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परिचय –
बाजरा मोटे अनाजों में एक मुख्य फसल है। भारत दुनिया का अग्रणी बाजरा उत्पादक देश है। यह मुख्यतः खरीफ फसल में उगाया जाता है। इसमें सूखे एवं अधिक गर्मी को सहन करने की क्षमता होती है। यह सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रां में उगाया जा सकता है। असिंचित क्षेत्रों में इसका क्षेत्रफल वर्षा के समय से होने के अनुसार घटता.बढ़ता रहता है। यह कम समय में पकने वाली फसल है तथा उत्पादन लागत कम होने के कारण प्रायः कम आय वाले कृषकों द्वारा उगाया जाता है। एक बीघा खेत में 15 से 18 क्विंटल बाजरा की पैदावार अधिक मिलने की दशा में किसान को 17 से 18 हजार रुपए का अतिरिक्त मुनाफा होता है। बाजरे की विभिन्न प्रजातियां 70-90 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। खड़ी फसल में हसिया की सहायता से बाली काट कर या खेत से पहले फसल काटकर खलिहान में लायें इसके बाद बालियां काट ली जाती है। इसके अलावा बाजरा मिट्टी की पोषकता के लिये भी अच्छा होता है तथा इसकी फसल तैयार होने में लगने वाली समयावधि एवं फसल लागत दोनों ही कम हैं। इन विशेषताओं के साथ बाजरे के उत्पादन के लिये कम निवेश की आवश्यकता होती है और इस प्रकार यह किसानों के लिये एक स्थायी आय स्रोत साबित हो सकता है।
फसल चक्र, मिली.जुली एवं अन्तः फसलें –
शुष्क असिंचित क्षेत्रों में बाजरे को उड़द, मूंग एवं तिल के साथ मिलाकर मिश्रित खेती की जाती है। संकर बाजरे में मूंगफली, अरण्डी, मूंग, उड़द आदि को अन्तः फसल के रुप में उगाने से अतिरिक्त आय प्राप्त होती है। बाजरे के लिए कुछ उपयोगी फसल चक्र निम्न प्रकार हैं.
बाजरा.गेहूँ.मूंग/उड़द, बाजरा.आलू.मूंग, बाजरा.आलू.गेहूँ , बाजरा.तोरिया.गेहूँ।
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स्वास्थ में लाभकारी बाजरा –
बाजरा की रोटी खाने से एनर्जी मिलती है। ये ऊर्जा एक बहुत अच्छा स्त्रोत है। इसके अलावा अगर आप वजन घटाना चाह रहे हैं तो भी बाजरा की रोटी खाना आपके लिए फायदेमंद होगा। सर्दी के दिनों में बाजरे की रोटी का सेवन करने से शरीर में अंदरूनी गर्माहट बनाए रखने के लिये बेहद फायेदमंद होता है। यही कारण है ज्यादतर लोग ठंड के मौसम में बाजरे रोटी व अन्य व्यंजन खाना पंसद करते है। बाजरे में ट्रायप्टोफेन अमीनों एसिड पाया जाता है, जो भूख को कम करता है। बाजरे की रोटी सुबह के नाश्ते में करने से लंबे समय तक भूख नहीं लगती है और पेट भी भरा रहता है। पोषण सुरक्षा बाजरे में आहार युक्त फाइबर (Dietary Fibre) भरपूर मात्रा में विद्यमान होता है इस पोषक अनाज में लोहा फोलेट एकैल्शियम, ज़स्ता, मैग्नीशियम, फास्फोरस, तांबा विटामिन एवं एंटीऑक्सिडेंट सहित अन्य कई पोषक तत्त्व प्रचुर मात्रा में होते हैं। ये पोषक तत्त्व न केवल बच्चों के स्वस्थ विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं बल्कि वयस्कों में हृदय रोग और मधुमेह के जोखिम को कम करने में भी सहायक होते हैं। ग्लूटेन फ्री ;ळसनजमद थ्तममद्ध एवं ग्लाइसेमिक इंडेक्स की कमी से युक्त बाजरा डायबिटिक मधुमेह के पीड़ित व्यक्तियों के लिये एक उचित खाद्य पदार्थ है साथ ही यह हृदय संबंधी बीमारियों और पोषण संबंधी दिमागी बीमारियों से निपटने में मदद कर सकता है।
भूमि एवं जलवायु –
बाजरे की फसल अच्छी जल निकास वाली सभी तरह भूमि में ली जा सकती है परन्तु हल्की तथा बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए सर्वोत्तम है। इसके लिए अधिक उपजाऊ भूमि की आवश्यकता नहीं होती है। बाजरे की खेती गर्म जलवायु तथा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में की जा सकती है। 32.37 डिग्री. सें.ग्रे. तापमान उपयुक्त माना गया है।
