मशरूम की खेती कर के बाजार से अच्छा मुनाफा ले सकते है | Good profit from the market by mushroom farming in Hindi

परिचय –

मशरूम पोषक तत्वों की दृष्टि से एक श्रेष्ठ आहार होने के साथ प्रोटीन एवं खनिज लवणों से भरपूर होता है। मशरूम की खेती पुआल, भूसे एवं कम्पोस्ट खाद को मिलाकर की जाती है। पहले मशरूम जंगलों में सड़ी-गली जीवाशों पर पैदा होती थी। इसमें से बहुत सी प्रजातियां विषैली होती थी, लेकिन मशरूम के गुणों की बदौलत जंगली मशरूम को वैज्ञानिक तरीके से कम्पोस्ट की बढ़िया खाद पर उगाकर खाद्य योग्य बना लिया गया है। इस समय मशरूम की पौष्टिकता को ध्यान में रखते हुए विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार किये जाने लगे हैं। जैसे-मशरूम के सूप, पुलाव, पकौड़े, सलाद, सब्जी व अचार हैं। इसकी प्रोटीन सुपाच्य तथा खनिज लवणां जैसे-फास्फोरस, कैल्शियम, लोहा आदि के कारण मूल्यवान है। मशरूम में प्रोटीन की मात्रा 33 प्रतिशत से अधिक होती है जिसका 87 प्रतिशत तक अंश पाच्य होता है जो कि अनाजों की तुलना में बहुत अधिक है। मशरूम में कई प्रकार के विटामिन्स जैसे – बी-1, बी-2 व विटामिन सी तथा नाइसिल पैटोथेनिक आदि जैसे एमिनोएसिड पाये जाते हैं। इसमें खास बात यह भी है कि इसमें फोलिकएसिड पाया जाता है जो केवल मांसाहारी खाद्य पदार्थ से ही प्राप्त होता है।

स्वास्थ में लाभदायक –

मशरूम के सेवन से हृदय रोग, रक्तचाप, खून की कमी तथा मधुमेह के रोगियों के लिए बहुत ही लाभदायक है।

व्यवसाय-

मशरूम उत्पादन के लिए अन्य कृषि उत्पादों से भिन्न इसको उगाने के लिए कृषि भूमि की आवश्यकता नहीं होती। मशरूम की खेती लागत के मुकाबले बाजार में अच्छी कीमत देती है। इससे लघु सीमान्त कृषकों तथा भूमिहीन मजदूरों को वर्ष भर आय प्राप्त हो सकती है। चूंकि आयस्टर मशरूम को सुखाकर भी बेचा जा सकता है अतः विपणन की समस्या नहीं रहती। इसे सामान्य घरेलू ग्रामीण महिलाएं कुटीर उद्योग के रूप में भी अपना सकता हैं। मशरूम ताजी तथा कुछ किस्में सुखाकर खाने के काम आती हैं। इसलिए मशरूम को लाभकारी कुटीर उद्योग के रूप में भी अपनाया जा सकता है।
अतः किसान अपनी खेती के साथ-साथ अतिरिक्त आमदनी प्राप्त करने के लिए मशरूम की खेती को अपनाएं। मशरूम उगाने की विधि के बारे में विवरण आगे दिया जा रहा है।

मशरूम की खेती कैसे करें –

मशरूम की अनेक किस्में हैं जो अनुकूल मौमस में भूमि, सूखे हुए वृक्षों के तने व डालियों पर स्वतः उग जाते हैं। इनमें से सब खाने योग्य नहीं होते और कई तो बहुत जहरीले होते हैं। स्वतः उगने वाले मशरूम विशेषकर वर्षाकाल में ही उपलब्ध हो पाते हैं। इस मूल्यवान खाद्य पदार्थ की उपलब्धि वर्ष के हर मौसम में करने के लिए इसकी खेती पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

