पशु-चारा की खेती कैसे करे ?

देश में हरे चारे की लगभग 45-55 प्रतिशत कमी है। केवल मानसून के मौसम में हरा चारा पशुओं के लिए प्रयाप्त हो पाता है शेष मौसम में पशुओं को फसल अवशेषों एवं भूसे आदि पर ही पालना पड़ता है। इसके लिए हरा चारा वर्ष भर पशुओं को उचित मात्रा में मिलना सुनिश्चित करना, फसल चक्रों में उपस्थित फसलों द्वारा अधिकतम उत्पादन करना, चारा फसलों द्वारा प्रयुक्त भूमि का सिंचित होना, चारा फसलों द्वारा आवश्यक लागत निवेश जैसे खाद, आदि की उचित उपलब्धता होना विशेष तौर पर महत्वपूर्ण है।

जैविक चारा –

देश में विभिन्न पशु प्रजातियों की बहुत सारी नस्लें पाई जाती हैं। इन पशु प्रजातियों में उत्तम किस्म की नस्लें उपलब्ध होने के बावजूद भी इनकी उत्पादकता काफी कम हैं। पशुओं की निम्न उत्पादकता के कारणों में चारे-दाने की गुणवत्ता और पर्याप्त मात्रा का अभाव ही मुख्य है। आमतौर पर पशुपालक अपने पशुओं को उचित पोषक तत्वों वाला उत्तम गुणवत्ता का चारा-दाना उपलब्ध नहीं कराते हैं, जिसके कारण कुपोषण हो जाता है और पशु का उत्पादन न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाता है। फलस्वरूप गाय-भैंस, बकरी में दुग्ध तथा भेड-बकरियों में मास उत्पादन तो घटता ही है, साथ ही पशु रोगग्रस्त भी रहते है। प्रजनन कम हो जाता है। पशुओं का उत्तम गुणवत्ता का हरा चारा खिलाने से पशु का दुग्ध उत्पादन बढ़ता है, पशु लम्बे समय तक दुग्ध उत्पादन करता है, पशु समय गर्भित होता है, पशु के दो ब्यांतो के बीच का अंतराल घटता है, पशु की प्रजनन शक्ति बढती है, पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता आश्चर्यजनक रूप से बढ़ती है, नवजात बच्चों का भार बढ़ाता है नवजात बच्चों में मृत्यु दर घटती है।

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पशु-चारा की खेती कैसे करे ?
पशु-चारा की खेती कैसे करे ?

हरा चारा –

हरा चारा मुख्य रूप से जल एवं पोषक-तत्वों की अधिकता से युक्त होता हैं। इनमें शुष्क पदार्थ की मात्रा कम होती है।

खरीफ व गर्मी के हरे चारे-

मक्मा, ज्वार, बाजरा, ग्वार लोबिया, विभिन्न चारा, घासें आदि।

रबी व सर्दी के हरे चारे-

मक्का, बरसीम, कासनी, जई, सरसों इत्यादि।

जायद व बसंत के हरे चारे –

मूंग उर्द, मक्का इत्यादि।

सूखा चारा –

सूखा चारा अधिकतम शुष्क पदार्थ होता है तथा इसमें जल का अतिनिम्न प्रतिशत पाया जाता है। यह हरे-चारे की तुलना में कम पौष्टिक होता है, परन्तु हरे चारे के अभाव में सूखे चारे से ही पशु अपने जीवन को बचा पाते हैं। सूखे-चारे मुख्य रूप से गेहूँ, धान का भूसा, ज्वार-बाजरा की कडवी, चने-मटर-अरहर-उड़द-मूंग आदि का छिलका व भूसा हैं।

जैविक कृषि उत्पादन में जैव उर्वरकों का महत्व एवं उपयोग –

जैव उर्वरक क्या है ?

