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सारांश
जैविक खेती एवं पशु पालन भारतीय संस्कृति का सदियों से एक आधार रहा है। कृषि एवं पशु पालन दोनों ही एक दूसरे के पूर्वक है जिनको कभी भी एक दूसरे अलग नहीं किया जा सकता है। 20वीं सदी के अन्तिम में 3 दशकों में जबसे खेती में मशीनीकरण एवं रसायनों के समावेश में वृद्धि देखने को मिला तब से पशु पालन व्यवसाय में निरंतर गिरावट देखेने को मिली है, जिसके फलस्वरूप भूमि की उवर्रा शक्ति एवं उत्पादकता गिरावट होना प्रारम्भ हुआ।
रासायनिक उर्वरक व कीटनाशकों के निरंतर उपयोग से न केवल जल प्रदूषित हुआ है बल्कि समस्त वातावरण दूषित होने से विभिन्न प्रकार की बिमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है। ऐसे परिस्थिति में जैविक खेती ही एक ऐसा विकल्प है जिससे न केवल वातावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है बल्कि किसान की माली हालत को भी सुधारा जा सकता है।
पिछले चार-पाँच दशकों से बिना सोचे समझे रासायनिक खादों का अन्धाधुन्ध एवं लगातर उपयोग करने के कारण मृदा में कार्बिनक पदार्थों में भारी गिरावट आई है, साथ ही कीट नाशकों के उपयोग से कीट प्रतिरोधी क्षमता बढ़ गयी है, और खरपतवार नियंत्रण भी मुश्किल हो गया है। रासायनिक के बचे हुये अंश से खाद्य पदार्थों के निरंतर उत्पादन एवं संरक्षण पर असर पड़ रहा है।
जैविक खेती प्रणाली मुख्यतः गोबर खाद, नादेप कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, दलहनी फसल, हरी खाद, फसल चक्र, फसल अवशेष, खनिज चट्टानों एवं जैविक कीट एवं रोग नियंत्रण पर निर्भर करती है, जो मृदा की उत्पादकता को बनाये रखने में सहायक होते हैं। जैविक खादों के द्वारा पौधों को मुख्त तत्व जैसे नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश की आपूर्ति करते हैं।
जैविक खेती फसलों से ही प्राप्त पदार्थों से की जाती है जिसमें कृत्रिम खाद, रासायनिक मिश्रण जैसे रासायनिक खाद, कीट एवं रोगनाशक, खर-पतवार नाशक, वृद्धि नियंत्रक रासायनों आदि का उपयोग करना वर्जित है।
जैविक खेती का मुख्य उद्देश्य भूमि स्वास्थ्य में सुधार, खेती की लागत में कमी, गुणवत्तायुक्त खाद्य उत्पादन का उचित मूल्य एवं पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना है।
मुख्य उद्देश्य जैविक खेती के लिये
1. जैविक कृषि पद्धति विकसित करना
2. भूमि की उर्वरा शक्ति एवं उत्पादकता में स्थिरता लाना
3. खेती की लागत को कम करना
4. फसलों में कीड़ों एवं बीमारियों के प्रति अवरोधकता बढ़ाना
5. भूमि में लाभदायक सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि करना
6. गणवत्तायुक्त खाद्य उत्पादन
7. रासायनिक खेती के स्थान पर जैविक खेती को प्रोत्साहन देना
प्रमाणीकरण जैविक खेती के लिये
जैविक खेती प्रमाणीकरण एक प्रक्रिया है जिसमें राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम के अन्तर्गत भारत सरकार (एपिडा) द्वारा मान्यता प्राप्त संस्था राष्ट्रीय जैविक उत्पादन मानकों के अनुरूप किसान समूह में की गयी खेती का प्रमाणीकरण करती है। ताकि किसान को जैविक उत्पाद का उचित मूल्य मिल सके।
