Carrot Organic Farming in Hindi गाजर की जैविक खेती। उन्नतशील प्रजातियाँ

गाजर एक पौष्टिक सब्जी है जिसमें विटामिन “ए”, कार्बाहाईट्रेड एवं खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।

भूमि एवं जलवायु –

गाजर एक शीतकालीन फसल है। गाजर के बीज जमाव के लिए 7.2-23.9 डि.सें. तथा इसकी जडों की बढ़वार के लिए 18-24 डि.सें. तक तापक्रम उपयुक्त रहता है। गाजर की लम्बी और रंगदार जड़ों के लिए 15-20 डि.सें. तापक्रम सबसे अच्छा माना जाता है। गाजर के लिए जीवांशयुक्त गहरी बुलई दोमट अथवा दोमट भूमि सर्वोत्तम है। चिकनी भारी मिट्टी में गाजर की जड़ों का विकास नहीं हो पाता। इसकी अच्छी उपज लेने हेतु भूमि का पी.एच. मान 6.5.7.0 होना चाहिए।

उन्नतशील प्रजातियाँ-

विभिन्न क्षेत्रों की भूमि, जलवायु आदि को ध्यान में रखते हुए बागवानी विभाग एवं अनुसंधान केन्द्रों द्वारा अनुमोदित गाजर की उन्नत प्रजातियों का चयन करें। कुछ प्रजातियाँ निम्न प्रकार हैं.
पूसा केसर, सलेक्शन.21, हिसार गौरव, नेंनटिस, पूसा यमदगिनी, चमन गाजर की प्रमुख किस्म हैं।

बुआई का समय व बीज मात्रा-

गाजर की देशी किस्मों की बुआई का उचित समय अगस्त.अक्टूबर तथा यूरोपियन किस्मों की बुआई अक्टूबर-नवम्बर माह है। बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। देशी अथवा एशियन गाजर किस्मों का 6 कि.ग्रा. तथा यूरोपियन किस्मों का 5 कि.ग्रा. बीज एक हेक्टे.खेत में बिजाई के लिए पर्याप्त होता है।

बीज की बुआई –

गाजर की बुआई सीधे बीज द्वारा समतल क्यारियों या मेंढ़ पर की जाती है। समतल क्यारियों में बीज को लाइनों में 3-4 सेंमी. की दूरी पर बोना चाहिए तथा लाईन से लाईन की दूरी 15-20 सेमी. रखनी चाहिए। मेंढ़ पर बुआई हेतु 40 सेमी. के फासले पर मेंढ़ बनानी चाहिए तथा 5 सेमी. के फासले पर मेंढ़ के दोनों तरफ बीज की बुआई करनी चाहिए। गाजर का बीज बहुत ही बारीक होता है। अतः बुआई से पूर्व गाजर के बीज को राख अथवा सूखी मिट्टी में मिलाकर बिजाई करें। गाजर का बीज लगभग 8-12 दिन के समय में अंकुरित होता है। अतः पहली हल्की सिंचाई बीज.जमाव के 8-10 दिन के बाद करनी चाहिए।

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Carrot Organic Farming
Carrot Organic Farming

सिंचाई –

उचित अंकुरण, अच्छी बढ़वार एवं जड़ों के उत्तम विकास हेतु खेत की सिंचाई बिजाई के तुरन्त बाद करनी चाहिए। इसके उपरान्त नमी बनाए रखने के लिए आवश्यकतानुसार 8.10 दिन के अन्तर पर सिंचाई करते रहना चाहिए। 88

खाद एवं जैविक उवर्रक –

गाजर कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली फसल है इसलिए 100-110 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद अथवा 50-60 क्विंटल नादेप कम्पोस्ट या 25-30 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट प्रति. हेक्टे. की दर से खेत तैयार करते समय मिटटी में मिला देनी चाहिए। अजेटोबैक्टर या एजोस्पोरिलम/पी.एस.बी./पोटाश को क्रियाशील करने वाला जीवाणु खाद 3.5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे को गोबर की खाद में मिलाकर भूमि में बुआई पूर्व या निराई.गुड़ाई के समय प्रयोग करें।
भूमि में सिंचाई के साथ 80-100 ली. गोमूत्र/जीवामृत तथा वेस्ट डिकम्पोजर.500 ली.प्रति हेक्टे. घोल का 2-3 बार प्रयोग करें।

