आर्गेनिक खाद् से खेत को स्वस्थ बनाये जिससे से अच्छा उत्पादन लें | Organic manure make land with healthy so that you can get good production in Hindi

परिचय –

पौधों को स्वस्थ रखने के लिए तथा अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए करीब 18 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इन पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए जैविक खेती में संसाधनों को तैयार करना आवश्यक है, ताकि पौधों को सभी आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध हो सकें। पौधों को तुरन्त पोषक तत्व उपलब्ध कराने के लिए रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर रहने से भूमि की उर्वरा शक्ति ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकती है। दूसरी तरफ कीटनाशियों के विषैले रसायनों के दुष्परिणाम से सारा विश्व चिन्तित है। वैज्ञानिकों के अनुसार कीटनाशी के अंधाधुन्ध प्रयोग से मित्र कीट लगातार घट रहे हैं तथा हानिकारक कीटों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। इन रासायनिक दुष्परिणामों से यह स्पष्ट दिखायी देने लगा है कि रासायनिक खेती टिकाऊ विकल्प नहीं हो सकती है। अतः सन् 90 के दशक से ही विश्व के अनेक देशों ने जैविक खेती की वकालत करना प्रारम्भ कर दिया है। नत्रजन की कमी को अन्य स्रोतों से भी पूरा कर सकते हैं। वैसे भी वायुमण्डल में नाइट्रोजन की प्रचुर मात्रा गैस के रूप में पायी जाती है। पौधे अपने लिए नाइट्रोजन की आवश्यकता विशेष सूक्ष्म जीवाणुंओं की मदद से आपूर्ति वायुमण्डल से कर सकते हैं तो क्यों न पौधों को इस प्रकार की सूक्ष्म जीवाणुं प्रजातियां जड़ों में प्रदान की जायें। अपने लिए नाइट्रोजन की आवश्यकता की पूर्ति करने के साथ-साथ मृदा को भी नत्रजन प्रदान कर सकें।

मृदा परीक्षण –

मृदा परीक्षणों के अनुसार भूमि में फास्फोरस भी अघुलनशील अवस्था में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, लेकिन ह्मूमस व कार्बनिक पदार्थों की न्यूनता के कारण सूक्ष्मजीवी इन्हें पौधों को उपलब्ध नहीं करा पाते हैं। देश-विदेश के वैज्ञानिकों ने इन दोनों महत्वपूर्ण तथ्यों पर काफी शोध करके ऐसे जीवाणुओं का पता लगया है जिनकी कुछ जातियां भूमि में वायुमण्डल से नाइट्रोजन का अवशोषण करके पौधों को उपलब्ध कराती है तथा कुछ जातियां भूमि में अघुलनशील फॉस्फोरस को घुलनशील अवस्था में परिवर्तित कर पौधों को उपलब्ध करा देती है। जैसे-नत्रजन के लिए राइजोबियम कल्चर, एजोटोबैक्टर कल्चर तथा फॉस्फोरस को सुलभ बनाने के लिए पी.एस.बी.कल्चर आदि।

किसान अपने प्रक्षेत्र व घर के कूड़ा-करकट, गोबर एवं पशु मूत्र एवं उपरोक्त सूक्ष्म जीवाणुंओं के स्रोत की सहायता से एक अच्छी, सस्ती जैविक खाद तैयार कर अपनी फसल का उत्पादन बढ़ायें तथा मिट्टी के स्वास्थ तथा पशुओं के स्वास्थ को सही रखें।

जैविक खाद –

आर्गेनिक खेती में पारंपरिक खेती के बराबर उत्पादन लेने के लिए विभिन्न प्रकार के जैविक खादों का प्रयोग किया जाता है। मुख्यतया जैविक खाद/ कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए नादेप कम्पोस्ट, सी.पी.पी. तकनीक का प्रयोग किया जाता रहा है। जैविक खादएक महत्वपूर्ण, पोषक तत्वों युक्त, लाभदायक सूक्ष्म जीवाणुओं से युक्त तथा आसानी से तैयार की जाने वाली एक जैविक खाद है। इस खाद को किसान अपने खेत पर स्वंय तैयार करके बनाये तथा आगामी फसल जैसे, मक्का, कपास, ज्वार, तथा बजारा आदि में प्रयोग कर अधिक उत्पादन ले तथा मिट्टी की उत्पादकता, स्वास्थ को बनाये रखें।

जैविक खाद

Organic-Manure-unit.

