Organic Farming of Onion – प्याज की जैविक तरीके से खेती कैसे करें | किस्में, पैदावार और देखभाल

परिचय-

भारतवर्ष में प्याज एक महत्वपूर्ण नगदी फसल है। प्याज का उपयोग सब्जी एवं मसाले के रूप में किया जाता है। प्याज का वैज्ञानिक नाम एलियम सेपा जिसे आमतौर पर प्याज के रूप में जाना है। प्याज में जैविक रूप से यौगिका स्रोत है जैसे इसमें पाये जाते है फेनोलिक एसिड,थायोसल्फेट्स आदि पाये जाते है। प्याज में नाइट्रोजन देने से न केवल पत्ते हरे होते हैं बल्कि पत्तियों की लंबाई भी बढ़ती है । यह अन्य पोषक तत्वों विशेष रूप से फॉस्फोरस और पोटेशियम के कुशल उपयोग की सहायता से बढ़ाता है और साथ-साथ पत्तियों की संख्या में वृद्धि भी करता है। प्याज का पैदावार एक हेक्टेयर में कम से कम 300 -350 क्विंटल है। 10 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए। 20 से 25 प्रति हेक्टेयर खेत में गोबर की खाद देना चाहिए। रोपाई से एक माह पूर्व ही खेत में मिला देना चाहिए। प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 60 किग्रा पोटाश की आवश्यकता पड़ती है। गंधक और जिंक की कमी होने पर ही उपयोग करें। इससे अच्छा पैदावार होता है। प्याज में सल्फर की कमी होने पर नई पत्तियां पीली पड़ने लगती है। सल्फर पत्तियों हरा रखता है और भोजन का निर्माण भी करता है इसलिये सल्फर का प्रयोग करना चाहिए। बुआई का समय जून-जुलाई खरीफ फसल अक्तूबर-नवम्बर-दिसम्बर मुख्य फसल

प्याज स्वास्थ में भी लाभकारी जाने –

प्याज में सल्फर अधिक मात्रा में पाया जाता है जो कि कैंसर का खतरा कम कर देता है। कच्चा प्याज खाने से ब्लडप्रैशर कंट्रोल इंसुलिन की मात्रा बढ जाती तथा डायबिटीज कंट्रोल में रखने में मदद करता है। प्याज में केलिसिन, आयरन, कैल्शियम, विटामिन बी6, रायबोफ्लेविन,विटामिन सी विटामिन अधिक मात्रा में पाया जाता है यह कई बीमारियों के खिलाफ एंटीबायोटिक का भी काम करती है। यह कब्ज की समस्या से राहत दिलाने में सहायता करता है। प्याज में एक रसायन पाया जाता है जिसका नाम साइन प्रोपेंथियल.एस.ऑक्साइड होता है। इससे आंखों की लेक्राइमल ग्लैंड को उत्तेजित कर देता है जिस कारण आंखों से आंसू आने लगते हैं।

 Organic Farming of Onion
Organic Farming of Onion

भूमि एवं जलवायु –

यह कई प्रकार की जलवायु में उगाई जा सकती है। बहुत अधिक गर्मी, सर्दी या बरसात में इसका उत्पादन कम होता है। फसल की वृद्धि के लिए 13-25 डि.से. तापमान उपयुक्त होता है। कन्द के विकास के लिए 20-25 डि.सें. तापक्रम उपयुक्त रहता है। यह हर प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती है परंतु बलुई तथा दोमट मिट्टी इसके लिए अधिक उपयुक्त है। भारी भूमि में प्याज की खेती नहीं करनी चाहिए। क्योंकि ऐसी भूमि में प्याज के कन्द की पैदावार अच्छी नहीं होती है। भूमि में जीवांष की उचित मात्रा होनी चाहिए। एवं पानी का निकास होना चाहिए। भूमि का उपयुक्त पी.एच.मान 5.8 से 6.5 होना चाहिए। क्षारीय भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं है।

प्रजातियां –

कुछ प्रचलित प्रजातियां निम्न प्रकार हैं-

पूसा रैड, एग्री फाउण्ड डार्क रैड, एग्री फाउण्ड लाईट रैड, पूसा व्हाइट राउण्ड, एन. एच. आर. डी. एफ..रैड, (एल.28), पूसा रत्ना, अर्का कल्याण, पूसा व्हाइट फ्लैट आदि।
संकर किस्में. लिबर्टी, बी.एस.एस. 258 तथा 442

