भेंड़ों एवं बकरियों को बिमारियों से कैसें बचायें |

भेंड़ों एवं बकरियों को बिमारियों से कैसें बचायें | How to Protect Sheep and Goats from diseases in hindi

आर्थिक रूप से कमजोर पशुपालकों की रोजी-रोटी पी.पी.आर. रोग सहारा छीन लेता है। इसलिये बकरियों एवं भेड़ों में फैलने वाला एक पी.पी.आर संक्रामक विषाणुजन्य घातक बीमारी है। जिसमे भेंड़ बकरियों की मृत्यु हो जाती है।

रोग के लक्षण-

1. पशुओं में मुख्यतः निमोनिया के लक्षण दिखाई देते है तथा फेफड़ों में छोटे-छोटे लाल रंग व कोशिकाएं ठोस होकर जम जाती है।
2. मुंह के होंठ मुख्यतः सुख जाते है और कट भी जाते है।
3. ओठो, मुंह तथा मसूढे़ तथा जीभ पर नेक्रोटिक दाने दिखाई देते है। जो ज्यादातर अल्सर का रूप धारण कर लेते है। मसूढों और मुंह में मृत कोशिकाएं जमा हो जाती है।
4. तेज बुखार 105-107 डि.ग्री. फारेनहाइट हो जाता है।
5. ज्यादातर पशुओं के मुंह से लार, नाक आंख से स्राव आने लगता है। आंख लाल हो जाती हैं। मुंह से लार के बाद झागदार तथा खून मिश्रित आने लगती है। गाढ़ा स्राव होने के कारण आंखों से कीचड़ आने लगते है।
6. यह रोग से पशुओं में शुरूआत में तीव्र दस्त होने लगता है बाद में खूनी दस्त के रूप ले लेता है।
पशुपाल पशुओं के उपचार कैसे करें
7. बीमार पशुओं का चारा, दाना अलग कर दे तथा भेड़ बकरियों के मल-मूत्र लार से दूषित होने से बचाएं। बीमार पशुओं के शेड़ को 5 से 10 प्रतिशत फिनाइल 0.1 प्रतिशत कार्बोलिक एसिड या 0.5 से 1 प्रतिशत फार्मेलन या ब्लीचिंग पाउडर से धुलाई करते रहें। मृत पशुओं को 5-6 फुट गहरा गड्ढा खोदकर कच्चे चूने तथा नमक के साथ गाड़ दें।
8. जो बीमार बकरियां हो तथा मेंडों में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) रोकने के लिये इलेक्ट्राल का घोल या चीनी नमक का घोल एक-एक घंटे के अन्तर पर पिलाते रहना चाहिए।
9. मुलायम हरा चरा तथा दाल व चावल का जूस बीमार भेड़-बकरियों को खिलाते रहना चाहिये।
10. टीकाकरण के पश्चात् रोग प्रतिरोधक क्षमता दो-तीन वर्ष तक बनी रहती है, किन्तु पी.पी.आर. टिश्यू कल्चर वैक्सीन प्रतिवर्ष जाड़े मौसम में अपनी पशुओं को अवश्य दें।
11. भेंड, बकरियों को तत्काल झुण्ड से अलग कर दें।
12. बीमार पशुओं को त्वरित उपचार पशु चिकित्सालय में करें।

पी.पी.आर रोग बकरियों और भेड़ो में कैसे होता है – भेंड़ों एवं बकरियों को बिमारियों से कैसें बचायें | How to Protect Sheep and Goats from diseases in hindi

बकरियों और भेड़ों में यह रोग विषाणुजनित एक महत्वपूर्ण रोग है। जिससे बकरियों में अत्यधिक मृत्यु हो जाती है। इसलिए पी.पी.आर. रोक को बकरियों में महामारी या बकरी प्लेग के नाम से जाना जाता है। इसमें मृत्युदर प्रायः 50 से 80 प्रतिशत तक होती है। जो अत्यधिक गम्भीर स्थिति में बढ़कर 100 प्रतिशत तक हो जाती है। यह रोग विशेषकर कम उम्र के मेमनों और कुपोषण व परजीवियों से ग्रसित बकरियां में अति गम्भीर एवं प्राण घातक सिद्ध होता है।