उन्नतशील किस्में –
प्रत्येक राज्य में भूमि, जलवायु तथा सिंचाई के साधनों के अनुसार अलग.अलग प्रजातियाँ बोई जाती हैं।
सिंचित मैदानी क्षेत्रों में बाजरा की प्रचलित
उन्नत किस्में निम्न हैं-
पूसा कम्पोजिट 383, पूसा कम्पोजिट 443, पूसा कम्पोजिट 701, एच.एच.बी. 197, एच.एच.बी. 46, आई.सी.एम.एच. 356 आदि हैं।
खेत की तैयारी –
खेत की दो-तीन बार जुताई करके पाटा लगाकर खेत को भुरभुरा बना देना चाहिए ताकि बुआई के समय पर्याप्त नमी खेत में मौजूद हो और बीज का सही जमाव हो सके। खेत से खरपतावर एवं पहली फसलों के सूखे अवशेष बाहर निकाल देने चाहिए।
भूमि उपचार –
दीमक, सफेद गिडार आदि भूमि में रहने वाले कीटों की रोकथाम के लिए खेत की तैयारी के समय बुआई पूर्व नीम की खली 7-8 क्विंटल प्रति हेक्टे. की दर से प्रयोग करें। इन कीटों का अधिक प्रकोप होने पर बिवेरिया बेसियाना या मैटाराइजियम 3-4 कि.ग्रा. को 150-200 कि.ग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर खेत में अन्तिम जुताई के समय प्रयोग करें। भूमिजनित फफूंद की रोकथाम हेतु 3-5 कि.ग्रा. ट्राईकोर्डमा पाउडर को 200-250 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर अन्तिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए।
बुआई का समय –
विभिन्न क्षेत्रों में भूमि, जलवायु, सिंचाई के साधनों तथा प्रजातियों के अनुसार बाजरा की बुआई अलग.अलग समय पर की जाती हैं।
असिंचित क्षेत्रों में बुआई का समय मानसून के आने पर निर्भर करता है। सिंचित क्षेत्रों में सामान्यतः बुआई जुलाई-अगस्त के पहले सप्ताह तक कर देनी चाहिए। अधिक देरी से बुआई करने पर कीड़े और बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है।
बीज दर एवं बुआई –
सीडड्रिल या हल के पीछे पंक्तियों में बुआई करने के लिए औसतन बीज दर 4-5 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टे. है। पक्तियों के बीच की दूरी 45 सेमी. तथा पौधों के बीच की दूरी 10-15 सेमी. रखनी चाहिए। अच्छे जमाव के लिए बीज की बुआई 4 इंच से अधिक गहराई पर नहीं की जानी चाहिए बाजरा की बुआई पौध रोपण विधि द्वारा भी की जा सकती है जिसके लिए 2 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टे. की दर से नर्सरी में बुआई करें। एक हेक्टे. क्षेत्र में पौध रोपण करने हेतु 500 वर्ग मीटर भूमि में नर्सरी तैयार करनी चाहिए जिसमें गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद को भूमि में अच्छी प्रकार मिलाकर समतल क्यारियाँ बनानी चाहिए। इन क्यारियों में बीज को 10 सेमी. के फासले पर पक्तियों में 2 सेमी. की गहराई पर बुआई करें। तीन सप्ताह बाद पौध को उखाड़कर मुख्य खेत में लगा देना चाहिए। रोपाई विधि से फसल जल्दी तैयार हो जाती है। पौधों में फुटाव अधिक होने से औसत उपज अधिक होती है।
बीज शोधन –
बीज एवं भूमिजनित जीवाणु रोगों से बचाव हेतु बुआई पूर्व अनुमोदित जैविक कीटनाशक, फफूंदनाशक एवं जैव उर्वरक से उपचारित करके बिजाई करें। बीज उपचार के तरीके निम्न प्रकार हैं
बीजामृत/वेस्ट डिकम्पोजर द्वारा –
बीजामृत या वेस्ट डिकम्पोजर घोल को बीज पर छिड़कें तथा अच्छी प्रकार मिलाकर 2-3 घण्टे बाद बुआई करें।
ट्राइकोडर्मा विरिडी (जैव फफूंद) द्वारा –
बीज में 5 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से ट्राइकोडर्मा पाउडर अच्छी तरह मिलाएँ तथा 2-3 घण्टे बाद बुआई करें।
जैव उर्वरक द्वारा –