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कैसें बनायें

जैविक खाद “ईकाई” बनाने के लिए जमीन की सतह से नीचे एक गड्ढे का निर्माण किया जाता है जिसका आकार 6x4x1.5 फीट होता है तथा इसके लिए निम्न सामग्री की आवश्यकता होती है।

जैविक खाद बनाने की सामग्री :

1. पशुओं का गोबर (देशी गाय गोबर को प्राथमिकता)                                            150 कि.ग्रा.
2. गुड़                                                                                                                   1.00 कि.ग्रा.
3. तालाब की काली मिट्टी                                                                                      3.00 कि.ग्रा.
4. बरगद, पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी जिस स्थान पर पत्ते आदि सडे़ हुये हों     2.00 कि.ग्रा.
5. उपजाऊ खेत की मिट्टी                                                                                       2.00 कि.ग्रा.
6. कल्ली का चूना (पानी में बुझा हुआ)                                                                   1.00 कि.ग्रा.
7. गौ-मूत्र (न मिलने पर दुधारू पशु मूत्र)                                                                15.0 लीटर

खाद बनाने की प्रक्रिया :

सर्व प्रथम किसी उपजाऊ खेत की तलाश करें, जहां छाया हो तथा पानी का निकास हो। वर्षा से बचाने के लिए ऊपर छप्पर डालनी होगी ताकि खाद एवं पोषक तत्व वर्षा के पानी के साथ बह कर बाहर न जाएँं। अब 6x4x1.5 फीट का गड्ढ़ा बनाएं। गड्ढे के नीचे का भाग कच्चा ही रखें। गड्ढे की लिपाई गोबर से करें तथा गाय का गोबर हो तो सर्वोत्तम है। अब सभी सामग्री (क्रम संख्या 2 व 3) को छोडकर दुधारू पशु-मूत्र या गौ-मूत्र के साथ अच्छी तरह से मिलाकर गड्ढे में डाल दें। गड्ढे में सामग्री भरते समय 5-6 लकड़ी के डण्डे गाड़ दें और जब सामग्री जम जाए तब एक दो दिन बाद डण्डों को बाहर निकाल दें। गड्ढे की खाद तैयार होने तक (लगभग 90 दिन) भीगे (गीले) टाट, जूट बोरी के टुकडे से ढ़क दें तथा आवश्यकतानुसार हल्की-हल्की फुहार से पानी का छिड़काव करते रहे ताकि गड्ढे में उचित नमी बनी रहे और सड़न क्रिया अच्छी प्रकार हो सके। करीब 90-100 दिन में खाद बनकर उपयोग हेतु तैयार हो जाती है। तैयार खाद निकालकर बिन्दु 2 व 3 सामग्री को अच्छी तरह मिलाकर 10 दिन के लिए ढ़क कर छोड़ दें। इसके बाद प्रयोग करें। एक गड्ढे से लगभग 85-90 कि.ग्रा. खाद तैयार हो जाती है जो आधारभूत एक एकड़ जरूरत के लिए तैयार है जिसकों फसल आवश्यकतानुसार और गोबर की खाद में मिलाकर डाला जायें। इस प्रकार खाद की खेत के क्षेत्रफल की आवश्यकतानुसार और गड्ढे बना लें।

तैयार जैविक खाद का रासायनिक संगठन
1.   पी.एच.                            6.5-7

2.  ई0सी0 (डीसए/एम)         < 4 3

2-5×10

3.  नत्रजन                        1.68-2.0 प्रतिशत

2-3 x 1006

4. फास्फोरस                     4.30-5.25 प्रतिशत

2×109
5. पोटैशियम                    3.80-4.25 प्रतिशत

2-5×106

6. कैलशियम                     6.00-8.5 प्रतिशत

2×107

7. गंधक                              2.5-3.0 प्रतिशत
8. ह्यूमस                             5.00-7.2 प्रतिशत
9. पानी धारण क्षमता          90-130  प्रतिशत

