फलदार वाले पेड़ों की प्रशिक्षण एवं काट-छाँट की नई तकनीक

              फलदार वाले पेड़ों की प्रशिक्षण एवं काट-छाँट की नई तकनीक  (New technique and pruning of fruit trees)

बागवानी पद्धति में विभिन्न प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं जिनमें नये एवं पुराने पौधों को आकार देना तथा पौधों की समय से कटाई एवं छटाई का कार्य करना आदि। बागवानी में कटाई-छंटाई पौधों से प्राप्त उत्पाद एवं फलों को गुणवत्तायुकत बनाती है। कटाई-छंटाई का कार्य करने से पौधों को धूप एवं हवा का संचार आसानी से मिलता रहता है। बागवानी रोपित के पहले एवं दूसरे वर्ष के अन्तराल पर कार्य आरम्भ कर देना चाहिए जो की एक प्रशिक्षण कार्यक्रम है।

किसानों को फल वाले पेड़ों की प्रशिक्षण एवं काट-छाँट की नई तकनीक के बारे में जाना चाहिए Farmer should know about new techniques of training and pruning of fruit trees in Hindi

pruning techniques of fruit trees

पौधों में काट-छांट सूखी हुई, बीमार टहनियों, मरी हुई टहनियों को काटने के लिए की जाती है, जिससे पौधों में फल देने की क्षमता बढ़ जाती है तथा फलों अच्छा रंग एवं गुणवत्ता बढ़ोत्तरी के साथ देखने में सुन्दर होते है। नये पौधों की काटछांट साल के आरम्भ में कर सकते है तथा फल देने वाले पौधों की काट-छांट फलों की तुड़ाई के पश्चात् अथवा जनवरी-फरवरी माह पतझड मौसम के समय जब पौधों की पत्तियां झडकर नीचे गिर जायें तब करनी चाहिए।

पौधों की काट-छांट इस प्रकार करें :-

बागवानी आडू : आडू में खाली शीर्ष सबसे उत्तम विधि है। इस विधि अनुसार बीच वाला शीर्ष 45-46 सें.मी. पर काट देना चाहिए तत्पश्चात पौधे के चारों तरफ टहनियां रखी जाती हैं। प्रत्येक साल कटाई करने पर सभी टहनियों को एक तिहाई तक काट दिया जाता है। इसी तरह ऊपर वाली टहनियों को 15 सें.मी. भाग रखकर काट दिया जाता है।

अनार : अनार बागवानी को काट-छांट कर झाड़ीनुमा आकार बनाया जाता है। इसके लिए जमीन की सतह से कई मुख्य तने बढ़ने दिये जात हैं। पौधों को रोपते समय साइड की विभिन्न शाखाओं में कुछ को काट दिया जाता है और मुख्य तने को 1 मीटर ऊंचाई पर काट दिया जाता है। काटे गये हिस्से से 25 से 30 सें.मी. नीचे 4-5 शाखाओं जोकि चारों दिशाओं में फैली हो, को बढ़ने दिया जाता है। इसी प्रकार 2-3 साल में पौधों का आकार बदल जाता है और एक अच्छी बागवानी दिखती है। ऐसा न करने पर टहनियों के अगले हिस्से से पत्तों की बढ़वार होने लगती है तथा फल भी नहीं लगते जिससे पौधों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। बगीचे को अच्छा बनाये रखने के लिए और फसल के लिए प्रत्येक वर्ष नई शाखाएं पौधे के चारों तरफ लेनी चाहिए।