जैव उर्वरक जैसे. अजेटोबैक्टर/एजोस्पोरिलम, पी.एस.बी. द्वारा 20 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचार करें। जैव उर्वरक का गुड़ में घोल बनाएँ तथा बीज में अच्छी तरह मिलाएँ तथा 2.3 घण्टे बाद बुआई करें।
खाद एवं जैव उर्वरक –
फसल की अच्छी पैदावार हेतु जैविक खादों.गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद, केंचुआ खाद आदि का प्रयोग करें। 100 कि.ग्रा. केंचुआ खाद को 100-150 क्विंटल गोबर की खाद में मिलाकर या 50-60 क्विंटल कम्पोस्ट को बुआई पूर्व एक हेक्टे. खेत में जुताई करके मिला दें। पोषक तत्त्वों की कमी को पूरा करने हेतु 4-5 कि.ग्रा. अजेटोबैक्टर को सड़ी गोबर की खाद के साथ मिलाकर बुआई पूर्व जुताई के समय प्रयोग करें। फसल में जीवामृत 500 ली. प्रति हेक्टे. घोल को सिंचाई के साथ प्रयोग करें।
सिंचाई.खरीफ फसल में समय पर वर्षा होना ही इसके लिए पर्याप्त है। इसके अभाव में एक या दो सिंचाई कल्ले फूटने, फूल आने एवं दाना बनने की अवस्था में आवश्यकतानुसार करनी चाहिए।
निराई-गुड़ाई/खरपतवार निष्कासन-
बुआई के 20-25 दिन बाद निराई करके खरपतवार निकाल देना चाहिए तथा घने स्थान से पौधे उखाड़कर रिक्त स्थानों पर रोपित करना देना चाहिए।
कीट प्रबंधन-
बाजरा में लगने वाले मुख्य हानिकारक कीट एवं उनका जैविक प्रबंधन निम्न प्रकार है.
सफेद गिडार-
हल्की बलुई मिट्टी में प्रायः सूखे के कारण सफेद गिडार का प्रकोप हो सकता है। यह सफेद मटमैले रंग की एक गिडार है जो भूमि में गहराई तक जाती है और फसल की जड़ों को काटती है जिसके परिणामस्वरूप पौधा सूख जाता है।
- भूमि में नीम की खली का प्रयोग करें।
- खेत के चारों तरफ नीम के पेड़ लगाएँ। यह गिडार नीम की पत्तियों को खाते हैं। अतः नीम के पेड़ पर ही इसका नियंत्रण करें।
- भूमि में बिवेरिया बेसियाना 3.4 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. को गोबर की खाद के साथ बुआई से पूर्व प्रयोग करें।
- इसके ग्रब एवं वयस्क लाईट ट्रैप पर आकर्षित होते हैं। अतः इनको पकड़कर नष्ट कर दें।
दीमक –
इसकी रोकथाम हेतु खेत में फसलों के सूखे अवशेष नहीं रहने चाहिए। नमी बनी रहने पर दीमक का प्रकोप कम होता है। खेतों में कच्चे गोबर का प्रयोग न करके सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। बुआई से पूर्व नीम की खली 5.6 कि्ंवटल प्रति हेक्टे. या बिवेरिया/मैटाराइजियम 3.4 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. को गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करें।
रोग प्रबन्धन –
बाजरे का कण्डवा.यह बीजजनित फफूंद से फैलने वाला रोग है। रोग से प्रभावित बाजरे की बालियाँ/सिट्टे में बनने वाले दाने काले चूर्ण में परिवर्तित हो जाते हैं।
हरित बाली रोग (डाउनी मिल्ड्यू )-
इस रोग से पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं तथा प्रभावित पौधों पर बालियाँ नहीं बन पातीं या बालियों में दानां की जगह एक पत्तियों का गुच्छा बन जाता है। अरगट.यह बालियों पर लगने वाला रोग है। संक्रमित बालियों से हनी ड्यू.एक चिपचिपा पदार्थ निकलता है तथा इसके सूखने पर बालियाँ सख्त हो जाती हैं। स्कलेरोसिया बनने से दाने काले पड़ जाते हैं।
प्रबंधन –
- एक ही खेत में प्रतिवर्ष बाजरे की खेती नहीं करनी चाहिए।
- रोग.प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें।
- बीज का उपचार.10 प्रतिशत नमक के घोल से बीज को उपचारित करें।
- रोगग्रसित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें।
- जैव फफूंदीनाशक का खड़ी फसल में छिड़काव करें।