गुलाब की खेती सुगन्धित तेल उत्पादन के लिये करें। जिससे बंपर मुनाफा हो।

परिचय –

दमिश्क गुलाब सुगन्ध व्यवसाय में प्रयोग होने वाले गुलाब की अन्य प्रजातियों में सबसे प्रमुख स्थान रखता है। इस गुलाब को फसली या चैती गुलाब के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रजाति के फूलों में सबसे ज्यादा (0.00 प्रतिशत) और अच्छी गुणवत्ता 70-75 प्रतिशत जिरैनियोल और 25-30 प्रतिशत सिट्रनियोल का तेल निकलता है। इस प्रजाति से बहुत सारे पदार्थ जैसे.गुलाब जल, इत्र, रूह गुलाब, गुलरोहन, गुलकंद, पंखुडी, अगरबत्ती, धूपबत्ती आदि।

भूमि एवं जलवायु –

गुलाब की खेती के लिए हल्की ठण्ड वाला उत्तरी भारत का क्षेत्र बहुत ही उपयुक्त है। अच्छे जल.निकास वाली बलुई दोमट भूमि, जिसमें जैविक पदार्थ की मात्रा अधिक हो तथा पी.एच. 6 से 8 के बीच हो, गुलाब के लिए उपयुक्त है। यह विभिन्न प्रकार की जलवायु में आसानी से उगाया जा सकता है। यह उष्ण तथा उप उष्णकटिबंधीय जलवायु क्षेत्रों में पूरे वर्ष उगाया जा सकता है। पौधे की अच्छी बढ़वार एवं फूलों के लिए मध्यम जलवायु अच्छी रहती है। गेंदे के लिए उपयुक्त तापमान 15-29 डि.सें. होना चाहिए। अधिक गर्मी, ठण्ड एवं कोहरे से फसल को हानि पहुँचती है।

उपयोगी किस्में-

उत्तरी भारत के मैदानी पहाड़ी क्षेत्रों के लिए उपयोगी किस्म निम्न प्रकार हैं-

नूरजहाँ, ज्वाला (आई.एच.बी.टी..गुलाब 1) तथा हिमरोज (आई.एस.बी.टी. गुलाबी 2). इनके फूलों का औसत वजन दो पाँच ग्राम होता है तथा तेल की मात्रा 0.03 प्रतिशत से 0.06 प्रतिशत होती है।

Rose Farming
Rose Farming

भूमि एवं जलवायु –

गुलाब की खेती के लिए हल्की ठण्ड वाला उत्तरी भारत का क्षेत्र बहुत ही उपयुक्त है। अच्छे जल.निकास वाली बलुई दोमट भूमि, जिसमें जैविक पदार्थ की मात्रा अधिक हो तथा पी.एच. 6 से 8 के बीच हो, गुलाब के लिए उपयुक्त है। यह विभिन्न प्रकार की जलवायु में आसानी से उगाया जा सकता है। यह उष्ण तथा उप उष्णकटिबंधीय जलवायु क्षेत्रों में पूरे वर्ष उगाया जा सकता है। पौधे की अच्छी बढ़वार एवं फूलों के लिए मध्यम जलवायु अच्छी रहती है। गेंदे के लिए उपयुक्त तापमान 15.29 डि.सें. होना चाहिए। अधिक गर्मी, ठण्ड एवं कोहरे से फसल को हानि पहुँचती है।

पौधशाला में कलम लगाना-

इसकी खेती के लिए पहले पौधशाला में कलमों द्वारा पौधे तैयार करें। कलम लगाने का सबसे उचित समय जनवरी का प्रथम पखवाड़ा है। पौधशाला की भूमि (एक हेक्टे. में पौध लगाने हेतु 1500 वर्ग मीटर) को अच्छी प्रकार भुरभुरी बनाकर 200-250 कि.ग्राम. के हिसाब से गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद मिलाकर जुताई करें। कलम एक वर्ष पुरानी एवं पकी हुई शाखाओं से लेनी चाहिए। कलम की मोटाई पेंसिल की मोटाई से ज्यादा न हो तथा लंबाई 6 इंच होनी चाहिए। कलम का एक सिरा सपाट और दूसरा तिरछा काटा जाता है। सपाट सिरा भूमि के अंदर दबा दिया जाता है। कलमों को एक मीटर चौड़ी तथा छह इंच ऊँची क्यारियाँ बनाकर 10-12 सें.मी. के अंतर पर लगाना चाहिए। पौधशाला में कलम लगाने के तुरंत बाद सिंचाई कर देनी चाहिए।

खेतों में कलम लगाना-

खेत में कलमें लगाने के लिए 1×1 के अंतर पर 4-5 इंच गहरे गड्ढ़े बना लिए जाते हैं। पिछले वर्ष पौधशाला में लगाई गई कलमों को निकालकर इन गड्ढ़ों में लगाया जाता है। एक गड्ढ़े में 3-4 कलमें लगाई जाती हैं। कलम लगाने के बाद तुरंत सिंचाई करें। एक हेक्टे. में 40,000 पौधे लगाए जाते हैं।