सभी प्रकार के पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए मुख्यतः 16 तत्वों की आवश्यकता होती है, जिनमें नाइट्रोजन एवं फास्फोरस अति आवश्यक तत्व हैं। यह पौधों को दो प्रकार से उपलब्ध होते हैं।
क – गोबर की खाद/नादेप कम्पोस्ट/वर्मी कम्पोस्ट द्वारा
ख- नाईट्रोजन स्थिरीकरण एवं फास्फोरस घुलनशील जीवाणुओं द्वारा प्राकृतिक रूप से मिट्टी में कुछ ऐसे जीवाणु पाये जाते हैं, जो वायु मण्डलीय नत्रजन को अमोनिया में एवं स्थिर फास्फोरस को उपलब्ध अवस्था में बदल देते हैं। जीवाणु खाद ऐसे ही जीवाणुओं का उत्पाद है, जो पौधों को नत्रजन एवं फास्फोरस आदि की उपलब्धता बढ़ाता हैः-

जैव उर्वरक निम्न प्रकार के उपलब्ध हैं –

राईजोबियम 2. एजोटोबेक्टर 3. एजोस्पाइरिलम
फास्फोटिका 5. नील हरित शैवाल

राइजोबियम –

यह एक नमीधारक पदार्थ का मिश्रण है, जिसके प्रत्येक एक ग्राम भाग में 10 करोड़ से अधिक राइजोबियम जीवाणु होते हैं। यह जैव उर्वरक केवल दलहनी फसलों में ही उपयोग किया जा सकता है तथा यह फसल विशिष्ट होती है, अर्थात अलग-अलग फसल के लिए अलग-अलग प्रकार के राइजोबियम जैव उर्वरक का उपयोग होता है। राइजोबियम जैव उर्वरक से बीज उपचार करने पर यह जीवाणु खाद से बीज पर चिपक जाते हैं। बीज अंकुरण पर ये जीवाणु जड मूलराम द्वारा पौधों की जड़ों में प्रवेश कर जड़ो पर ग्रन्थ्यिं का निमार्ण करते हैं। ये ग्रन्थ्यिं नत्रजन स्थिरीकरण इकाइयां तथा पौधों की बढवार इनकी संख्या पर निर्भर करती है। अधिक ग्रन्थ्यिं के होने पर पैदावार भी अधिक होती है।

किन फसलों में उपयोग किया जा सकता है ?

अलग-अलग फसलों के लिए राइजोबियम जैव उर्वरक के अलग-अलग पैकेट उपलब्ध होते हैं तथा निम्न फसलों में उपयोग किये जाते हैं।
1. मूंग, उर्द, अरहर, चना, मटर, मसूर आदि।
2. तिलहनी, मूंगफली, सोयाबीन।
3. अन्य : रिजका, बरसीम एवं सभी प्रकार की बीन्स।

कैसे उपयोग करें ?

200 ग्राम राइजोबियम कल्चर से 10 किग्रा. बीज उपचारित कर सकते हैं। एक पैकेट को खोलें तथा 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर लगभग 500 मिली. पानी में डालकर 50 ग्राम गुड़ के साथ अच्छी प्रकार घोल बना लें। बीजों को किसी साफ सतह पर इकट्ठा कर जैव उर्वरक के घोल को बीजों पर धीरे-धीरे डालें और हाथ से तब तक उलटते पलटते जायें जब तक कि सभी बीजों पर जैव उर्वरक की समान परत न बने जाये। अब उपचारित बीजों को किसी छायादार स्थान पर फैलाकर 10-15 मिनट तक सुखा लें और तुरन्त बुवाई करें।

राइजोबियम जीवाणु के उपयोग से लाभ –

1. इसके उपयोग से 10-30 किग्रा. रासायनिक नत्रजन की बचत होती है।
2. इसके उपयोग से फसल की उपज 15-20 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
3. राइजोबियम जीवाणु कुछ हारमोन एवं विटामिन भी बनाते हैं, जिससे पौधों की बढवार अच्छी होती है और जड़ों, का विकास भी अच्छा होता है।
4. इन फसलों के बाद कोई जाने वाली फसलों में भी भूमि की उर्वरा शक्ति अधिक होने से पैदावार अधिक मिलती है।

एजोटोबेक्टर/एजोस्पाइरिलम/जैव उर्वरक –

यह जैव उर्वरक स्वतंत्रजीवी नत्रजन स्थिरीकरण, एजोटोबेक्टर या एजोस्पाइरिलम जीवाणु का एक नम चूर्णरूप उत्पाद हैं। इसके एक ग्राम में लगभग 10 करोड़ जीवाणु होते हैं। यह जैव उर्वरक किसी भी फसल (दलहनी जाति की फसलों को छोडकर) में उपयोग किया जा सकता है।

