टमाटर की जैविक खेती कैसें करें ? How to do organic farming of Tomato in Hindi

परिचय-

टमाटर एक अत्यन्त लोकप्रिय सब्जी है। टमाटर में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन “ए” और “सी” के अतिरिक्त खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाये पाये जाते है टमाटर में लाल रंग लाइकोपिन नामक वर्णक से होता है, जो सबसे महत्त्वपूर्ण ऑक्सीडेन्ट है।

टमाटर स्वास्थ में भी लाभकरी-

टमाटर स्वास्थ के लिये बहुत ही ज्यादा लाभकारी है। टमाटर खाने से शरीर से गुर्दे से रोग के जीवाणुओं को निकालता है। मधुमेह के रोगगियों के लिये भी बहुत लाभकारी है। इसमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होने के कारण इसे एक अच्छा भोजन माना जाता है। यह पाचनशक्ति, गैस कि शिकायत, मोटापा, जिगर, श्वास नली और खांसी आदि में भी लाभकारी है।

जलवायु –

प्रायः टमाटर सिंचित क्षेत्र में उगाया जाता है। इसके लिए 20-28 डिग्री. सें.ग्रे. तापमान उपयुक्त रहता है। यह कम तापक्रम एवं कोहरा/पाला आदि इसके लिए अनुकूल नहीं है। यह 13 डिग्री. से ंग्रे.से कम तथा 35 डिग्री. से अधिक तापमान पर फल कम बनते हैं और उनका आकार भी बिगड़ जाता है। 10 से.ग्रे. से नीचे टमाटर में लाल और पीला रंग तथा 30 डिग्री. सें.ग्रे. से ऊपर लाल रंग बनना कम हो जाता है। टमाटर की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ दोमट मिट्टी अच्छी होती है।

 

organic farming Tomato

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उन्नतशील/प्रजातियाँ एवं संकर किस्में-

कुछ उन्नतशील प्रजातियाँ निम्न प्रकार हैं। जैविक खेती हेतु ओपन पौलिनेटेड किस्मों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। किसानों को स्वयं द्वारा तैयार किया गया जैविक बीज या प्रमाणित जैविक बीज का प्रयोग करना चाहिए। प्रजाति का चुनाव उसकी माँग के अनुसार करना चाहिए। ओपन पौलिनेटेड प्रजातियाँ अधिकतर कम समय में तथा संकर प्रजातियाँ लम्बे समय में तैयार होती हैं।

ओपन पौलिनेटेड प्रजातियाँ –

पूसा रूबी, पी.के. एम.1, एस..7, एस.22, अरका अनन्या, अरका श्रेष्ठ, अरका विकास, हिसार अरुण, स्वर्णा नवीन, स्वर्णा लालिमा आदि मुख्य प्रजातियाँ हैं।

संकर प्रजातियां-

अभिनाश.2, रश्मि, वैशाली, रुपाली आदि मुख्य प्रजातियाँ हैं।

खेत की तैयारी –

टमाटर के लिए 6.7 पी.एच. वाली भूमि जिसमें एक प्रतिशत से अधिक जैविक कार्बन हो, अच्छी मानी जाती है। खेत की 2-3 बार जुताई करनी चाहिए तथा 200-250 कि् ंव. गोबर की खाद या 100-125 कम्पोस्ट खाद को खेत में मिला देना चाहिए।

भूमि शोधन –

खेत की तैयारी करने के बाद खेत को छोटी.छोटी क्यारियों मे बाँट लें। फफूंदी रोगों की रोकथाम हेतु 500 लीटर अमृत पानी या वेस्ट डिकम्पोजर घोल को प्रति हेक्टेण़् की दर से शाम के समय भूमि पर छिडक़ाव करें।

