Table of Contents
परिचय –
शिमला मिर्च खेती देश के बहुत से राज्यों में की जाती है तथा इसका प्रयोग सब्जी एवं फास्ट.फूड के रूप में किया जाता है।
उन्नतशील एवं संकरी किस्में –
किसानों को कृषि एवं बागवानी विभाग, कृषि विश्वविद्यालयों, अनुसंधान केन्द्रों द्वारा संस्तुत की गई प्रजातियों का उनकी विशेषताओं के अनुसार चयन करना चाहिए।
कैलिफोर्निया वंडर, येलो वंडर, अर्का मोहिनी, अर्का बसंत, अर्का गौरव आदि कुछ प्रमुख प्रजाति हैं।
भूमि एवं जलवायु –
यह रबी मौसम की सब्जी है। बरसात में खेतों में पानी रुकने के कारण पौधों का नुकसान होता है। अतः इन खेतों में शिमला मिर्च की खेती नहीं करनी चाहिए। शिमला मिर्च की खेती के लिए 16-30 डि.सें. तापमान एवं नम जलवायु उपयुक्त रहती है। शिमला मिर्च की सफल खेती के लिए उपजाऊ दोमट भूमि जिसका पी.एच. मान 5-5-6-8 और उचित जल निकास की व्यवस्था हो, उत्तम रहती है।
जैविक विधि से भूमि शोधन करें –
मिट्टी में जीवाणुओं को सक्रिय करने हेतु 200 लीटर अमृत पानी घोल प्रति हेक्टे. या जीवामृत घोल 500 लीटर प्रति हेक्टे. की दर से छिडक़ाव करें। भूमिजनित रोगों की रोकथाम हेतु सड़ी हुई गोबर की खाद को 2.5-3 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा द्वारा संवर्धित करके बुआई पूर्व खेत में मिला दें।
बीज की मात्रा एवं बीज शोधन –
शिमला मिर्च की उन्नतशील किस्मों का 450-500 ग्राम बीज प्रति हेक्टे. तथा संकर किस्मों के लिए 250-300 ग्राम बीज प्रति हेक्टे. प्रयोग करें। बीज को 4 ग्राम ट्राईकोडर्मा प्रति 100 ग्राम बीज की दर से शोधित कर नर्सरी में बुआई करें।

बुआई का समय –
बीज की नर्सरी में बुआई जून.जुलाई तथा दिसम्बर.जनवरी में करें।
नर्सरी एवं देखभाल –
खासतौर से वर्षा ऋतु में, शिमला मिर्च की पौध तैयार करने के लिए नर्सरी की क्यारी जमीन से 15-20 सें.मी. ऊँची बनाएँ ताकि पौध को अधिक वर्षा एवं आर्द्रगलन रोग से बचाया जा सके। एक हेक्टे. क्षेत्र में बीज की बुआई के लिए लगभग 250 वर्गमीटर क्षेत्रफल पर्याप्त होता है। नर्सरी में बुआई से 8-10 दिन पूर्व 15-20 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद को अच्छी तरह से मिट्टी में मिला लें। तत्पचात् अमृत पानी से नर्सरी की मिट्टी का शोधन करें। बीज को बोने से पूर्व ट्राइकोडर्मा या एक भाग सड़ा हुआ खट्ठा मट्ठा तथा चार भाग पानी का घोल बनाकर उसमें 6 घण्टे तक बीज को डुबो दें। उसके बाद बीज को छाया में सुखाकर नर्सरी में 5-6 सेमी. की दूरी पर लाइन बनाकर बुआई करें। बीज की लाइनों में बुआई करने के बाद लाइनों को बारीक सड़ी हुई गोबर की खाद से ढ़ँक दें तथा ऊपर से सूखी घास.फूस अथवा पुआल की पतली परत (पलवार) बिछा दें। जैसे ही बीज में अंकुरण प्रारम्भ हो जाए तो पलवार को हटा दें। गर्मी के दिनों में आमतौर पर 28-30 दिन तथा जाड़ों के मौसम में 50-55 दिन में शिमला मिर्च की पौध तैयार हो जाती है। नर्सरी में आवश्यकतानुसार सायं काल के समय हल्की सिंचाई एवं निकाई करते रहें। ध्यान रहे कि नर्सरी में अधिक नमी होने पर आर्द्रगलन रोगों की सम्भावना बनी रहती है। ऐसी स्थिति में सिंचाई बन्द कर दें।
रोपाई –
शिमला मिर्च की रोपाई 30-60 सेमी. की दूरी पर किस्मों की बढ़वार एवं फैलाव को मध्य नजर रखकर करनी चाहिए। रोपाई करने से पूर्व शिमला मिर्च की पौध को जड़ व तने में लगने वाले सड़न-रोग से बचाव हेतु 500 ग्राम स्यूडोमोनास फ्लोरेसेन्स को 25 लीटर पानी में घोलकर अथवा बीजामृत के 3 प्रतिशत घोल में पौध की जड़ों को 15-20 मिनट डुबोकर तैयार खेत में उसकी रोपाई करें। पौध रोपाई के 4-5 दिन बाद जिन स्थानों पर पौधे मर गये हों वहाँ पर शाम के समय स्वस्थ पौधों की रोपाई कर सिंचाई करें।