भूमि शोधन –

खेत की अच्छी तरह से तैयारी करने के बाद खेत को छोटी.छोटी क्यारियों में विभाजित करें। इसके बाद मिट्टी की उर्वरा.शक्ति बढ़ाने एवं भूमिजनित फफूँदी रोगों की रोकथाम हेतु जीवामृत/वेस्ट डिकम्पोजर 500 लीटर प्रति हेक्टे. का प्रयोग करें। खेत की तैयारी करते समय ट्राइकोडर्मा से सवंर्धित गोबर की खाद को मिलाएं तथा उसके बाद बुआई करें।

बुआई का समय, बीज दर एवं बीज/पौध शोधन –

उत्तरी भारत में खरीफ की फसल की नर्सरी-मई.जून में तथा रबी की फसल की नर्सरी अक्टूबर-नवंबर में तैयारी की जाती है। रोपाई करने के लिए 10-12 किलो ग्राम बीज की पौध पर्याप्त रहती है। ट्राईकाडर्मा जैविक फफूंदीनाशक 4 ग्राम प्रति 100 ग्राम बीज की दर से बीज को शोधित करके नर्सरी में बुआई करें। ट्राईकोडर्मा के प्रयोग करने से बीजों में अंकुरण अच्छा होता है तथा पौधे फफूंदीजनित रोग से मुक्त रहते हैं। पौध को नर्सरी से उखाडने के बाद रोपाई करने से पूर्व बीजामृत या पंचगव्य के 3 प्रतिशत घोल में 30 मिनट डुबोकर खेत में रोपाई करें।

पौध तैयार करना –

प्याज का बीज 15.20 सेंमी. ऊँची उठी हुई क्यारियों में बोया जाता है। एक हे. खेत में प्याज की रोपाई लिए लगभग 150 क्यारियां (3.0×1.0 मीटर) पर्याप्त होती हैं। क्यारियों के बीज 0.50 मी. का फासला रखना चाहिए। बीज व पौधशाला की मिट्टी को बुआई करने से पूर्व ट्राईकोडर्मा जैविक फफूंदीनाशक एवं अमृत पानी से शोधन करना चाहिए। नर्सरी तैयार करते समय 50-60 कि.ग्रा.सड़ी गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट प्रति क्यारी के हिसाब से अच्छी तरह मिट्टी में मिलाकर क्यारियों को समतल कर देना चाहिए।
बिजाई लाइनों में 4.5 सें.मी. दूरी पर 2.2.5 स.मी. की गहराई पर करनी चाहिए। बिजाई करने के उपरान्त लाइनों को बारीक छनी हुई गोबर की खाद से ढककर बन्द कर देना चाहिए। इसके बाद क्यारियों को सूखी घास से ढककर फव्वारे से हल्की सिंचाई कर दें। जब बीज अंकुरित हो जाये तो तुरन्त ढ़की हुई सूखी घास को हटा दें। क्यारियों में फव्वारे से हल्की सिंचाई आवश्यकतानुसार सांय काल के समय 1.2 बार कर दें। पौध बिजाई के लगभग 6.8 सप्ताह में तैयार हो जाती है। अधिक दिनों वाली पौध की रोपाई करने पर पौधे खेत में ठीक तरह से स्थापित नहीं हो पाते हैं जिससे पौधों में फूल वाले डंठल अधिक निकलते हैं।

पौध की रोपाई –

प्याज रोपाई के लिए 15 दिसम्बर से 15 जनवरी के बीच का समय उपयुक्त है। पौध को लाइनों में 15 सें.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 8-10 सें.मी. रखते हैं। रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करना अति आवश्यक है। रोपाई से पूर्व पौधोंको 3 प्रतिशत बीजामृत के घोल या ट्राइकोडर्मा 5 प्रतिशत घोल में 25-30 मिनट तक डुबाकर रोपाई करने से पौधे स्वस्थ रहते हैं।