सहभागिता जैविक प्र्रतिभूति प्र्रणाली Participatory Guarantee System (PGS)
पी.जी.एस. जैविक उत्पादन की एक ऐसी गुणवत्ता आश्वासन प्रक्रिया है जो स्थानीय रूप से प्रासंगिक है तथा सभी भागीदारों जिनमें उत्पादक व उपभोक्ता दोनों शामिल हैं की सहभागिता सुनिश्चित करते हुए तथा तृतीय पक्ष प्रमाणीकरण प्रक्रिया से अलग रहकर उत्पाद गुणवत्ता की गारंटी देती है।
क्या करें और क्या न करें जैविक खेती में किसान – Organic Production Management in Crops in Hindi
Methods for making Organic Manureऽ
जैविक खेती में क्या करें किसान
किसान अपने खेत में पुआल, घास-फूस, पत्तियाँ आदि न जलायें बल्कि इन्हें इकट्ठा करके कम्पोस्ट/नादेप कम्पोस्ट खाद बनायें।
ऽ जैविक खेतों की मेंड़ बन्दी अच्छी तरह से करें ताकि अजैविक खेतों से पानी बहकर न आ पायें।
ऽ अपने जैविक खेत में मुख्य फसल के चारों तरफ बार्डर (बफर) फसल जरूर उगाये जैसे-चरी, ज्वार, बाजरा, मक्का, अरहर, ढैचा आदि।
ऽ अगर समानान्तर फसल उत्पादन कर रहे हैं तो जैविक एवं अजैविक का अलग-अलग लेखा-जोखा रखें।
ऽ बाजार से खरीदे गए सभी निवेश (इनपुट्स) का लेखा-जोखा रखें।
ऽ जैविक खेती में अपने खेत से प्राप्त जैविक बीज ही उपयोग करें अथवा जैविक बीच ही क्रय करें। अजैविक बीज बाजार से खरीदे गऐ हों तो उनको बुआई से पहले बीजामृत से उपचारित करके बुआई करें।
ऽ अपने खेत में प्लास्टिक की थेलियां एवं टुकडे़ आदि न आने दें और खेत साफ सुथरा रखें।
ऽ जैविक खेती हेतु राष्ट्रीय मानकों का अध्ययन करें एवं पूरी जानकारी रखें।
ऽ जैविक खेती को सस्ती एवं लाभदायक बनाने हेतु सभी संसाधन अपने खेत पर ही तैयार करें जैसे नाडेप कम्पोस्ट, सी0पी0पी0 कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, वर्मी वाश, हरीखाद, आदि।
ऽ जैविक फसल जैसे आलू, लहसुन, अरबी, अदरक आदि का भण्डारा भी अलग से करें।
ऽ जैविक उत्पाद का परिवहन (ट्रॅन्सपोर्ट) व्यवस्था अलग से करें।
ऽ जैविक खेती में उपयोग किये जाने वाले सभी यंत्रों जैसे दरांती, फावड़ा, खुरपी, छिड़काव मशीन, सीडड्रिल, थ्रेसर, हैरों, टै्रक्टर आदि का उपयोग करने से पहले भली-भाँति सफाई एवं धुलाई करें।
ऽ जैविक एवं अजैविक फसल उत्पादन की कटाई, मंडाई, सफाई, ग्रेडिंग एवं पैकिंग अलग से करें।
ऽ जैविक उत्पाद की पैकेजिंग में अजैविक उत्पादों के उपयोग में लाये बैग, बोरे, टोकरी, आदि का उपयोग न करें।
ऽ जैविक उत्पाद पर सही लेबल लगाकर परिवहन एवं भण्डारण करें।
ऽ जैविक उत्पाद का उचित (अधिक) मूल्य पाने हेतु कृषक समूह के साथ ही विपणन करें।
जैविक खेती में क्या न करें किसान
ऽ जैविक खेती में वर्जित रासायनिक एवं अरासायनिक निवेश (इनपुट्स) उपयोग में नहीं लायें।
ऽ जैविक एवं अजैविक फसल के उत्पाद का साथ-साथ भण्डारा न करें।
ऽ जैविक एवं अजैविक बीज जैसे-आलू, लहसुन, अरबी, अदरक आदि का भण्डारा साथ-साथ न करें।
ऽ जैविक एवं अजैविक उत्पाद का परिवहन (ट्रान्सपोर्ट) एक ही वाहन से करना वर्जित है।
ऽ अजैविक उत्पादों के उपयोग में लाये गये बैंग, बोरे-बोरी, टोकरी आदि का उपयोग जैविक उत्पाद की पैकेजिंग में न करें।
ऽ जैविक उत्पाद की पैकेजिंग में रासायनिक खादों के बोरों में करना वर्जित है।