खाद एवं जैविक उर्वरक –
पोषक तत्वों की आपूर्ति हेतु –
120-150 कि्ंव. सड़ी गोबर की खाद या 50.60 कि्ंव. कम्पोस्ट या 8-10 कि्ंव. वर्मीकम्पोस्ट को खेत में जुताई से पूर्व अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें। रोपाई से पूर्व खेत का पलेवा करते समय जीवामृत या वेस्ट डिकम्पोजर का घोल 500 ली. प्रति हेक्टे. सिंचाई के साथ प्रयोग करें।
60 गौ-मूत्र 10 प्रतिशत घोल का पहला छिडकाव रोपाई के 25-30 दिन बाद तथा दूसरा फूल आने की अवस्था पर करें। पहली निकाई-गुड़ाई के समय वर्मी कम्पोस्ट बिखेर कर मिट्टी में मिलाएं तथा बाद में सिंचाई करें। वर्मीवाश के 10 प्रतिशत घोल के 3 छिडक़ाव क्रमशः फूल आने से पहले, फूल आने के समय तथा फल लगने की अवस्था में करने से फलचमकदार तथा पूर्ण विकसित होते हैं। समन्वित पोषण प्रबंधन हेतु हरी खाद, दलहनी फसलें, सी.पी.पी. खाद, पंचगव्य, वर्मीवाश, गौ-मूत्र आदि को सम्मिलित करें। हरी खाद में दलहनी फसलों से लगभग 30-40 प्रतिशत नाइट्रोजन की आपूर्ति हो जाती है। इसके अतिरिक्त एजोस्पोरिलम 3-4 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. गोबर की खाद में मिलाकर बुआई पूर्व खेत में प्रयोग करें।
सिंचाई –
पौध रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। गर्म मौसम में 6.7 दिन तथा सर्दियों में 10.12 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहें। ध्यान रहे कि खेत में अधिक पानी न लगने पाए।
शिमला मिर्च में खरपतवार प्रबंधन –
मिर्च में साधारणतः 3-4 बार निकाई.गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। पहली निकाई पौध की रोपाई के लगभग 20-25 दिन बाद तथा दूसरी व तीसरी निकाई-गुड़ाई 40-45 एवं 55-60 दिन बाद करनी चाहिए। इसके साथ-साथ पौधों पर मिट्टी भी चढ़ा कर मल्चिंग करें।
कीट प्रबंधन –
रस चूसने वाले कीट जैसे जेसिड, सफेद मक्खी, थ्रिप्स माइट, एफिड, फलछेदक आदि की रोकथाम हेतु ब्र्रह्मअस्त्र/अग्नि अस्त्र/नीम अस्त्र का 15 दिन के अन्तराल पर 2-3 बार छिड़काव करना चाहिए।
रोग प्रबंधन –
आर्द्रगलन रोग, जीवाणुवीय एवं फफूंदी जनित उकठा रोग की रोकथाम हेतु –
खेत की तैयारी के समय ट्राईकोडर्मा द्वारा द्वारा भूमि का शोधन करना लाभदायक रहता है। शिमला मिर्च में वायरस/मौजैक रोग की रोकथाम हेतु इनको फैलाने वाले कीटों का नियंत्रण हेतु खट्टी लस्सी/मट्ठे में 2 ग्राम हल्दी मिलाकर उसका 15-20 दिन के अन्तराल पर 2-3 बार छिड़काव करें।
फलों की तुड़ाई, सफाई, ग्रेडिंग, पैकिंग एवं विपणन –
शिमला मिर्च की तुड़ाई 5-6 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिए। खेत से मिर्च तोड़ने के पश्चात रोग ग्रस्त, सडे-गले फलों को छांटकर अलग करने के बाद शेष फलों को ग्रेड (बड़े मध्यम एवं छोटे आकार) में रखें बाजार में भेजने के लिए फलों को साफ करके लकड़ी के क्रेट्स का उपयोग करना लाभदायक व सुविधाजनक रहता है। मिर्च के फलों का 8-0 डि.सें. तथा 85-90 प्रतिशत अपेक्षित आर्द्रता पर एक सप्ताह तक अच्छे स्वरूप में भंडारण किया जा सकता है।
शिमला मिर्च की जैविक खेती कैसे करें? जिससे ज्यादा मुनाफा हो| Organic farming of capsicum? Which makes more profit in Hindi