प्रगतिशील किसान जैविक खेती को नये तरीके से अपना कर आमनी को बढा रहा है जाने कैसे ? Progressive farmer is increasing the income by adopting organic farming in a new Method in Hindi जैविक खेती को व्यवहारिक रूप देने के लिए प्रगतिशील किसान व वैज्ञानिक नये-नये तरीके अपना रहे हैं। जब कोई नया कार्य बड़ा शोध संस्थान अथवा प्रतिष्ठित संस्था अथवा क्षेत्र का जाना माना किसान करता है तो उस कार्य पर अधिकतर किसानों का विश्वास और प्रबल हो जाता है। जैविक खेती करने के नित नये-नये फायदे उभरकर सामने आ रहे हैं। जिससे यह साबित होता है कि जैविक खेती न कि आने वाले समय में बल्कि वर्तमान समय में भी फायदेमद है। यदि जैविक खेती को पूरी तरह क्रमवद्ध तरीके से अपनाया जाय तो देश भर में मनुष्य एवं पशुओं में होने वाली बीमारियों, जल, भूमि एवं वायु प्रदूषण की समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है। जैविक खेती अपनाने से प्रारम्भ में फसलोंत्पादन में 25-30 प्रतिशत कमी आती है, दूसरे वर्ष से उत्पादन धीरे-धीरे बढता है, जो तीसरे व चौथे वर्ष में परम्परागत खेती के बराबर अथवा अधिक पहुंच जाता है। जैविक खेती अपनाने से एक वर्ष बाद जमीन व पशुओं की उत्पादन क्षमता में लगातार बढ़ोत्तरी होने लगती है। भूमि में नमी बरकरार रहती है और फसल सूखे की स्थिति में तथा कीट एवं रोगों के आक्रमण से पौधों में लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है।
रासायनिक उर्वरकों, कीट एवं खरपतवार नाशकों का भूमि में लगातार प्रयोग, भूमि को मृत दशा की ओर ले जाता है। जैविक खेती एक ऐसी प्रणाली है जो भूमि में प्राकृतिक रूप से असंख्य सूक्ष्म लाभदायक जीवाणुओं को सुरक्षा प्रदान करती है। यह जीवाणुं एक दूसरे के पूरक तो होते ही है साथ में फसलों को बढ़वार हेतु पोषक तत्व भी उपलब्ध करवाते हैं। पौधों के समुचित विकास एवं फसलोंत्पादन के लिए उच्च गुणवत्ता वाले संस्तुत किस्मों के बीज, खाद एवं उपजाऊ मिट्टी का होना नितान्त आवश्यक है। भूमि को लगातार जींवाश खाद (गोबर की खाद, कम्पोस्ट, केंचुआ खाद, हरी खाद, जीवाणुं कल्चर आदि) बायोपेस्टीसाइड, केंचुआ घोल, बायो एजेण्ट के द्वारा पोषक तत्वों की पूर्ति की जाती है। यह तभी सम्भव हो पायेगा, जब किसान के पास पर्याप्त मात्रा में पशुधन और उनके गोबर व मूत्र से विधिवत् तैयार किया हुआ बीजामृत, जीवामृत, अमृत पानी, तरल कीट एवं रोग नाषी, खट्ठी छाछ, गौ-मूत्र का बुवाई से लेकर फसल पकने की अवस्था तक उपयोग करने में कमी न आने दें। बुर्जुग किसान व उसकी नयी पीढी जैविक खेती से होने वाले फायदों को भलीभाँति समझती है। लेकिन यह नयी पीढ़ी पशु गोबर, गौ-मूत्र को हाथ लगाने में शर्मिदगी व दुर्गध से दूर भागती है। जब तक वह पशुधन एवं खेती से प्राप्त अवशेषों का भलीभाँति सद्उपयोग करना नहीं सीखेगा तबतक वह जैविक खेती करने में निपुण नहीं हो सकेगा। महाराष्ट्र एवं आध्र प्रदेश के किसान रासायनिक खेती से होने वाले नुकसान एवं जैविक खाद तथा जैविक संसाधनों से होने वाले फायदों को अच्छी तरह से समझने लगे हैं। वहां के किसान जैविक खेती की ओर निरंतर अग्रसर हो रहे है और उनकी जैविक खेती फल-फूल रही है।
जैविक बीजों का जैविक विधि से ही बीज शोधन करें : Seed treatment by organic Methods in Hindi किसी भी फसल से अधिक पैदावार लेने के लिए बीज को सर्वोपरी माना गया है। बीज अपने आप में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उस बीज को उत्तम कोटि का माना जाता है, जिसमें शत्-प्रतिशत आनुवांशिक शुद्धता हो, अन्य फसल एवं खरपतवारों के बीज रहित होने के साथ-साथ कीड़े एवं बीज जनित बीमारियों के प्रभाव से मुक्त हो। बीज में जीवन शक्ति और ओज भरपूर हो तथा अंकुरण क्षमता उच्च कोटि की हो, जिससे खेत में बीज जमाव प्रतिशत में वृद्धि और भरपूर उपज ली जा सके। किसानों को चाहिए कि खरीफ मौसम में बुवाई से पूर्व ही क्षेत्रानुसार विभिन्न फसलों जैसे- धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, उर्द, मूंग, अरहर, तिल, मूंगफली, सब्जियाँ आदि के जैविक बीज की व्यवस्था समय से करें। खेत में बिजाई के समय बीजामृत, ट्राईकोडर्मा से बीज शोधन करके 10-15 प्रतिशत अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। जैविक किसानां को प्रत्येक वर्ष प्रक्षेत्र पर ही जैविक बीज उत्पादन तकनीक से जैविक बीज उत्पादन भी करना चाहिए।