किस्में-
सफेद बटन (एगेरिकस बाइस्पोरस) –

ये दिसम्बर – जनवरी (16-23 डि.सें. व 70-90 प्रतिशत नमी में ) उगाये जाते हैं।

ढींगरी (प्ल्युरोटस) मशरूम-

farming mushroom
farming mushroom

ये अगस्त से नवम्बर तक तथा फरवरी से अप्रैल तक (20-30 डि.सें. तापक्रम व 70-90 प्रतिशत नमी में) उगाये जाते हैं।

धान पुआल मशरूम (बोल्वेरेला)-

ये मार्च से अगस्त तक (26-42 डि.सें. तापक्रम व 70-90 प्रतिशत नमी में) उगाये जा सकते हैं। इनको उगाने के लिए किसी विशेष साधन या मशीन की आवश्यकता नहीं होती है। ये अनेक प्रकार के स्थानीय चारे जैसे चावल, मक्का, गेहूं आदि के भूसे या कड़वी व बेकार फसल अवशेषों पर सफलता से उगाये जा सकते हैं।

सफेद बटन मशरूम-

उगाने की विधि –

सफेद बटन में कवक जाल की वृद्धि के लिए 24-26 डि.से. तापक्रम व मशरूम बनने के लिए 16’18 डि.सें. तापक्रम अच्छा रहता है। इसके लिए खास तरह की कम्पोस्ट व केसिंग मिट्टी तैयार करनी पड़ती है। केसिंग मिट्टी से मतलब सूखे गोबर को पीसकर और छानकर उसमें बराबर मात्रा में मिट्टी मिलाते हैं। इसमें 0.5 प्रतिशत फोर्मेलिन का घोल बनाकर डालते हैं व 48 घण्टे तक हवा बन्द रखते हैं फिर एक सप्ताह तक पलट-पलट कर सुखाते हैं। यदि सुविधा हो तो इसे भाप से उपचारित करते हैं।

तैयार करने की विधि निम्न प्रकार है –

गेहूं की कुट्टी या भूसा –          250 कि.ग्रा.

गेहूं या चावल की भूसी –        20 कि.ग्रा.
गेहूं या चावल की भूसी –       20 कि.ग्रा.
अमोनियम सल्फेट या कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट –     4 कि.ग्रा.
यूरिया –                              3 कि.ग्रा.
जिप्सम –                           20 कि.ग्रा.

कम्पोस्ट बनाने की विधि –

कम्पोस्ट को पक्के फर्श पर ढेर बनाकर इसे चार दिन के अन्तराल पर पलटते रहते हैं और 24वें दिन मैलाथियान का 0.2 प्रतिशत घोल का (10 मिली. दवा प्रति 5 लीटर पानी) का छिड़काव करते रहें। तैयार कम्पोस्ट भूरे रंग का व अमोनिया की गन्ध से रहित होता है। यह ध्यान रखना चाहिए कि कम्पोस्ट की नमी बरकरार रहे। यदि कम्पोस्ट को हथेली में दबाने पर पानी निकले तो यह नमी की उचित अवस्था है।

कम्पोस्ट को पेटी या लकड़ी की पेटी में भरकर इसका बिजाई या स्पोनिंग (स्पान मशरूम के बीज को कहते हैं) की जाती है। कम्पोस्ट के ऊपर बीज छिड़कर उन्हें हल्की पर्त से ढ़क देते हैं। पांच पेटियों के लिए ढाई बोतल स्पान काफी रहता है। फिर पेटी को पुराने साफ अखबारों से ढ़क कर जमा देते हैं। बीजाई के 12-15 दिन बाद पेटी में सफेद जाल की तरह फैल जाता है तब केसिंग मिट्टी की हल्की परत पेटी में डाली जाती है। केसिंग के 3-4 हफ्ते बाद छोटे-छोटे बटन दिखाई देने लगते हैं जो 3-4 दिनों में बढ़कर करने लायक हो जाता है। इस प्रकार 6-8 सप्ताह में प्रति वर्ग मीटर में 8 कि.ग्रा. तक मशरूम उगाया जा सकता है।

