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परिचय-
यह विभिन्न प्रदेशों में पैदा की जाने वाली मुख्य फसल है। यह प्रायः सर्दियों में पैदा की जाने वाली फसल है।
स्वास्थ में लाभकारी –
इसमें विटामिन सी. और बी.1 पर्याप्त मात्रा में होती है। इसके अतिरिक्त विटामिन “ए” और खनिज लवण भी पाए जाते है।
पत्ता गोभी का सेवन करने से मधुमेह, कैसर, अल्सर, हदय रोग आदि में भी, लाभ मिलता है। सूजन से जुड़ी समस्याओं को कम करने में पत्ता गोभी से लाभ होता है। पाचन और कब्ज से राहत दिलाता है। पत्ता गोभी में एंथोसायनिन पॉलीफेनोल पाया जाता है जो पाचन क्रिया को उत्तेजित करने का काम करता है। पत्ता गोभी में फाइबर होता है जो पाचन में सहायक है।
भूमि एवं जलवायु-
इसके लिए बलुई, बलुई दोमट तथा दोमट मिट्टी को अच्छा माना जाता है। यह अधिक अम्लीय भूमि में पैदा नही की जा सकती। इसके लिए भूमि का पी. एच. 5.5 से 6.5 होना चाहिए। सामान्य बढ़वार हेतु अधिक समय तक ठण्डी जलवायु तथा वायुमण्डल में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। इसमें पाला व ठण्ड सहन करने की क्षमता फूलगोभी से अधिक होती है।

उन्नतष्शील किस्में –
ओपन पौलिनेटेड/देसी किस्में.गोल्डन एकर, प्राइड ऑफ इण्डिया, पूसा ड्रम हैड है। ये प्रजातियां 60-70 दिन बाद काटने योग्य हो जाती है।इसकी औसत उपज 175-200 क्विं. प्रति हेक्टे. है।
संकर किस्में. एन. एस..43, सौरव.222, इन्डेम.296, कृष्णा आदि हैं।
भूमि शोधन –
खेत को अच्छी तरह से तैयारी करने के बाद छोटी.छोटी क्यारियों में विभाजित करें। इसके बाद मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने एवं भूमि जनित फफूँदी रोगों की रोकथाम हेतु अमृत पानी घोल/जीवामृत/वेस्ट डिकम्पोजर 500 लीटर प्रति हेक्टे. का प्रयोग करें। खेत की तैयारी करते समय ट्राइकोडर्मा से संवर्धित गोबर की खाद को मिलाए तथा उसके बाद बुआई करें।
बीज की मात्रा एवं बीज/पौध शोधन –
एक हेक्टे. में रोपाई करने के लिए अगेती फसलों में 500-600 ग्राम बीज तथा पछेती फसलों के लिए 350-500 ग्राम बीज की पौध पर्याप्त रहती है। ट्राईकोडर्मा जैविक फफूंदीनाशक (4 ग्राम/100 ग्राम बीज की दर से) शोधित कर नर्सरी में बुआई करें। ट्राइकोडर्मा के प्रयोग करने से बीजों में अकुंरण अच्छा होता है तथा पौधे फफूंदी जनित रागे से मुक्त रहते हैं। पौध को रोपाई पूर्व बीजामृत या पचंगव्य के 3 प्रतिशत घोल में 25-30 मिनट डुबोकर खेत में रोपाई करें।
बुआई का समय –
बन्द गोभी की अगेती किस्मों की बुआई नर्सरी में अगस्त माह के दूसरे पखवाडे से लेकर मध्य सितम्बर माह तक कर देनी चाहिए। पछेती किस्मों की बुआई सितम्बर.अक्टूबर माह में करनी चाहिए।
नर्सरी एवं देखभाल –
पौध तैयार करने के लिए खासतौर से वर्षा ऋतु में नर्सरी जमीन से 15-20 सेमी. ऊँची बनाएं ताकि पौध को अधिक वर्षा एवं आर्द्र गलन रोग से बचाया जा सके। एक हेक्टे. क्षेत्र में बीज की बुआई के लिए लगभग 250 वर्गमीटर क्षेत्रफल पर्याप्त होता है। नर्सरी में बुआई से 8-10 दिन पूर्व 200-250 कि.ग्रा. सड़ी गोबर की खाद में 200 ग्राम. एजोस्पोरिलम तथा पी.एस.बी. मिट्टी में मिला लें। बीज की बुआई लाईनों में 10 सेमी. के फासले पर करें। बारीक सड़ी हुयी गोबर की खाद से ढक़ दें तथा ऊपर से घास.फूस अथवा पुआल की पतली परत (पलवार) बिछा दें। जैसे ही बीज में जमाव प्रारम्भ हो जाए तो पलवार को हटा दें। गर्मी के दिनों में आमतौर पर 25-30 दिन में तथा जाड़ों के मौसम में 40-45 दिन में पौध तैयार हो जाती है। नर्सरी में आवश्यकतानुसार सायं काल के समय हल्की सिंचाई एवं निकाई करते रहें। ध्यान रहे की नर्सरी में अधिक नमी होने पर आर्द्र गलन रोग लगने की सम्भावना बनी रहती है। ऐसी स्थिति में सिंचाई बन्द कर दें। गाय के गोबर का घोल या गौ.मूत्र (1ः10 ली. पानी) को प्रयोग करने से पौधे स्वस्थ रहते हैं। पौध रोपण से एक सप्ताह पहले नर्सरी की सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए। तथा पौध रोपण से पहले दिन नर्सरी की सिंचाई करनी चाहिए। ताकि पौध को आसानी से उखाड़ा जा सके।