सूक्ष्म जीवाणुओ की संख्या –

10. एजोटोबैक्टर

11. एजास्पाइरिलम

12. ट्राईकोडर्मा

13. राइजोबियम

14. स्यूडोमोनास

जैविक खाद से लाभ :

(1) मिट्टी की उत्पादकता में वृद्धि।
(2) लाभदायक सूक्ष्म जीवों में वृद्धि।
(3) पौधों में कीट-रोग के प्रति प्रतिरोधकता उत्पन्न होती है।
(4) मिट्टी का पीएच मान स्थिर रखने में सहायक।
(5) मिट्टी की ह्यूमस मात्रा बढ़ती है जिससे उत्पादकता/उर्वरता में वृद्धि होती है।
(6) मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा में सुधार।

यदि किसान के पास दुधारू पशुओं के न होने की अवस्था में वैज्ञानिकों ने सलाह दी है कि वे 100 कि.ग्रा. ताजा गोबर से भी “ कम्पोस्ट खाद” बना सकते है।

ऑन फार्म इनपुट  – कम्पोस्ट खाद बनाने की विधि

इस विधि में खाद बनाने के लिए एक 200 लीटर खुले मुंह वाले प्लास्टिक ड्रम में 100 कि.ग्रा. ताजे गोबर को 15 लीटर गौ-मूत्र तथा 5 लीटर पानी को अच्छी तरह मिला लें। 1 कि.ग्रा. गुड़ 1 कि.ग्रा., उपजाऊ खेत की मिट्टी 5 कि.ग्रा. तथा कल्ली का चूना (पानी में बुझा हुआ) 1 कि.ग्रा. साम्रगी को भी अच्छी तरह से मिला लें। मिलाने के उपरांत इसे ठण्डी व छायादार स्थान पर 72 घण्टे के (तीन दिन) के लिए जूट (टाट) आदि के बोरे से ढ़ककर छोड दें। तीन दिन के पश्चात् इस इकाई में बने गड्ढे में अपने प्रक्षेत्र से प्राप्त फसल अवशेषों की 6 इन्च मोटी तह लगायें, इसके ऊपर 10 कि.ग्रा. उपरोक्त मिश्रण को अच्छी तरह से फैलायें। पुनः इस प्रक्रिया को 3 बार दोहरायें तथा शेष बचे मिश्रण को समान रूप से ऊपर फैला दें तथा ऊपर से मिट्टी मिश्रित गोबर के लेप से बन्द कर दें तथा 6-7 लकड़ी के डण्डे ऊपर से गाढ़ दें। गढे हुये डण्डों को 3-4 दिन बाद हवा के हिलाते रहें तथा आवश्यकतानुसार हल्की हल्की फुहार से पानी का छिड़काव करते रहें, ताकि गड्ढे में उचित नमी बनी रहे। करीब 90-100 दिन में सड़न क्रिया के बाद एक अच्छी, उच्च गुणवत्ता वाली करीब 80-85 किग्रा. खाद तैयार हो जाती है। यह तैयार खाद आधारभूत जो एक एकड़ क्षेत्र के लिए पर्याप्त होती है। अपनी आवश्यकतानुसार खाद के लिए और गड्ढे बनाकर खाद तैयार कर लें। जिसको फसल की आवश्कतानुसार और गोबर खाद में मिलाकर डालें।

खुली जगह पर गोबर के ढे़र न रखें :गांवों में सामान्यतः पशुओं के गोबर को खुली जगह ढे़रों के रूप में एकत्रित करके रखा जाता है। रोजाना एकत्रित होने वाले गोबर, कूडा-करकट व पशुओं के चारे इन ढे़रों पर एकत्रित होते रहते हैं। इस खुले ढेर में वर्षा, धूप आदि के कारण गोबर व अन्य पदार्थों में उपस्थिति कुछ नाइट्रोजन व अन्य पोषक तत्व अमोनीकरण की प्रक्रिया द्वारा उड़ जाते हैं एवं कुछ नाइट्रोजन व अन्य पोषक तत्व पानी के साथ बह जाते हैं तथा सूर्य की तेज धूप में लाभदायक सूक्ष्म जीवाणुंओं की संख्या तीव्रता से घटती है। परिणामस्वरूप गोबर की खाद की 80 प्रतिशत गुणवत्ता व क्रियाशीलता खत्म हो जाती है। अतः गोबर के ऊंचे ढे़र के रूप में एकत्रित करने की अपेक्षा गड्ढे में एकत्रित करना ज्यादा उपयोगी होता है।