बीज मात्रा एवं बीज शोधन –

ओपन पौलिनेटेड प्रजातियों की अक्टूबर-नवम्बर माह में उन्नतशील किस्मों की बुआई के लिए 350-400 ग्राम तथा दिसम्बर-जनवरी माह में बुआई के लिए 400-500 ग्राम बीज प्रति हेक्टे. प्रयोग करें। संकर किस्मों के लिए 200-300 ग्राम बीज प्रति हेक्टे. प्रयोग करें। बीज का उचित अंकुरण एवं बीज व भूमि जनित रोगों से बचाव करने हेतु ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम प्रति 100 ग्राम बीज के दर से बीज शोधित करके नर्सरी में बीज की बुआई करें। बीज का शोधन एक भाग खट्टा मट्ठा तथा 4 भाग पानी का घोल बनाकर उसमें 6 घण्टे तक बीज को डुबोकर या एक प्रतिशत पंचगव्य घोल में 12 घण्टे तक भिगोकर भी किया जा सकता है। उसके बाद बीज को छाया में सुखाकर नर्सरी में 6-7 सेमी. की दूरी पर लाइनों में समान दूरी पर बुआई करें।

बुआई का समय-

टमाटर की बिजाई/रोपाई हेतु प्रायः नर्सरी में बीज की बुआई अक्टूबर-नवम्बर एवं दिसम्बर.जनवरी में की जाती है।

नर्सरी एवं देखभाल-

नर्सरी में पौध तैयार करने के लिए 3 मी. लम्बाई 1 मी. चौड़ाई, 15-20 सेंमी. ऊँची क्यारियाँ बनाएँ। एक हेक्टे. क्षेत्र में बीज की बुआई के लिए लगभग 200 वर्गमीटर क्षेत्रफल पर्याप्त होता है। नर्सरी में बुआई से पहले 250 ग्रा. ट्राइकोडर्मा को 50-60 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर अच्छी तरह से मिट्टी में मिला दें।

बीज की बुआई करने के बाद लाइनों को बारीक सड़ी हुई गोबर की खाद से ढ़क दें तथा घास-फूंस अथवा पुआल की पतली परत (पलवार) बिछा दें। बीज में जमाव प्रारम्भ होने के बाद पलवार को हटा दें। गर्मी के दिनों में आमतौर पर 25-28 दिन में तथा सर्दी के मौसम में 50-55 दिनों में टमाटर की पौध तैयार हो जाती है। नर्सरी में आवश्यकता अनुसार सायं काल के समय हल्की सिंचाई एवं निकाई करते रहें। नर्सरी में बीमारी लगने की संभावना को ध्यान रखकर स्यूडोमोनास फफूंदनाशक का छिड़काव करें।

रोपाई/पौध उपचार –

अधिक किस्मों की रोपाई 80×30 सेमी. तथा बौनी किस्मां की रोपाई 75×30 सेमी. की दूरी पर करनी चाहिए। जड़ व तने में लगनेवाले सड़न रोग से बचाव हेतु रोपाई करने से पूर्व टमाटर पौध को स्यूडोमोनास (10ग्रा.प्रति ली.) या बीजामृत के 3 प्रतिशत घोल में 15-20 मिनट डुबोकर शाम के समय रोपाई करें।

खाद एवं जैविक उर्वरक-

टमाटर की उन्नतशील प्रजातियों के लिए 100 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 50 कि.ग्रा पोटाश तथा संकर किस्मों के लिए 150 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 80 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 60 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टे. की आवश्यकता होती है। इनकी पूर्ति हेतु खेत की तैयारी के समय 150-200 कि्ंव. सड़ी गोबर की खाद अथवा 75-100 कि्ंव. कम्पोस्ट या 30-40 कि्ंव. वर्मी कम्पोस्ट प्रति हेक्टे. की दर से अच्छी तरह मिट्टी में मिलाएँ।

फफूंद रोगों से बचाव हेतु गोबर की खाद में 3.4 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा मिलाकर प्रयोग करें। जैव उर्वरक (अजैटोबैक्टर, एजोस्पोरिलम, पी.एस.बी.) 3.4 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. की दर से 200 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर पूरक खाद के रूप में भूमि में प्रयोग करें।

