जो पाउडर तथा तरल रूप में बाजार में उपलब्ध है। इसका प्रयोग फसल में लगने वाली बीमारियों जैसे- तना गलन, जड़ गलन, झुलसा आदि की रोकथाम हेतु किया जाता है।

स्यूडोमोनास फल्यूरोसेंस-

यह एक जीवाणु है जो बैक्टीरिया तथा फफूंद द्वारा फैलने वाली बीज, मृदा एवं वायुजनित रोगों की रोकथाम में अत्यन्त लाभकारी है। यह मुख्य रूप से सब्जियों, फलों एवं फूलों की जैविक खेती में प्रयोग किया जाता है।

बेसिलस सबटैलिस-

यह जैव फफूंदनाशक पाउडरी मिल्डयू, डाउनी मिल्डयू एवं स्कैब रोगों पर प्रभावशाली नियंत्रण करता है।

बिवेरिया बेसियाना-

यह एक प्रकार का फफूंद है जो प्रकृति में कीटनाशी का काम करता है। यह कई प्रकार के कीटों की विभिन अवस्थाओं पर परजीवी के रूप में रहकर उन्हें नियंत्रित करता है। इनमें कुछ प्रमुख हैं, जैसे-सफेद मक्खी, डी.बी.एम., जड़ तना तथा फल छेदक, दीमक, सफेद गिडार आदि।

प्रयोग करने की विधि-

एक किलो प्रति एकड़ कीटनाशी का छिड़काव तथा भूमिगत कीडों की रोकथाम हेतु 1.5.2 कि.ग्रा. प्रति एकड़ की दर से भूमि में गोबर की खाद के साथ मिलाकर प्रयोग करें।

मेटाराइजियम एनीसोप्ली-

यह एक प्राकृतिक जैविक फफूंद है जो कीटनाशक के रूप में कार्य करता है। यह दीमक, सफेद गिडार, फलछेदक, तनाछेदक एवं मिलीबग आदि के नियंत्रण हेतु प्रयोग किया जाता है।

वर्टीसिलियम लिकानी-

यह प्राकृतिक कीट रोधी फफूंद है जो कीडों पर परजीवी के रूप में रहकर नियंत्रित करती है। सफेद मक्खी, माहू तेला, मिलीबग, थ्रिप्स आदि कीट रोगों की विविध अवस्थाओं को प्रभावकारी ढंग से नियंत्रित करती है।

पैसीलोमाईसीस-

यह फफूंद नीमाटोड को प्रभावी ढंग से नियंत्रण करती है। सब्जियों, फलों आदि में लगने वाले नीमाटोड की रोकथाम हेतु इसका प्रयोग किया जाता है।

एन.पी.वी.-

यह प्रकृति में सुण्डी कीट पर पाए जाने वाला वायरस है। यह सुण्डी कीटों के नियंत्रणहेतु प्रयोग किया जाता है। वायरस से प्रभावित सुण्डियों से एन.पी.वी. को तैयार किया जाता है। खेतां से सुण्डियों को पकड़कर प्रयोगशाला में लाया जाता है तथा उनको वायरस के घोल से संक्रमित किया जाता है तथा घोल तैयार किया जाता है। सुण्डी कीटों के नियंत्रण हेतु अलग.अलग एन.पी.वी. प्रयोग किए जाते हैं, जैसे-एन.पी.वी.-एच.

अमेरिकन सुण्डी तथा एन.पी.वी.-एस. तम्बाकू सुण्डी के लिए। इसकी 100 एल.ई. मात्रा को एक एकड़ क्षेत्र में छिड़काव करने से सुण्डियों पर नियंत्रण पाया जाता है।
इसका छिड़काव फसल में शाम के समय करना चाहिए।