रोपाई –
लगभग 30-40 दिन की आयु के पौधों को मुख्य खेत में रोप दिया जाता है। खेत में रिज एवं फूरो बनाकर पौध को 40.45 सेमी. के फासले पर रोप दिया जाता है। रोपाई करने से पूर्व पौध को जड़ व तने में लगने वाले क्लब रुट, ब्लैक रोट एवं फ्यूजेरियम सड़न रोग से बचाव हेतु बीजामृत 3 प्रतिशत या स्यूडोमोनास 5 प्रतिशत घोल में पौध की जडों को 25.30 मिनट डुबोकर तैयार खेत में रोपाई करें।
खाद एवं जैविक उर्वरक –
खाद एवं उर्वरक को प्रयोग करने हेतु मिट्टी की जांच करानी चाहिए। पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए 120-150 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद या 50-60 क्विंटल नादेप कम्पोस्ट या 25-30 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट को खेत में जुताई से पूर्व अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें। रोपाई से पूर्व खेत का पलेवा करते समय जीवामृत या वेस्ट डिकम्पोजर का घोल 500 ली. प्रति हेक्टे. सिंचाई के साथ प्रयोग करें।
गौ.मूत्र के 10 प्रतिशत घोल का पहला छिडकाव रोपाई के 25-30 दिन बाद तथा दूसरा फूल आने की अवस्था पर करें। पहली निकाई.गुड़ाई के समय वर्मी कम्पोस्ट बिखेरकर मिट्टी में मिलाए तथा बाद में सिंचाई करें। वर्मीवाश के 10 प्रतिशत घोल के 3 छिडक़ाव क्रमशः फूल आने से पहले, फूल आने के समय तथा फल लगने की अवस्था में करने से फल चमकदार तथा पूर्ण विकसित होते हैं। समन्वित पोषण प्रबंधन हेतु हरी खाद, दलहनी फसलें, सी.पी. पी. खाद, पंचगव्य, वर्मीवाश, गौ.मूत्र आदि को सम्मिलित करें। हरी खाद में दलहनी फसलों से लगभग 30-40 प्रतिशत नाइट्रोजन की आपूर्ति हो जाती है। इसके अतिरिक्त एजोस्पोरिलम 3.4 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. गोबर की खाद में मिलाकर बुआई पूर्व खेत में प्रयोग करें।
खरपतवार प्रबंधन –
बन्द गोभी में साधारणतः 2-3 निकाई.गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। पहली निकाई पौध रोपाई के लगभग 20-25 दिन बाद तथा दूसरी व तीसरी निकाई.गुड़ाई क्रमशः 35-40 एवं 50-55 दिन बाद करनी चाहिए। दूसरी गुड़ाई के दौरान पौधों पर मिट्टी चढ़ा देने से खरपतवार में कमी एवं सिंचाई पानी की बचत की जा सकती है। बन्दगोभी में पलवार (मल्च) का प्रयोग करने से खरपतवार नियंत्रण एवं सिंचाई के पानी की बचत भी की जा सकती है।
कीट एवं रोग प्रबंधन –
मुख्य कीट-
कटवर्म, डी.बी.एम., बन्द गोभी की सुण्डी, गोभी की तितली
मुख्य रोग –
आर्द्र गलन रोग, क्लब रुट, फ्यूजेरियम रोट इसकी मुख्य बिमारियां है।
बन्दगोभी की कटाई ग्रेडिंग, पैकिंग एवं विपणन –
बन्दगोभी के फूलों की कटाई 3.4 दिन के अन्तर पर परिपक्व अवस्था में समय पर करें। रोग ग्रस्त, सडे.गले बन्दों को अलग करने के बाद आकार के अनुसार ग्रेड में रखें। बाजार में बन्द गोभी भेजने हेतु लकड़ी के क्रेटस उपयोग करना लाभदायक व सुविधाजनक रहता है।
बीज उत्पादन –
बन्दगोभी एक परसेचित फसल है, जिसमें परागण मधुमक्खियों के द्वारा होता हैं। अगेती एवं मध्यम मौसमी किस्मों का उत्पादन ठण्डे पर्वतीय क्षेत्रों में किया जाता है। बन्दगोभी का आनुवांशिक शुद्ध बीज उत्पादन प्राप्त करने के लिए बन्दगोभी व फूलगोभी की दो किस्मों तथा सरसों कुल की फसलों के बीच 1 हजार मीटर की प्रथककरण दूरी रखना अनिवार्य है।