उड़द दलहनी की खेती जैविक तरीके से कैसे करे | How to do urad pulse cultivation organically

उड़द दलहनी की खेती जैविक तरीके से कैसे करे | How to do urad pulse cultivation organically

urad pulse cultivation organically

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भूमि

उड़द की खेती के लिए हल्की दोमट तथा मटियार भूमि उपयुक्त रहती है। खेत का पलेवा करके दो जुताई देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करके खेत तैयार हो जाता है। खेत में नमी संरक्षण के लिए जुताई के बाद पाटा लगाना आवश्यक है। उड़द की खेती मुख्य रूप से खरीफ में की जाती है। लेकिन जायद में समय से बुआई करने से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

बीज दर

इसलिए जायद में 16-18 किग्रा. तथा खरीफ में 15-16 किग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता है। उर्द के पौधे की बढ़वार जायद में कम होती है।

बीज शोधन एवं बीज उपचार

शोधन : प्रति किलो बीज को 10 ग्राम ट्राईकोडर्मा से शोधित करना चाहिए।
उपचार : बीज शोधन करने के पश्चात बीजों को एक बोरे पर फैलाकर उर्द के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें। बीज को उपचारित करने के लिए राइजोबियम कल्चर का पूरा पैकेट (200 ग्राम) को आधा लीटर पानी में मिला दें। फिर इस मिश्रण को 10 किग्रा. बीज के ऊपर छिड़क कर हल्के हाथ से मिलायें, जिससे बीज के ऊपर एक पतली परत बन जाती है। इस बीज को छाया में 1-2 घण्टे सुखाकर बुवाई प्रातः 9.00 बजे तक या सांयकाल 4.00 बजे के बाद करें। क्योंकि तेज धूप में कल्चर के जीवाणुओं के मरने की सम्भावना रहती है। ऐसे खेतों में जहां उर्द की खेती पहली बार अथवा काफी समय के बाद की जा रही हो वहां कल्चर का उपयोग अवश्य करें।

उर्द दलहनी की प्रजातियां

बुवाई

उर्द की बुआई का समय 15 फरवरी से 15 मार्च तथा खरीफ में जुलाई के पहले सप्ताह में मानसून की वर्षा के साथ ही हल के पीछे कूंड में बुआई कर देनी चाहिए। कूड से कूड की दूरी 30-45 से.मी. रखनी चाहिए तथा बुआई के बाद तीसरे सप्ताह में घने पौधों को निकाल कर पौधे की दूरी 10 से.मी. कर देना चाहिए।

खाद एवं जैव उर्वरक

फसल में 10-15 किग्रा. नत्रजन, 40 फास्फोरस तथा 20 किग्रा. सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकता पड़ती है। इन तत्वों की पूर्ति के लिए 20-30 कुन्तल सड़ी गोबर की खाद अथवा 10-15 कुन्तल नादेप कम्पोस्ट खाद के साथ जैव उर्वरक 2 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाकर बुआई से पूर्व मिला देना चाहिए।

निराई गुडाई व खरपतवार नियंत्रण

खर-परतवारों की रोकथाम करने के लिए दो बार निराई-गुडाई करनी चाहिए। पहली निराई बुआई के 20-25 दिन बाद तथा दूसरी निराई 35-40 दिन बाद अवश्य करनी चाहिए।

सिंचाई

पहली सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन बाद करनी चाहिए। पहली सिंचाई समय पर करने से जड़ों में ग्रन्थियों का विकास तेजी से होता है। बाद में आवश्यकतानुसार 10-15 दिन बाद हल्की सिंचाई करते रहें। उर्द में बौछारी विधि से सिंचाई करना अत्यधिक लाभदायक रहता है। खरीफ की फसल में प्रायः सिंचाई की आवश्यकतानुसार नहीं होती है। लेकिन बढवार के समय यदि काफी समय तक वर्षा न हो तो फसल में हल्की सिंचाई करना जरूरी है। वर्षा के अभाव में सितम्बर माह में एक सिंचाई देने से पैदावार बढ़ जाती है।

कीट एवं रोग नियंत्रण

बिहार हेयरी कैटरपिलर (कमला कीट)
पहचान – इस कीट की गिडारे पतियों को बहुत तेजी से खाती हैं और फसल को काफी हानि पहुंचाती है। इसके शरीर पर रोये होते हैं।
उपचार : इसकी रोकथाम हेतु बी.टी. या एन.पी.वी. 500 मिली. अथवा 2 कि.ग्रा. बिवेरिया का प्रति शरीर पर रोये होते हैं।
कीट का प्रकोप होने पर फसल पर गौ मूत्र + गोबर +वनस्पति (ऑक, धतूरा, नीम पत्ती आदि) से तैयार किया गया तरल कीटनाशी 10-15 दिन के अन्तर पर छिड़काव करें।

फली छेदक कीट

उपचार – इसकी रोकथाम के लिए बिवेरिया बेसियाना 5 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ छिड़काव करें। नीम ऑयल 4 मिली. प्रति लीटर पानी के साथ व दूसरा छिड़काव 15 दिन बाद करना चाहिए। कीटों का प्रकोप होने पर फसल पर गौ मूत्र +गोबर +वनस्पति (ऑक, धतूरा, नीम पत्ती आदि) से तैयार किया गया तरल कीटनाशी 10-15 दिन के अन्तर पर छिडकाव करने से कीट नियंत्रण किया जा सकता है।

पीला चित्रवर्ण रोग (पिला मोजेक)

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उपचार : रोग से प्रभावित पौधों के पत्ते पीले व कहीं-कहीं से हरे दिखाई देते हैं। रोग की अधिकता हो जाने से पौधे के सारे पत्ते पीले पड़ जाते हैं जो पैदावार को प्रभावित करते हैं। इस रोग की रोकथम के लिए रोगरोधी मिस्म “आषा“ उगायें। यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलाया जाता है। रोगरोधी पौधों को जड़ से उखाडकर नष्ट कर दें तथा फसल में समय से खर-पतवार नियंत्रण करें।

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