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परिचय –
हमारे देश में गेंदे के फूल पुष्प उद्योग की प्रमुख फसलों में से एक है। इसका उपयोग धार्मिक स्थलों, सामाजिक अवसरों व औद्योगिक स्तर पर लगातार बढ़ रहा है। यह भारत के देहात व शहरी क्षेत्रों में उगाए जाने वाले पाँच प्रमुख पुष्पों में से एक है। इसके फूलों में रंग और रूप की विविधता पाई जाती है तथा ये अधिक समय तक ताजे बने रहते हैं। इसके फूलों में कैरीटो नाइड पाया जाता है तथा पत्तियों की तीव्र गंध से मक्खी.मच्छर दूर भाग जाते हैं। यह कम समय व कम लागत में तैयार होने वाली फसल है तथा बाजार में लगातार माँग होने के कारण गेंंदे से किसानों को अच्छी आमदनी प्राप्त होती है।
जलवायु –
यह विभिन्न प्रकार की जलवायु में आसानी से उगाया जा सकता है। यह उष्ण तथा उप उष्णकटिबंधीय जलवायु क्षेत्रों में पूरे वर्ष उगाया जा सकता है। पौधे की अच्छी बढ़वार एवं फूलों के लिए मध्यम जलवायु अच्छी रहती है। गेंदे के लिए उपयुक्त तापमान 15.29 डि.सें. होना चाहिए। अधिक गर्मी, ठण्ड एवं कोहरे से फसल को हानि पहुँचती है।
भूमि –
यह कई प्रकार की भिम में उगाया जा सकता है परन्तु अच्छे उत्पादन के लिए उपजाऊ बलुई दोमट, जीवांशयुक्त भिम, जिसमें जल के निकास की अच्छी सुविधा हो, उपयुक्त रहती है। इसके लिए 6.5 से 7.5 पी.एच.वाली भूमि उत्तम है।
उन्नतशील प्रजातियाँ –
क्षेत्रों की भूमि एवं जलवायु को ध्यान में रखते हुए कृषि/बागवानी विभाग एवं अनुसंधान केन्द्रों द्वारा अनुमोदित गेंदा की उन्नत प्रजातियों का चयन करें। गेंदे की कुछ मुख्य प्रजातियाँ निम्न प्रकार हैं –
फ्रेंच गेंदा :
इसके पौधे की लंबाई कम तथा फूलों का आकार छोटा होता है। रस्टी रेड, स्टार ऑफ इण्डिया, रेड बोकार्डो, जिप्सी, फ्लेष, लैमन ड्रॉप्स आदि प्रमुख प्रजातियाँ हैं।
अफ्रीकन गेंदा :
इसके पौधे लंबे एवं फूल बडे़ आकार के होते हैं। पूसा नारंगी, पूसा बसंती, प्राइम रोज, पूसा अर्पिता, येलो, सुप्रीम आदि प्रमुख प्रजातियाँ हैं।
प्रजनन/संवर्धन –
इसका प्रजनन बीज द्वारा किया जाता है।
बीज की दर –
गेंदे की औसत बीज दर 1.5 से 2.0 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. है। हाइब्रिड प्रजातियां की बीज दर 2.5 सौ ग्राम प्रति हेक्टे. है।
बुआई एवं पौध रोपण –
गेंदे की पौध तैयार करने के लिए उपजाऊ व समतल भूमि में थोड़ी उठी हुई क्यारियाँ बनाएँ तथा ट्राइकोडर्मा सवंर्धित गोबर की खाद डालकर भूमि में मिलाएँ। बीमारियों की रोकथाम हेतु बीज को स्यूडोमोनास (0.5 प्रतिशत घोल) तथा एजोस्पारिलम (100 ग्राम) द्वारा उपचारित करके 5 सेमी. की दूरी पर पंक्तियों में बुआई करें। इन क्यारियों को गोबर की बारीक खाद से ढ़क दें तथा आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई द्वारा नमी बनाएँ रखें।
पौध रोपण से पहले खेत को हल एवं हेरों द्वारा जोतकर भुरभुरी बना लें। एक महीने बाद 15 सेमी. ऊँचाई की पौध को मुख्य खेत में रिज/मेंढ़ बनाकर 45 x 35 सेमी. पर रोपाई करें। पौध रोपण शाम के समय करें तथा खेत की सिंचाई करें।
बुआई, पौध रोपण का उचित समय निम्न प्रकार है.