बेर : बेर के पौधों को आरम्भ में बढ़वार के लिए सहारे की जरूरत पड़ती है। बेर पौधों में लकड़ी अथवा बांस के सहारे से बांधना चाहिए जिससे पौधों सीधा रहे। मुख्य तने से केवल 3-4 शाखाओं को ही बढ़ने देना चाहिए। बेर का पौधा गर्मी के मौसम में अपनी पत्तियों को गिरा देता है। इसी बीच के समय मई-जून में बेर पौधों की कटाई-छंटाई आरम्भ कर देनी चाहिए। बेर पौधों में कटाई-छंटाई का बहुत ही महत्व है। क्योंकि छंटाई वाली नई पत्तियों के कक्ष में फूल निकलते हैं। इसी कारण पूर्व वर्ष् की टहनियों को काटना चाहिए और काटते समय पिछले वर्ष की प्राथमिक शाखाओं से निकली छटी से आठवी द्वितियक शाखाओं के ऊपर वाले हिस्से से काटना चाहिए।

आम : आम के फलों में उत्तम स्वाद, रंग, खुशबू तथा पौष्टिक गुणों के कारण इनकी देश-विदेशों में बहुत तेजी मांग होती है। आम के पौधे लगाने के 3-4 वर्षों के बाद पौधा फल देने लगता है तथा यह लगभग 50 वर्षों तक फल देता है। यह सत्य है कि पौधा पुराने होने पर उत्पादन कम देता है। पौधा किसानों हेतु लाभदायक नहीं रहता है। ऐसी स्थिति में किसानों को या तो नये पौधे रोपित करने चाहिए अथवा उन्हीं का जीर्णोंद्धार करना चाहिए जिससे कि पौधे 20-25 सालों तक अच्छा उत्पादन देते रहे। नये पौधे लगाने से 3-4 वर्षों तक कोई उत्पादन प्राप्त नहीं होता जबकि पुराने पौधों का जीर्णोंद्धार करने से घर में लगड़ी की भी कमी नहीं रहती है। जीर्णोंद्धार प्रक्रिया में वैज्ञानिक विधि से पौधों की डाली, छत्रक और फल देने वाली शाखाओं का निर्धारण किया जाता है और कृत्रिम वृक्षों की 2 वर्षों तक समग्र देख-रेख कर अगले वर्ष फल देने योग्य बना दिया जाता है।

जीर्णोंद्धार की पहली विधि – पुराने बगीचे जो 10 मीटर तथा 10 सें.मी. की दूरी पर लगाये जाते है और ये 40-50 वर्षों में घने हो जाते है। ऐसे बगीचों में लम्बी-लम्बी तथा बिना पत्ती और डाली की शाखाओं की अधिकता हो जाती है। ऐसे पौधों में सूर्य का प्रकाश नहीं जा पाता तथा वायु के संरचना में भी बाधा पड़ती है। परिणाम स्वरूप बीमारियों तथा कीड़ों का प्रकाप बढ़ जाता है तथा उत्पादन कम हो जाता है ऐसे पौधों को जीर्णोंद्धार प्रक्रिया द्वारा पुनः फलत में लाकर कम से कम खर्च में गुणवत्तायुक्त पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

दूसरा चरण :
जीर्णोद्धार हेतु पौधों की चयनित शाखाओं को जमीन से 4-5 मीटर की ऊँचाई सफेद पेंट से चिन्हित कर देते हैं शाखाओं को चुनते समय यह ध्यान रखें की चारों दिशाओं में बाहर की तरफ स्थित शाखाओं को ही चुनें। पौधों के बीच में स्थित शाखाओं, रोगग्रस्त व आडी-तिरछी शाखाओं, को उनके निकलने के स्थान से ही काट देना चाहिए। शाखाओं को तेज धार वाली औजार जैसे- आरी या मशीन चालित की सहायता से काट-छांट कर देनी चाहिए। तत्पश्चात ऊपर से पूरी शाखा काटने से डालियों के फटने की सम्भावना नहीं रहती है।किसानों को फल वाले पेड़ों की प्रशिक्षण एवं काट-छाँट की नई तकनीक के बारे में जाना चाहिए Farmer should know about new techniques of training and pruning of fruit trees in Hindi

https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%96%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A5%80