एजोटोबेक्टर/एजोस्पाइरिलम जैव उर्वरक से लाभ –

1. फसलों की 10-20 प्रतिशत तक पैदावार में बढ़ोतरी होती है तथा फलों एवं दानों का प्राकृतिक स्वाद बना रहता है।
2. इसके उपयोग करने से 20-30 किग्रा. नत्रजन की बचत भी की जा सकती है।
3. इनके उपयोग करने से अंकुरण शीघ्र और स्वस्थ होते हैं ताकि जड़ों का विकास अधिक एवं शीघ्र होता है।
4. फसलें भूमि से फास्फोरस का अधिक उपयोग कर लेती है, जिससे कल्ले अधिक बनते हैं।
5. इन जैव उर्वरकों के जीवाणु बीमारी फैलाने वाले रोगाणुओं का दमन करते हैं, जिससे फसलों का बीमारियों से बचाव होता है ताकि पौधों में रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है।
6. ऐसे जैव उर्वरकों का उपयोग करने से जड़ों एवं तनों का अधिक विकास होता है, जिससे पौधों में तेज हवा, अधिक वर्षा एवं सूखे की स्थिति को सहने की क्षमता बढ जाती है।

फास्फोटिका जैव उर्वरक –

फास्फोटिका जैव उर्वरक भी स्वतंत्र-जीवी जीवाणु का एक नम चूर्ण रूप उत्पाद है। इससे भी एक ग्राम में लगभग 10 करोड़ जीवाणु होते हैं। यह जैव उर्वरक उपयोग करने से मृदा में उपस्थित अघुलनशील फास्फोरस घुलनशील अवस्था में जीवाणुओं द्वारा बदल दी जाती है।
साधारणतया मृदा में भी उपरोक्त प्रकार के जीवाणु होते हैं, परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि मृदा में उपस्थित जीवाणु सूक्ष्म एवं असरकारक हों। अतः कल्चर के माध्यम से किसानों को असरकारक जीवित पदार्थ या जीवाणु उपलब्ध जाते हैं।

फास्फोटिका जीवाणु के लाभ –

1. फास्फोटिका जीवाणु खाद के उपयोग करने से 10-20 प्रतिशत पैदावार में बढ़ोतरी के साथ-साथ मिट्टी में उपलब्ध फास्फोरस की 30-50 प्रतिशत की बचत की जा सकती है।
2. जड़ों का विकास अधिक होता है, जिससे पौधा स्वस्थ बना रहता है।

सावधानियां –

1. राइजोबियम जीवाणु फसल विशिष्ट होता है। अतः पैकेट पर लिखी फसल में ही उपयोग करें।
2. जैव उर्वरक को धुप व गर्मी से दूर किसी सूखी एवं ठंडी जगह में रखें।
3. जैव उर्वरक या जैव उर्वरक उपचारित बीजों को किसी भी रासायन या रासायनिक खाद के साथ न मिलायें।
4. जैव उर्वरक का उपयोग पैकेट पर लिखी अन्तिम तिथि से पहले ही कर लेना चाहिए।

 

FAQ –

प्रश्न -पशु चारा नहीं खाता है ?

उत्तर – अगर पशु चारा नहीं खाता है तो इसकी वजह यह भी हो सकता है पेट में कीड़े होना है। पशु निमोनिया, बच्चेदानी संक्रमण, बुखार होने पर भी कम खाना खाता है तथा जाड़ बढ़ना गाल के पास कील कांटे निकलना और खून में संक्रमण सर्रा आदि होने पर भी पशु कम खाना खाता है।

प्रश्न – भैंस या गाय चारा कम खाती है तो क्या करना चाहिए ?

उत्तर – पशुओं को खुरपका मुंहपका गलघोंटू का टीका समय पर जरूर लगवाएं। पशु चिकित्सक से जांच और सही इलाज कराएं।

पशु को एक दिन में लगभग 2-3 बार चारा जरूर दें। मुंह में अंदर गाल और जीभ के किनारे सालू कील कांटे निकलने पर पिसा हुआ नमक लगाएं।

प्रश्न -पशुओं में लंपी संक्रमण की बीमारी का क्या इलाज है ?

उत्तर -लंपी संक्रमण के रोकथाम के लिये पशुओं को आंवला, अश्वगन्धा गिलोय एंव मुलेठी में से किसी एक को 20 ग्राम की मात्रा में गुड़ मिलाकर सुबह शाम लड्डू बनाकर खिलाएं तुलसी के पत्ते एक मुट्ठी दालचीनी 05 ग्राम सोठ पाउडर 05 ग्राम, काली मिर्च 10 नग को गुड़ में मिलाकर सुबह शाम खिलाएं