गौ.मूत्र 10 प्रतिशत घोल का पहला छिडकाव रोपाई के 25-30 दिन बाद तथा दूसरा फूल आने की अवस्था पर सायं काल के समय करें। पहली निकाइ-.गुडा़ई के समय रोपित पौधों में 20-25 कि्ंव. प्रति हेक्टे. नादेप/वर्मी का कम्पास्ेट का बुरकाव करे। वर्मीवाश तथा पंचगव्य के 5 प्रतिशत घोल के 3 छिडक़ाव क्रमशः फूल आने से 8-10 दिन पहले, फूल आने के समय तथा फल बनने की अवस्था में करने से फलों का अच्छा विकास एवं फल गुणवत्तायुक्त होते है।

सिंचाई कैंसे करें –

पौध रोपाई के बाद तुरन्त हल्की सिंचाई करनी चाहिए। गर्म मौसम में 7.8 दिन तथा सर्दियों में 10-12 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें। भूमि में नमी को लगातार बनाये रखने के लिए ड्रिप सिंचाई अधिक उपयोगी है।

सहारा (स्टेकिंग) देना –

संकर टमाटर व अधिक ब किस्मों की अधिक पैदावार लेने के लिए पौधों को सहारा (स्टेकिंग) देना अनिवार्य है। जिसके लिए 3-3 मी. के फासले पर पौधों की पंक्ति में 3 मी. ऊंचे डण्डे गाढ़ देते हैं। जिससे पौधों को सहारा मिल जाता है तथा वह जमीन पर नही गिरते। स्टेकिंग से पत्तियों एवं फलों पर कम बिमारियां लगती हैं एवं फसलों में छिड़काव तथा तुड़ाई करने मे ं भी आसानी रहती है।

खरपतवार प्रबंधन –

टमाटर में साधारणतः 2-3 निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। पहली निकाई रोपाई के लगभग 20-25 दिन बाद, दूसरी व तीसरी निकाई.गुड़ाई 40-45 एवं 60-70 दिन बाद करनी चाहिए। साथ-साथ पौधें पर मिट्टी भी चढ़ा देना अवाश्यक है। जाडे़ की व बंसतकालीन फसल में पलवार (मलि्ंचग) का प्रयागे करने से खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है।

फल छेदक –

यह बहुत ही हानिकारक सुण्डी है जो मुख्य रुप से फलों में छेद करके बहुत नुकसान पहुचाते हैं।

प्रबंधन –

गर्मी में खेत की गहरी जुताई करके कीट की विभिन्न अवस्थाओं को नष्ट करना।

  1. गेंदे को ट्रैप क्रॉप के रुप में लगाकर सूत्र कर्मी, फल छेदक आदि कीटों की रोकथाम करना।
  2. फेरोमैन ट्रैप लगाकर फल छेदक कीट की निगरानी एवं रोकथाम करना।
  3. निमोली शत 5 प्रतिशत तथा तरल कीटनाशक 10 प्रतिशत का 15 दिन के अन्तराल पर 2.3 छिड़काव।
  4. बिवेरिया बेसियाना 3.4 कि.ग्रा.या बी.टी. 2.2.5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. का फूल बनने से पहले एव फल बनने पर छिड़काव।
  5. ट्राइकोग्रामा अण्ड परजीवी के 50 हजार अण्डे (ट्राइकोकार्ड)/हेक्टे.को खेत में लगायें।
  6. फल छेदक की रोकथाम हेतु एन.पी.वी. 500 एल.ई. घोल का प्रति हेक्टे. छिड़काव।

सफेद मक्खी/चेपा/हरा तेला-

ये सभी रस चूसने वाले हानिकारक कीट हैं। जो पत्तियों व पौधों से रस चूसकर उसको कमजोर कर देते है। तथा वायरस फैलाकर पत्तियों का मुड़ना, पीला पड़ना तथा पीला मोजेक जैसे-वायरस रोग फैलाते हैं।