खाद एवं जैविक उर्वरक –

प्याज की उन्नतशील किस्मों से अच्छी पैदावार लेने के लिए खेत तैयार करते समय 200-250 कुन्टल सड़ी गोबर की खाद अथवा 100- 125 कुन्टल नादेप कम्पोस्ट अथवा 40-50 कुन्टल वर्मी कम्पोस्ट प्रति हेक्टे. की दर से खेत में मिलाएं। इसके अतिरिक्त पूरक उर्वरकों के रूप में अजेटोबैक्टर या एजोस्पोरिलम/पी. एस. बी. 4.5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. की दर से भूमि में बुआई पूर्व या निराई.गुड़ाई के समय प्रयोग करें।
भूमि में सिंचाई के साथ जीवामृत या वेस्ट डिकम्पोजर घोल 500 ली. का 2-3 बार प्रयोग करें। पंचगव्य या वर्मीवाश 5 प्रतिशत घोल के 3-4 छिडक़ाव प्याज में कन्द बनते समय, कन्द विकसित होने की अवस्था आदि में करने से कन्द सुदृढ, ठोस एवं चमकदार बनते हैं।

प्याज की देखभाल –

प्याज के पौधों की जड़ें काफी छोट़ी होती हैं जो मिट्टी में कम गहराई तक जाती हैं। अतः प्याज की अधिक गहराई तक निकाई-गुड़ाई नहीं करनी चाहिए। प्याज की अच्छी फसल के लिए 2-3 बार खरपतवार निकालना तथा खेत में नमी बनाए रखना अति आवश्यक है। सिंचाई समय पर आवश्यकतानुसार और हल्की करनी चाहिए। कई दिनों तक खेत सूखा रहने के बाद एक दम भारी सिंचाई करने से प्याज की गाँठें फटने लगती हैं। जब प्याज की पत्तियाँ सूखने लगे (मई माह का प्रथम पखवाड़ा) तो सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए। अन्यथा प्याज की भण्डारण क्षमता कम हो जाती है और प्याज सडऩे लगती है।

कीट प्रबंधन –

थ्रिप्स-

यह एक बहुत हानिकारक कीट है जो पत्तियों की ऊपरी परत से रस चूसकर उस पर सिल्वरी धब्बे बना देते हैं जिससे पत्तियां सूख जाती हैं। गर्मियों में सूखे इलाकों में इनका प्रकोप अधिक होता है जिससे प्याज के कन्द छोटे एवं विकृत आकार के बनते हैं। पौधों की बढ़वार रुक जाती है, पत्तियों में एेंठन बढ़ जाती है तथा अधिक प्रकोप होने पर पौधे धीरे.धीरे मरने लगते हैं।

प्रबंधन –

  • खेत में पीले चिपचिपे ट्रैप (10.12/हेक्टे.) लगाएं।
  • कीटों से बचाव हेतु नर्सरी में नाइलोन नेट (200 मैस नेट) लगाएं।
  • खेत में बुआई पूर्व नीम की खली 250 कि.ग्रा./हेक्टे. प्रयोग करें।
  • नीमास्त्र/निमोली सत 5 प्रतिशत/अग्निस्त्र के 15 दिन के अन्तराल पर 2.3 छिड़काव करें।

मैगट-

यह भूरे रंग की छोटी मख्खी होती है जिसका लारवा भूमि में घुसकर प्याज के कन्दों को खा जाता है।

प्रबंधन –

  • एक ही खेत में बार.बार प्याज की खेती ना करें।
  • कीट से प्रभावित पौधों को निकालकर नष्ट कर दें।
  • बुआई पूर्व नीम की खली 250.300 कि.ग्रा./हेक्टे. प्रयोग करें या बिवेरिया 3.4 कि.ग्रा./हेक्टे. को भूमि में प्रयोग करें।
  • नीमास्त्र का पत्तियों पर छिड़काव करें।
  • रेत में लकड़ी की राख को मिलाकर पौधों के आस.पास बिखेर दें।

रोग प्रबंधन –

आर्द्र गलन-

यह फ्यूजेरियम नामक फफूंद द्वारा फैलती है जो अंकुरित पौधों को भूमि की सतह से आक्रमण करके गला देती है। यह पौधों को 60.70 प्रतिशत तक नुकसान पहुँचाती है।

उपचार-

स्वस्थ बीज का चुनाव, भूमि का सोलेराइजेशन, ऊँची उठी हुई नर्सरी एवं उचित पानी का निकास बीज, नर्सरी एवं भूमि का ट्राइकोडर्मा जैव फफूंद द्वारा बीज एवं भूमि शोधन।