छँटाई –

अच्छे फूल उत्पादन के लिए प्रतिवर्ष समय पर कटाई.छँटाई करना बहुत आवश्यक है। इसका उपयुक्त समय दिसम्बर मास के अन्तिम सप्ताह से जनवरी मास का प्रथम पखवाड़ा है। पौधों की छँटाई भूमि में लगभग आधा मीटर ऊपर से की जाती है।

सिंचाई –

खेत में नियमित रूप से सिंचाई करते रहना चाहिए। आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने से पौधों की वानस्पतिक बढ़वार अधिक होती है तथा फूलों की बढ़वार बढ़ जाती है।

जैविक पोषण प्रबंधन –

पोषण प्रबंधन हेतु भूमि की जाँच कराएँ। सामान्यतः पोषक तत्वों की आपूर्ति हेतु भूमि की तैयारी करते समय 100-150 क्विंटल गोबर की खाद या कम्पोस्ट प्रति हेक्टे का प्रयोग करें। इसके अतिरिक्त एजोस्पोरिलम, फॉस्फोबैक्टेरिया, पोटाश मोबिलाइजर प्रत्येक जैव उर्वरक को 100 कि.ग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ मिलाकर कटाई-छँटाई के बाद प्रयोग करें।

कीट प्रबंधन –

चैपा-

इसका प्रयोग प्रायः जनवरी.फरवरी में होता है। यह रस चूसता है जिससे फूलों में तेल की मात्रा कम हो जाती है।
कैटरपिलर. यह हरे रंग की सुण्डी होती है जो पत्तियों को खा जाती है तथा फूलों को खराब कर देती है।

रोकथाम-

  • समय.समय पर खरपतवार निष्कासन तथा पौधों में उचित फासला रखें।
  • नीम ऑयल 3.5 मिली. प्रति लीटर पानी या निमोली सत 5 प्रतिशत या वानस्पतिक कीटनाशक 10 प्रतिशत का कीट लगने की प्रारंभिक अवस्था में छिड़काव करें।

रोग प्रबंधन-

पौधे की शाखाएँ व तना ऊपर से काला होकर नीचे की ओर सूखना शुरु हो जाता है और धीरे-धीरे मर जाता है। इसके उपचार के लिए रोगग्रस्त भाग को काट दें और ट्राइकोडर्मा का पेस्ट बनाकर लगाएँ।

रोज रस्ट –

इस बीमारी से फूल, पत्तियाँ एवं शाखाएँ प्रभावित होती हैं तथा कलियों का विकास रुक जाता है।
गुलाब की कटाई-छँटाई करें तथा प्रभावित भाग को नष्ट कर दें।

खट्टी छाछ, हल्दी, तांबे के तार आदि से बनाए गए घोल का छिड़काव करें।

खरपतवार निष्कासन –

आवश्यकता के अनुसार निराई.गुड़ाई एवं हाथ द्वारा खरपतवार निष्कासन करें।

फूलों की तुड़ाई/पैकिंग-

दूसरे वर्ष में फूलों का उत्पादन होने लगता है तथा तीसरे साल अच्छा उत्पादन होने लगता है। जैसे ही कलियाँ खिलने लगें और उन पर पूरा रंग आ जाए तो फूलों को लंबी डण्डी के साथ चाकू से काट लें। फूलों को बिक्री के लिए गत्तों के डिब्बों में पैक करके बाजार में भेजें। फूलां से तेल, गुलाब जल आदि निकालने के लिए उचित प्रक्रिया अपनाएँ। फूल की एक या दो पंखुडियां खिल जाए तो फूल को पौधे से अलग कर दें इसके लिए तेज़ धार वाले चाक़ू या ब्लेड का इस्तेमाल करें फूल को काटने के तुरंत बाद पानी से भरे बर्तन में रख दें अब उसे कोल्ड स्टोरेज में रख दे इसका तापमान करीब 2 से 10 डिग्री तक होना चाहिए इसके बाद फूलों की ग्रेडिंग की जाती है जिसे कोल्ड स्टोरेज में ही पूर्ण किया जाता है इसी को फूलों की छटाई भी कहा जाता है।

गुलाब की खेती करके किसानों को काफी मुनाफ़ा होता है –

आपको बता दें कि इसकी खेती करीब चार महीने में फूल देना शुरू कर देती है एक एकड़ जमीन की बात करें तो लगभग 30 से 40 किलो या इससे ज्यादा भी फूल मिल जाते हैं जिनका बाज़ार भाव लगभग 50 से 70 रुपये प्रति किलो के हिसाब से होता है एक पौधे से साल में लगभग 20 फूल से ज्यादा निकलते है इस तरह साल में एक एकड़ से लगभग 200 से 300 क्विंटल फूल प्राप्त हो सकते हैं जिनकी सालाना कमाई लगभग 15 से 20 लाख तक पहुँच सकती है