ढींगरी (प्ल्युरोटस) मशरूम –

ढिंगरी मशरूम गेहूं, चावल, मक्का, जौ आदि के भूसे पर उगाया जाता है। पहले भूसे को करीब 16-18 घंटे के लिए पानी में भिगोते हैं, जिसमें 200 मिली. फार्मोलिन 33 मिली. नुआर और 5 ग्राम बेकस्टिन प्रति 100 लीटर के अनुसार मिला हो ताकि भूसे में मौजूद दूसरी फफूंदी व कीट मर जायें। भूसे को निकालने के बाद उसमें से पानी निथरने के बाद प्लास्टिक की थैलियों में भरकर हल्के हाथ से दबाकर बिजाई कर देते हैं। बिजाई परतों व मिश्रित विधि दोनों प्रकार से की जाती है। थैलियों में पर्याप्त छिद्र होने चाहिए जिससे कि हवा का आदान-प्रदान सुचारु रूप से बना रहे। इस पर हल्का पानी का छिड़काव करें नमी बनाये रखते हैं जिससे तापमान 20-30 सेल्सियस व नमी 70-80 प्रतिशत बनी रहे।
बीजाई के 3-4 सप्ताह बाद मशरूम के बटन निकलने लगते हैं जो 5-7 दिनों में परे बढ़ जाते हैं व तोड़ने लायक हो जाते हैं। पहली फसल तोड़ने के बाद पुनः पानी का छिड़काव करके ढ़क देते हैं। लगभग 7-9 दिनों के अन्तराल पर उन्हीं थैलियों से दूसरी बार फसल प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार 2-3 बार सफलतापूर्वक फसल ली जा सकती है।

पुआल मशरूम (बोल्वेरेला) –

मशरूम गहरे भूरे या सलेटी रंग का होता है। प्रारंभ में यह गोल अण्डेकार रूप से होता है तथा इस पर एक खोल चढ़ा होता है। जब मशरूम बढ़ता है, तो इसकी खोल ऊपरी सिरे से फट जाती है और इससे मशरूम का का शीर्ष बाहर आता है, जो बाद में छतरी का रूप ग्रहण कर लेती है। यह छतरी बिल्कुल गोल और बीच में मशरूम दंड से जुड़ी होती है। मशरूम दंड सफेद होता है तथा प्रारंभ की खोल इसके प्याले के रूप में लगी रहती है, जो कि इस मशरूम की मुख्य पहचान है। पुआल के  1 कि.ग्रा के बण्डल बांधकर उन्हें रातभर के लिए पानी में 2 प्रतिशत फोर्मेलिन के साथ भिगोकर रखना चाहिए। पुआल के 4-4 बण्डलों को साथ-साथ जमाकर ढे़र बनाया जाता है तथा प्रत्येक तह पर बिजाई करते जाते हैं। ऊपर तह पर बिजाई करके उसे भी ढ़क देते हैं, जब पुआल में हल्का भूरा जाल दिखाई देना शुरू हो जाता है तब पानी का छिड़काव बन्द कर देते हैं। इसकी वृद्धि काफी तेजी से होती है और 7-10 दिनों में जाल बन जाता है और इसमें लम्बे, अण्डकार, भूरे बटन में मशरूम बनने लगते हैं। 20-25 दिनों में इसकी दो फसल तैयार हो जाती हैं।

उत्पादन-

मशरूम के उत्पादन में मेहनत व लागत कम है और मुनाफा काफी है। मशरूम को अधिकतर ताजा ही काम में लेते हैं, परन्तु यदि उपज अधिक हो तो सफलतापूर्वक धूप में या 45 डि.सें. तापमान पर इनक्यूबेटर में रखकर सुखाकर पॉलिथीन की थैलियों में रखा जाता है और प्रयोग में लाने से पहले कुछ मिनट पानी में भिगो देते हैं और ताजे की तरह ही काम में लेते हैं। इसकी खेती से लागत का तीन गुना शुद्ध लाभ दो महीने के अन्दर ही मिल सकता है।

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मशरूम की खेती कर के बाजार से अच्छा मुनाफा ले सकते है|