छटाई, निकाई-गुडाई एवं खरपतवार नियन्त्रण –

पहली निराई करने के बाद फालतू पौधों को निकाल दें ताकि पौधे से पौधे की दूरी 5-7 सें.मी. रखी जा सके। दूसरी गुडा़ई बुआई के 35-40 दिन बाद पौधों की जड़ों के पास 8-10 क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट अथवा बारीक सडी़ गोबर की खाद मिलाकर करें एवं हल्की मिट्टी चढ़ा दें। इससे जड़ें चमकदार और लम्बी बनती हैं। गाजर की जड़ों की खुदाई करने सेपहले खेत में पानी लगाना चाहिए। इससे जडा़ें को उखाडऩे में आसानी होती है, जड़ें ताजी बनी रहती हैं और गर्मियों में गाजर कीजड़ों में तीखापन कम हो जाता है।

कीट प्रबंधन –

गाजर की फसल में कीड़ों का बहुत ही कम प्रकोप होता है। माहू लगने पर उसका जैविक उपचार करना चाहिए।

रोग प्रबंधन –

  • फफूंदी जनित, आर्द्र गलन एवं कोलर रोट, व्हाइट रोट रोग की रोकथाम के उपाय निम्न प्रकार हैं-
  • गर्मी की गहरी जुताई, उचित फसलचक्र, समय पर बुआई, उचित फासला, पानी का निकास, संक्रमित पौधों, खरपतवारों को निकाल कर नष्ट कर देना।
  • भूमि में नीम की खली (150.200 कि.ग्रा.) का प्रयोग।
  • भूमि में स्यूडोमोनास/ट्राइकोडर्मा (3.4 कि.ग्रा.  150 कि.ग्रा. गोबर की खाद) का बुआई पूर्व प्रयोग।

बीज उत्पादन –

गाजर एक पर परागण वाली फसल है। जिसमें कीडों द्वारा परागण होता है इसलिए गाजर की दो किस्मों के बीच 1000 मीटर पृथक्करण दूरी रखनी चाहिए। ताकि अनुवांशिक शुद्ध बीज प्राप्त किया जा सके। गाजर बीज उत्पादन हेतु दिसम्बर माह के मध्य में मुख्य फसल से शुद्ध किस्म की जडें उखाड़ ली जाती हैं और जड़ों के नीचे व ऊपर का लगभग दो तिहाई भाग काटकर अलग कर देते हैं। इसके बाद तैयार खेत में गोबर की सड़ी खाद मिलाकर गाजर की काटी गई जड़ों को दुबारा 60×60सें.मी. की दूरी पर रोपित कर दिया जाता है। जड़ों को खेत में लगाने के बाद खेत में हल्की सिंचाई कर देनी चिहए और आवश्यकतानुसार 8-10 दिन के अंतर से सिंचाई करते रहना चाहिए। फरवरी माह में पौधों पर फूल लगने लगते हैं। फरवरी.मार्च र्माह में गाजर में बीज बनना प्रारम्भ हो जाता है।

अपै्रल-मई माह में गाजर के पके हुए गुच्छों को काटकर धूप में फर्श या तिरपाल पर अच्छी प्रकार सुखाकर लकडी के डण्डे से पीटकर बीज अलग कर लेना चाहिए। बीज को अच्छी प्रकार से साफ करके धूप में इतना सुखाएं कि बीज में आठ प्रतिशत नमी बनी रहे। इसके बाद बीज का शोधन कर काँच के डिब्बों में सील बन्द करके उसे सूखे स्थान पर सुरक्षित रख देना चाहिए।