ऽ किसान अपने खेत में मल-मूत्र का त्याग न करें।
जैविक उर्वरक प्रबन्धन, बीच शोधन एवं बीजोपचार, जैविक फसलों में खाद, तथा कीट-रोग नियंत्रण कब और कैसे करें
जैविक खेती में मुख्य पोषक तत्वों की पूर्ति हेतु प्रक्षेत्र पर बनाई गई गोबर की खाद, नादेप कम्पोस्ट, सी.पी.पी. (गाय के गोबर की कम्पोस्ट), केंचुआ खाद, केंचुआ धोधन, जैव उर्वरक मिश्रण (बायोफर्टीलाइजर्स) आदि का उपयोग करें। जैव उर्वरक के उपयोग करने से भूमि की उर्वरा शक्ति में सुधार होता है।
ऽ जैव उर्वरक मिश्रण मृदा में उपलब्ध पोषक-तत्वों की घुलनशीलता को बढ़ाकर पौधों को उपलब्ध कराता है।
ऽ भूमि में रासायनिक एवं मेटाबुलिक क्रियाओं से उत्पन्न जहरीलेपन को कम करता है।
ऽ भूमि में जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ाकर पौधों की बढ़वार में सहायक होता है।
ऽ जैव अपघटन (परिवर्तन) को बढ़ावा देता है।
ऽ भूमि में उपलब्ध लाभदायक सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या को बढ़ाता है।
ऽ भूमि के पी.एच. को संतुलित करने में मदद करता है।
ऽ भूमि में उपलब्ध सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाता है।
ऽ बीज के जमाव प्रतिशत को बढ़ाता है।
पौष्टिक कम्पोस्ट जैव उर्वरक से कैसे बनायें ?
ऽ जैव उर्वरक की 2 किग्रा. मात्रा को 2 किग्रा. पुराने गुड़ के साथ 12-15 लीटर पानी में घोलें।
ऽ पूरी तरह से सड़ी हुई 1.5-2.0 कुन्तल गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद को छाया में जमींन पर गद्दे नुमा (1.5 ग 1.5 मीटर) चोकोर समतल विछावन तैयार करें।
ऽ जैव उर्वरक व गुड़ के तैयार घोल को फैलाई हुई खाद की सतह पर छिड़क कर फावड़े से अच्छी तरह से मिलाएं।
ऽ अब खाद को इक्ट्ठा करके ढ़ेर बना दें और पुआल से 8-10 दिन तक ढ़ककर रखें।
ऽ खाद के इस मिश्रण को बीच में 3 दिन बाद फिर मिलाना ज्यादा लाभकारी होगा।
ऽ इस जैव परिवर्तित मिश्रण/कम्पोस्ट को 7-8 दिन के अन्दर एक हेक्टेयर खेत में उपयोग करना चाहिए।
ऽ उपरोक्त विधि से तैयार की गई पौष्टिक खाद को फसल की बुआई से पहले अन्तिम जुताई के साथ शाम के समय उपयोग करें। मिश्रण को खड़ी फसल में बुरकने के तुरन्त बाद सिचांई करना लाभदायक होता है।
ऽ फसल में जैव उर्वरक को आवश्यकतानुसार 2-3 बार खाद के रूप में सिंचाई के समय उपयोग किया जा सकता है।
बीज शोधन और उपचार
बीज जनित रोग से बचाव के लिए 8-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किग्रा. बीज की दर से बीज को बोने से पूर्व शोधित करना चाहिए। दलहनी फसलों के बीज को अलग-अलग राइजोबियम कल्चर एवं पी.एस.बी. कल्चर से उपचारित करना चाहिए। एक पैकेट (200 ग्राम)राजजोबियम कल्चर 10 किग्रा. बीज उपचार के लिए पर्याप्त होता है। एक पैकेट राइजोबियम कल्चर को साफ पानी में मिलाकर 10 किग्रा. बीज उपचार के लिए पर्याप्त होता है एक पैकेट राइजोबियम कल्चर को साफ पानी में मिलाकर 10 किग्रा. दलहनी फसलों के बीज के ऊपर छिड़क कर हल्के हाथ से मिलायें, जिससे बीज के ऊपर कल्चर की एक हल्की परत बन जाए। इस बीज की बुआई तुरन्त करें। तेज धूप में बुआई करने पर कल्चर के जीवाणुओं के मरने की आशंका रहती है।
कीटनाशी, तरल खाद एवं कैसे तैयार करें?