जैविक पोषण प्रबंधन –
पोषण प्रबंधन हेतु भूमि की जाँच कराएँ। सामान्यतः पोषक तत्त्वों की आपूर्ति हेतु भूमि की तैयारी करते समय 150.200 क्विंटल गोबर की खाद या 100 क्विंटल नादेप कम्पोस्ट प्रति हेक्टे. का प्र्रयोग करें। इसके अतिरिक्त एजोस्पोरिलम तथा फॉस्फोबैक्टेरिया जैव उर्वरकों 2.3 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. को 100 कि.ग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ मिलाकर भूमि में प्रयोग करें। अच्छी बढ़वार एवं फूलों के विकास हेतु 500 लीटर जीवामृत या वेस्ट डिकम्पोजर का आवश्यकतानुसार सिंचाई के साथ प्रयोग करें।
खरपतवार निष्कासन –
आवश्यकता के अनुसार हाथ द्वारा खरपतवार निष्कासन करें। छोटी फसल में निकाई.गुड़ाई करके निकालें। फसल की पूरी अवधि में 3.4 बार खरपतवार निष्कासन करना चाहिए।
सिंचाई –
गेंदे के लिए कली बनने की अवस्था से लेकर फूलों की तुड़ाई तक भूमि में नमी होना आवश्यक है। पौध लगाने के तुरंत बाद सिंचाई करें एवं इसके उपरांत गर्मियों में 4-5 दिन एवं सर्दियों में 10-15 दिन के अंतर पर सिंचाई करें। फसल में पानी खड़ा होना हानिकारक है। अतः वर्षा के मौसम में पानी के निकास का उचित प्रबंध करें।
कटाई.छँटाई –
रोपाई के 40 दिन बाद पौधे के ऊपरी भाग को तोड़ दें ताकि उन पर अधिक शाखाएँ बनेंं एवं फूलों की संख्या में वृद्धि हो।
कीट प्रबंधन –
गेंदे के मुख्य हानिकारक कीट एवं उनकी रोकथाम के उपाय निम्न प्रकार हैं.
मिलीबग –
सफेद मटमैले रंग के कीट कोमल तनों, शाखाओं और पत्तियों पर पाए जाते हैं। ये कीट शहद जैसा चिपचिपा पदार्थ छोड़ते हैं जिससे फफूंद ( सूटीमोल्ड) विकसित हो जाती है जिससे पत्तियां काली होकर सूख जाती हैं तथा बढ़वार रुक जाती है।
थ्रिप्स –
यह बहुत छोटे रंग के कीट हैं जो पत्तियों के ऊतकों से रस चूसते हैं जिससे पत्तियां कमजोर व सूखकर गिर जाती हैं।
स्पाइडर माइट –
यह बहुत छोटे रस चूसने वाले कीट हैं जो पत्तियों का रस चूसकर पौधों को हानि पहुंचाते है।
रोकथाम –
समय.समय पर खरपतवार निष्कासन तथा पौधों में उचित फासला रखें।
- कीटों से प्रभावित पत्तियों, टहनियों एवं तनों की छटाई करके नष्ट कर दें।
- 15.20 पीले चिपचिपे ट्रेप प्रति हेक्टे. लगाएँ।
- नीम ऑयल 3.5 मिली. प्रति लीटर पानी या निमोली सत 5 प्रतिशत या वनस्पतिक कीटनाशक 10 प्रतिशत का कीट लगने की प्रारंभिक अवस्था में छिड़काव करें।
रोग प्रबंधन –
- पाउड्री मिल्डयू : इसके आक्रमण से पत्तियों की निचली सतह पर सफेद पाउडर जैसी फफूंद विकसित हो जाती है।
पद गलन : इस फफूंद का प्रकोप नर्सरी से शुरु हो जाता है इसलिए प्रभावित पौध भूमि की सतह पर तना गलन से गिर जाते हैं।
पत्तियों के धब्बे : हानिकारक फफूंद से पत्तियों पर काले भूरे रंग के धब्बे पड़कर पत्तियाँ सूख जाती हैं।
रोकथाम के उपाय :
ट्राइकोडर्मा या स्यूडोमोनास जैव फफूंदनाशक द्वारा भूमि शोधन एवं बीज का उपचार करें। - प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट करें।
- फसल में उचित फासला रखें तथा पानी का निकास करें।
- खट्टी छाछ हल्दी तांबे के तार आदि से बनाया गया घोल का छिड़काव करें।
फूलों की तुड़ाई/ग्रेडिंगपैकिंग –
फ्रेंच गेंदे में रोपाई के 40.45 दिन बाद तथा अमेरिकन गेंदा में 55.60 दिन बाद फूल आने लगते हैं। फूलों का पूरा आकार होने पर तुड़ाई करें। फूलों की तुड़ाई सुबह के समय करनी चिहए। तुड़ाई से पहले फसल की सिंचाई करने से फूलों की गुणवत्ता अच्छी होती है।
तुड़ाई के बाद फूलों को ठण्डे स्थान पर रखें तथा छोटे आकार के या सूखे फूलों को निकालकर ग्रेडिंग करें। स्थानीय विपणन हेतु जूट की बोरियों में तथा दूर बाजार में विपणन करने हेतु बांस की टोकरी में पैक करें।