  • पी.पी.आर.रोग का प्रसार

  • मूलतः यह बकरियों एवं भेड़ों का रोग है।
    यह रोग बकरियों में अधिक गम्भीर होता है।
    मेमने जिनकी आयु 4 महीने से अधिक एवं एक वर्ष से कम हो पी.पी.आर. रोग अधिक संवेदनशील होता है।
    पी.पी.आर. रोग मनुष्य में नहीं होता है।
    यह बीमारी बकरियों के सम्पर्क एवं नजदीकी स्पर्श से पी.पी.आर. रोग फैलता है।
    यह रोग बीमार बकरियों के आंख, नाक, और मुंह के स्राव रोग विषाणु के कारण होता है।
PPR Disease for Goat and Sheep

PPR Disease for Goat and Sheep

यह बीमारी बकरियों के छींकने से तेजी के कारण रोग का प्रसार होता है।
यह धुलाई, गर्भावस्था, परजीवी, पूर्ववर्ती रोग चेचक इत्यादि के कारण बकरियों में पी.पी.आर.संवेदनशील हो जाता है।

पी.पी.आर. रोग होने वाले बकरियों और भेड़ के कारक
विभिन्न आयु की बकरियों और भेड़ों का स्थानान्तरण मुख्य कारक है।
बकरियों के बाड़े और चारे में अकस्मात बदलाव
मुख्य कारण समूहों में नये खरीद पशुओें को सम्मिलित करना।
मौसम में बदलाव के कारण
पशुपालन एवं आयात – निर्यात की नीतियों में बदलाव

  • पी.पी.आर. रोग की शुरूआत –

  • रोग के घातक रूप में प्रारम्भ में उच्च ज्वर (40-42 डि.ग्री. से.) आ जाता है।
    इस बिमारी के कारण भेड़, बकरियों में नीरसता, छींक तथा आंख नाक से तरल स्राव बहता है।
    मुख और मुखीय श्लेष्मा झिल्ली में दो से तीन दिन के अन्दर छाले उत्पन्न हो जाता है।
    इस समय पशुओं में मुहं से अत्यधिक बदबू आने लगते है और सूजे होंठो के कारण चारा खाना असंभव हो जाता है।
    पशुओं में 3-4 दिन के पश्चात् खूनी दस्त होने लगता है।
    बकरियों और भेड़ों में आखों से चिपचिपा पदार्थ का स्राव होने लगता है तथा सांस लेने में कठनाई होने लगती है।
    बकरियों और भेंड़ों में सांस फूलना तथा खांसना निमोनिया के कारण हो सकता है।
    अगर संक्रमण अधिक होने कारण बकरियों में मृत्यु हो जाती है।

रोग का उपचार एवं रोकथाम –

सबसे पहले बकरी एवं भेड़ पालकों को झुण्ड की स्वस्थ बकरियों की पहचान कर शीघ्र ही उन्हें बीमार बकरियों से अलग कर देना चाहिए।
यह विषाणुजनित रोग है। पी.पी.आर. रोग का वैसे कुछ विशिष्ट उपचार तो नहीं है। हांलांकि जीवाणु और परजीवियों को नियंत्रित करने वाली दवाओं का प्रयोग कर मृत्यु दर कम की जा सकती है।
इस संक्रमण को रोकने के लिये ऑक्सी टेट्रासाइक्लिन और क्लोरटेट्रासाइक्लिीन
औषधिक का प्रयोग कर सकते है।

  • बकरियों एवं भेड़ो को पोषक, स्वच्छ, मुलायम और स्वादिष्ट चारा खिलाना चाहिए। इस महामारी फैलने पर तुरन्त ही नजदीकी पशु डॉक्टर से सम्पर्क करना चाहिए।
    रोगाणुहीन रूई के फाहे से दिन में दो बार आंख, और नाक, मंुह के आस -पास सफाई करना चाहिए। एनरो फलैक्सेसिस एवं सेफ्टी ऑफर के साथ पांच प्रतिशत बोरोग्लिसरीन से मुख के छालों की धुलाई करे जिससे बकरियों और भेड़ों को अत्यधिक लाभ मिलता है।

पी.पी.आर. रोग का कारण –

यह रोग मोरबिल्ली नामक विषाणु का संबंध पेरामिक्सोविरडी परिवार से है। इसी परिवार में मानव जाति में खसरा रोग पैदा करने वाला विषाणु भी पाया जाता है। पी.पी.आर. रोग विषाणु 60 डि.ग्री सेल्सियस पर एक घंटे रखने पर भी जीवित रहता है। परन्तु अल्कोहल, इर्थर एक साधारण डिटरजेंट के प्रयोग से इस विषाणु को आसानी से नष्ट किया जा सकता है।

https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%80

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