तरल खाद एवं कीटनाशी जो गोबर, गौ-मूत्र तथा विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधों एवं वृक्षों की पत्तियों से बनाये जाते हैं जैसे-नीम, अरण्डी, करंज, मदार (आक), सदाबहार (बेशरम या आइपोमिया), लैण्टाना, धतूरा, कंटीली, कनेर, आदि। इस तरल खाद में कीट एवं रोग निवारक गुण होते हैं।
बनाने की विधि एवं उपयोग
ऽ किन्ही 1-2 पेड़-पौधों नीम, अरण्डी, करंज, मदार (आक), सदाबहार (बेशरम बेल या आइपोमिया), लैण्टाना, धतूरा, कंटीली, कनेर, आदि के 5-10 किग्रा. फूल-पत्तियों को बारीकी से काट लें।
ऽ प्लास्टिक के दो सौ लीटर वाले ड्रम मे काटे गये पत्तियों के टुकड़ों को डाल दे फिर उसमें गाय का ताजा गोबर 5 किग्रा. गौ मूत्र 5 लीटर, छाछ (मट्ठा) 5 लीटर, बेसन 500 ग्राम, गुड़ 500 ग्राम. लहसुन 100 ग्राम, जैव उर्वरक 200-200 ग्राम, एवं उपजाऊ मिटटी 500 ग्राम मिलाकर ड्रम को पूरा पानी से भर दें।
ऽ नियमित रूप से दिन में दो बार (सुबह-शाम) लकड़ी के डण्डे से ड्रम में तरल को मिलायें तथा बोरे या जाली से ढ़ककर रख दें।
ऽ इस प्रकार उपयुक्त तापमान (30-35 डि.से.) पर तरल खाद एवं कीटनाशी 20-25 दिन में तैयार हो जाती है।
ऽ तैयार खाद एवं कीटनाशी की 10 लीटर मात्रा को 100 लीटर पानी में घोल कर फसलों पर छिड़काव करें।
ऽ इस तरल खाद एवं कीटनाशी घोल का 15-20 दिन के अन्दर कीट एवं रोग नियंत्रण हेतु उपयोग करें।
कीट एवं रोग प्रबंधन – Organic Production Management in Crops in Hindi
फसल में कीट नियंत्रण हेतु मान्यता प्राप्त जैविक संसाधन ही उपयोग में लायें। जैव कीटनाशक (मेटाराइजिम या बिवेरिया) की दो किग्रा. मात्रा व आधा किग्रा. गुड़ लेकर 15 लीटर पानी में घोल लें, और छाया में लगभग 2 दिन तक सड़ने दें। उसके बाद 3 लीटर जैविक मिश्रण को 100 लीटर पानी में घोलकर शाम के समय आवश्यकतानुसार फसल पर कीट नियंत्रण हेतु छिड़काव करें।
ऽ फसल रोग नियंत्रण हेतु मान्यता प्राप्त जैविक संसाधन ही उपयोग में लायें। जैव फफुंदीनाशक (ट्राईकाडर्मा) की 2 किग्रा. व 500 ग्राम गुड़ लेकर 15 लीटर पानी में घोलें और छाया में लगभग 2 दिन तक सड़ने दें। उसके बाद 3 लीटर जैव मिश्रण को 100 लीटर पानी में घोलकर शाम के समय आवश्यकतानुसार फसल पर रोग नियंत्रण हेतु छिड़काव करें।
जैविक उत्पादन प्रबन्धन फसलों में कैसें करें | Organic Production Management in Crops in Hindi