जैविक केला की बुवाई से ज्यादा मुनाफे लें | Organic Banana sowing for get more profit in Hindi

स्वास्थ के लिये  Organic Banana sowing in Hindi – केले के सेवन से हदयरोग, उच्च रक्त दाब, आर्थराइटिस, अल्सर, गैस्ट्रोन्टेराइटिस और किडनी रोग के सुधार में सहायता मिलती है। इसके फूल का प्रयोग सब्जी के रूप में करते हैं। केला सस्ता व अधिक पोषक तत्वों वाला लोकप्रिय फल है। इसका प्रयोग कच्चा व पक्का दोनों तरह से किया जाता है। केला कार्बोहाइड्रेट, विटामिन बी, फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम और मैग्नीशियम का अच्छा स्रोत होता है। यह आसानी से पचने वाला, चर्बी तथा कोलेस्ट्राॅल मुक्त होता है। केले के पाउडर को प्रथम शिशु आहार के रूप में प्रयोग करते है।

व्यवसाय – केले से चिप्स, प्युरी, जैम, जैली, जूस, वाइन व हलवा आदि बनाया जाता है इसलिये ये आमदनी का अच्छा स्रोत है। केले के रेशे का प्रयोग बैग, खिलौना तथा वाल हैगिंग बनाने में किया जाता है। केले के व्यर्थ पदार्थों से रस्सी व कागज तथा इसके पत्ते का उपयोग थाली के रूप में करते है।

जलवायु -यह समूह तल से 2000 मी. ऊँचाई तक की जाती है। केले के लिए मानसून में 650-750 मि.मी. वर्षा अच्छी मानी जाती है। केले की खेती उष्ण तथा उपोष्ण जलवायु में, जहाँ 15-30 डि.से. ग्रेड तथा आर्द्रता 75-80 प्रतिशत हो, अच्छी तरह से की जाती है।

मृदा – भूमि अच्छी जल निकास युक्त, हृयुमस युक्त तथा अम्लीय व क्षारीय नहीं होना चाहिए। केले के लिए गहरी, दोमट मिट्टी अच्छी होती है।

केले की प्रमुख किस्में – मालभोग, रोबुस्टा मंथन, पुवन नरेन्द्रा, नायली, बसराई अर्धपूरी,रसथली, जहाजी, काबुली आदि है।  पौध रोपण- केले की फसल साल भर लगायी जा सकती है परन्तु जुलाई से सितम्बर तक का महीना उपयुक्त होता है। पौधों की दूरी खरीफ में 1.5-2.5 x 1.5-2.5 मीटर तथा रबी में 1.5 x 1.2-1.5 मीटर रखते है। केले का पौध लगाते समय पहले खेत की 2-4 बार जुताई करके मिट्टी भूरभूरी करते है तथा 50-60 टन प्रति हेक्. की दर से गोबर की खाद मिलाते है।

पोषक तत्व – मृदा की उर्वरता को बढ़ाने एवं उसकी दशा को ठीक करने के लिए विभिन्न प्रकार की जैविक खादों की आवश्यकता होती है जिससे मृदा की भौतिक एवं रासायनिक संरचना में सुधार होता है और खेतों में लाभदायक सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है। जीवांश खाद जैसे- गोबर की खाद, नाडेप कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद आदि संस्तुति के अनुसार उपयोग करने की आवश्यकता होती है। जैविक उर्वरकों (बायोफर्टीलाइजर) खेतों में अच्छा कार्य करते है। इन जैविक उर्वरकों में विभिन्न प्रकार के लाभदायक सूक्ष्म जीवांणु होते है जो वायुमण्डल से नाइट्रोजन पौधों को उपलब्ध फास्फोरस, पोटाश एवं अन्य पोषक तत्वों को घुलनशील बनाकर पौधों को उपलब्ध कराOrganic Bananaते हैं जिससे मृदा का पी.एच. लगभग सामान्य के आसपास रहता है। जीवांश खाद का लगातार उपयोग करने पर खेतों में जीवांश पदार्थ की मात्रा में बढ़ोतरी होती रहती है। केले की फसल को 200-250 कि.ग्रा., नाइट्रोजन, 60-70 ग्रा. फास्फोरस एवं 300 ग्रा. पोटाश प्रति पौध आवश्यकता पड़ती है। इन सभी पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए 150-200 क्टि. नाडेप कम्पोस्ट खाद या वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद) अथवा 300-350 क्टि.सडी गोबर की खाद के साथ 2 कि.ग्रा. प्रति हैक्. की दर से जैविक खाद (बायोफर्टीलाइजर) मिश्रण को अन्तिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए।