जैविक खाद क्यों –

कम्पोस्ट खाद के उपयोग से खेतों को सबसे अधिक लाभ जैविक कार्बन से होता है। इस जैविक कार्बन को किसी भी औद्योगिक उत्पाद के रूप में तैयार नहीं किया जा सकता है। अतः गोबर खाद या वर्मीकम्पोस्ट खाद के अतिरिक्त मृदा में इतनी अधिक मात्रा में जैविक कार्बन पहुंचाने का दूसरा कोई सस्ता और सरल माध्यम नहीं है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मृदा में जैविक कार्बन की उपस्थिति से पौधों को नत्रजन एवं सम्पूर्ण खुराक तत्वों की श्रृखला मिलती है। पौधों की जड़ों व मृदा में उपस्थिति अनेक प्रकार के जीवाणु वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण तथा अघुलनशील फॉस्फोरस में परिवर्तित कर पौधों को उपलब्ध करा सकते हैं, लेकिन जैविक कार्बन की न्यूनता के कारण ये जीवाणुं ठीक से पनप नहीं पाते एवं ठी प्रकार से कार्य नहीं कर पाते हैं। अतः जैविक कर्बन कृषि योग्य मृदाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व माना जाता है। कृषि योग्य मृदाओं में कार्बन की न्यूनता के कारण सूक्ष्मजीवी उचित प्रकार से सक्रिय नहीं हो पाते हैं जिससे मृदा में ह्यूमस का निर्माण नहीं हो पाता है और मृदा की जलधारण क्षमता कम हो जाती है।

तरल खाद और कीटनाशी –

तरल खाद एवं तरल कीटनाशी, गोबर, गौ-मूत्र तथा विभिन्न प्रकार के औषधीय एवं पौष्टिक पौधों एवं वृक्षों की पत्तियों द्वारा बनाये जाते है जैसे- नीम, अरण्डी, करंज, मदार (आक), सदाबहार (बेशरम बेल या आइपोमिया), लैण्टाना, धतूरा, कंटीली, कनेर, आदि। इस तरल खाद में कीट एवं रोग निवारक गुण होते है।

सामग्री –

प्लास्टिक ड्रम 200 लीटर, नीम, अरण्डी, आईपोमिया, लैण्टाना, आक, कनेर की पत्तियां, 5-10 किलों ग्राम, गाय का गोबर, 5 लीटर, गौ-मूत्र, 5 लीटर, छाछ, 5 लीटर, बेसन 500 ग्राम, गुड़ 500 ग्राम, लहसुन 100 ग्राम, मिट्टी (बरगद, पीपल के पेड के नीचे से या अपने 500 ग्राम खेत में पेड़़ के नीचे से लेवें, जहाँ रासायन का उपयोग न किया गया हो)
बनाने की विधि एवं उपयोग :सामग्री में दिये गये पेड़ पौधों में से किसी एक या दो के फूल पत्तियों की बारीक कुट्टी कर लें। सभी सामग्री को 200 लीटर वाले प्लास्टिक ड्रम में डालकर ड्रम को पूरा पानी से भर देवें। नियमित रूप से दिन में दो बार (सुबह-सायं) लकड़ी के डण्डे से ड्रम में तरल को मिलाया जाय तथा बोरे या जाली से ढ़ककर रखा जाये। उपयुक्त तापमान (30-35 से) होने पर तरल खाद एवं कीटनाशी 5-7 दिन में तैयार हो जाती है। तैयार खाद एवं कीटनाशी के 5 से 10 लीटर को 100 लीटर पानी में घोल कर फसलों पर छिड़काव करें। तैयार घोल को 15 से 20 दिन से ज्यादा भण्डारण मत करें।