प्रंधन –

  1. खरपतवार एवं परिपोषी पौधों को नष्ट करना।
  2. नर्सरी में नेट (100 मैस) लगाकर पौध को कीडों के आक्रमण से सुरक्षित रखना।
  3. पीले चिपचिपे (येलो स्टीकी) ट्रैप लगाकर सफेद मख्खियों का नियंत्रण करना।
  4. निमोलीशत 5 प्रतिशत या नीम तेल 3 प्रतिशत या छाछ तथा गौमूत्र (1 ली./12.15 ली. पानी) का छिड़काव।
  5. अधिक प्रकोप होने पर वर्टी सिलियम लैकानी 5.10 ग्रा./ली. पानी की दर से छिड़काव।

रोग प्रबंधन –

अगेता.-पछेता व आल्टरनेरिया झुलसा-

इस रोग में पौधों की पत्तियों पर धब्बे बनकर पत्तियां सूख जाती है तथा फलों पर प्रकोप होने से फल खराब हो जाते हैं।

प्रबंधन –

प्रतिरोधी प्रजातियां का चुनाव, उचित फसल चक्र, भूमि व बीज का उपचार, पौधों का उचित फासला, समय से बुआई, उचित पोषण प्रबंधन आदि को अपनाकर फसल को इन रोगों से बचाया जा सकता है। सुरक्षात्मक उपाय के तौर पर फसलों में 15-20 दिन पुरानी खट्टी छाछ तथा हल्दी (2 ग्रा./ली. छाछ) का घोल बनाकर 1ः10.15 (1 ली. छाछ एवं 10-15 ली. पानी) का छिड़काव करें।

उक्टा रोग-

फफूंदी तथा जीवाणु जनित रोग हैं तथा पौधे की जडों को प्रभावित करके पौधों को नष्ट कर देता है।

उपचार-

गर्मी की गहरी जुताई, फसल चक्र, फसल अवशेष नष्ट करना, बीज, पौध एवं भूमि का जैव फफूंदनाशकों द्वारा शोधन एवंभूमि में नीम की खली का प्रयोग। लीफ कर्ल .यह रोग रस चूसने वाले कीटो द्वारा वायरस के संक्रमण के कारण फैलता है।

उपचार-

स्वस्थ बीज, रोग रोधी किस्में, खरपतवार एव परपोसी पौधों को नष्ट करना, कीटों से सुरक्षा के लिए पौधशाला में नेट लगाना, बीमारी ग्रस्त पौधों को नष्ट करना, रोग फैलाने वाले कीटों का नियंत्रण करना।

फलों की तुडाई, सफाई, पैकिग एवं विपणन –

खेत से टमाटर तोडने के पश्चात रोग ग्रस्त, सडेगले आदि फलों को छांटकर अलग कर दें तथा आकार के अनुसार ग्रेडिंग करे। बाजार में भेजने के लिए फलों को साफ करके लकड़ी के क्रेट्स का उपयोग करना लाभदायक व सुविधाजनक रहता है। पूर्ण विकसित हल्के हरे रंग के टमाटर को 12.5 डिसें तापमान पर 30 दिन तक और पके हुए टमाटर को 4.5 डि.सें. पर 10 दिन तक भण्डारण किया जा सकता है।

बीज उत्पादन –

किसानों को टमाटर की उन्नतशील किस्मों का जैविक बीज उत्पादन अपने ही प्रक्षेत्र पर करना चाहिए। रोपाई के समय प्रमाणित शुद्ध किस्मों के स्वस्थ पौधों को खेत में एक किनारे पर रोपित करना चाहिए। एक किस्म से दूसरी किस्म के बीच में कम से कम 50 मीटर का फासला होना अनिवार्य है, अन्यथा दोनों किस्म के बीज में आनुवांशिक शुद्धता नहीं रह पायेगी। रोग एवं कीट नियंत्रण समय पर करना चाहिए।

टमाटर की जैविक खेती कैसें करें ? How to do organic farming of Tomato in Hindi

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