सिंचाई- एक फसल के लिए 70-75 सिंचाई की आवश्यकता होती है। जाडे़ के मौसम में 7-8 दिन पर तथा गर्मी में 4-5 दिन के अन्तराल पर करते हैं।
निराई-गुड़ाई- केले की रोपाई से पहले खेत में हरी खाद बनाना बहुत उपयोगी है। मिट्टी चढ़ाते (रोपाई के 60-70 दिन बाद) समय 2 कि.ग्रा. जैविक खाद मिश्रण एवं 2 कि.ग्रा. गुड़ को 200-300 कि.ग्रा. अच्छी सड़ी कम्पोस्ट खाद के साथ छाया में 7-10 दिन तक सड़ाकर सिंचाई के साथ खेत में बुरक दें। सूक्ष्म तत्वों की पूर्ति के लिये सिंचाई के पानी के साथ 2-3 बार जीवामृत का उपयोग करें। केले की फसल में आवश्यकतानुसार 4-5 दिन निराई गुड़ाई करते हैं। पौधा लगाने के 3-4 माह बाद मिट्टी चढ़ाने का कार्य करते हैं।
सहारा देना- फसलों में केले के पौधे में अधिक वनज होने के कारण उस दो बांसों की सहायता से त्रिभुजाकार बांध कर सहारा दिया जाता है।

सकर हटाना- केले के खेत से प्रति 7-8 माह बाद अवांछित सकर हटाते रहते हैैैं अन्यथा ये पौधे के साथ प्रतियोगिता करते है।
अन्तराशस्यन- केले की जड़ नाजुक होती है अतः इसमें अन्तराशस्यन नहीं किया जाता है मगर कभी-कभी 45-60 दिन की फसल जैसे- मूंग, लोबिया, ढैचा की हरी खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

रोग व कीट नियन्त्रण- इन कीटों के नियंत्रण हेतु जैविक कीटनाशी मिश्रण का प्रयोग करते है केले की फसल में मुख्यतह बनाना बीटलए, बनाना विवल कीटों का प्रकोप होता है जो केले के पत्तों में छेद कर देते हैं एवं केले के फलों में पैदावार घट जाता है। (बिलेरिया बेसियान एवं मेटाराइजियम) 2 कि.ग्रा. प्रति हेक्. को 500 ग्रा. गुड़ के साथ मिलाकर घोल को 1-2 दिन सड़ायें और शाम के समय फसलों पर छिड़काव करें। इसके अलावा 2 ली. प्रति हेक्. नीम का तेल या गौ मूत्र  गाय का गोबर वनस्पति (आक, धतुरा, बेसरम आइपोमिया, नीम की पत्ती आदि) से तैयार किया गया तरल कीटनाशी का 10-15 दिन के अन्तर पर छिड़काव करें। रोग नियंत्रण हेतु जैविक मिश्रण (ट्राईकोडरमा एवं सूडोमोनस) 2 कि.ग्रा प्रति हेक्. एवं 500 ग्रा.गुड़ के साथ सड़ा कर छिड़काव करें।

तुड़ाई व उपज- केले की फसल रोपाई के 12-15 माह बाद तैयार हो जाता है। केले के फूल निकलने के 90-150 दिन बाद तैयार हो जाते है। केले की कटाई पूर्ण विकसित होने पर की जाती है अर्थात् जब फल 70-80 प्रतिशत विकसित हों, उनके कोण खत्म हो जाए तथा रंग हरे से पीला हो जाए। केले की उपज- किस्म, पौधों की दूरी तथा प्रबंधन पर निर्भर करती है।
मार्केर्टिग – Organic Banana sowing in Hindi परिपक्व केलों को शुद्ध वायु संरचण के कमरे में 14 डि.सी सेंटी ग्रेड पर 90-95 प्रतिशत आर्द्रता पर 6 माह के लिए भण्डारित किया जा सकता है। केले की पहले रंग, आकार एवं परिपक्वत के आधार पर छटाई करते हैं। केले को लकड़ी या गत्ते के बक्से में, जो आकार में चैाकरे हो या बांस के बने टोकरे में रखकर परिवहन के लिए भेजा जाता है।

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