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परिचय-
भारत में काजू का उत्पादन सर्वप्रथम गोआ में प्रारम्भ किया गया तथा इसके बाद उड़ीसा, छत्तीसगढ़ आदि प्रदेशों में इसकी खेती की जाने लगी।
काजू से स्वास्थ लाभ-
काजू खाने स्वास्थ लाभ – शरीर में एनर्जी लाता है तथा इसमें भरपूर मात्रा में प्रोटीन और फैट का बेहतरीन स्रोत है। खून बढ़ाने में मदद करता है। शरीर की हड्डियों को मजबूत बनाता है। इसलिए बढ़ती उम्र के बच्चों और खिलाड़ियों को इसका सेवन जरूर करना चाहिए। शरीर की पाचन शक्ति को बेहतर बनाने मदद करता है। त्वचा के लिए फायदेमंद और बालों के लिए फायदेमंद है।यह डायबिटीज के लिए फायदेमंद तथा कैंसर से बचाव के लिए फायदेमंद होता है। दांतों को मजबूत बनाएं और प्रेग्नेंसी में काजू खाने से बहुत फायदा मिलता है। काजू खाने से शरीर को ऊर्जा मिलती है।
भूमि एवं जलवायु –
यह आर्द्र उष्ण कटिबंधीय जलवायु में उगाया जाता है। फूल आने तथा फल बनने के समय शुष्क मौसम होने से इसकी पैदावार अच्छी होती है। फूल बनने के समय बादल होने से पौधों पर कीटों का अधिक प्रकोप होता है। फल बनने की प्रारम्भिक अवस्था में 39.42 डिग्री सेण्टीग्रेड तापमान होने पर इसके फल गिर जाते हैं। यह प्रायः सभी प्रकार की भूमि जैसे.रेतीली, लेटराइट मिट्टी तथा कम उपजाऊ भूमि में उगाया जा सकता है। 20 डिग्री सें.ग्रेड से कम तापमान इसके लिए उपयुक्त नहीं है। उचित पानी के निकास वाली लाल रेतीली दोमट एवं हल्की तटीय रेतीली भूमि में इसकी सर्वाधिक पैदावार होती है।
Organic Cashew Farming
उन्नतशील प्रजातियाँ –
क्षेत्रों की भूमि, जलवायु आदि को ध्यान में रखते हुए बागवानी विभाग एवं अनुसंधान केन्द्रों द्वारा अनुमोदित उन्नत प्रजातियों का चयन करें। कीट बीमारियों के प्रतिरोधी या सहनशील प्रजातियों का चुनाव करें।
प्रजनन/संवर्धन-
इसका प्रजनन एयर लेयर और सॉफ्टवुड ग्राफ्टिंग विधियों द्वारा उगाया जाता है। वानस्पतिक प्रजनन की मुख्य एवं लाभदायक विधि सॉफ्टवुड ग्राफ्टिंग है।
भूमि की तैयारी-
खेत को हल एवं हेरों द्वारा जोत कर समतल कर लें। सिंचाई एवं पानी के निकास को सुगम बनाने हेतु खेत में थोड़ा ढ़लान बनाएं ताकि भूमि में पानी खड़ा न हो सके।
गड्ढे तैयार करना –
सॉफ्टवुड ग्राफ्टिंग द्वारा तैयार की गई पौध 5.6 माह में तैयार हो जाती है। इसके लिए जून.जुलाई माह में भूमि में 0.5×0.5 x.0.5 मीटर. आकार के गड्ढे खोद लें। गड्ढे के ऊपर की मिट्टी में 10.15 कि.ग्रा. कम्पोस्ट या सड़ी गोबर की खाद (50 ग्राम ट्राईकोडर्मा पाउडर को गोबर की खाद में मिलाकर) तथा एक कि.ग्रा. नीम की खली मिलाकर गड्ढ़े को अच्छी तरह जमीन से कुछ ऊँचाई तक भर दें।
पौध रोपण –
पौध रोपण का उचित समय जून.जुलाई है। पौधों का फासला कम उपजाऊ ज़मीन में 7.5 मीटर तथा उपजाऊ भूमि एवं समुद्र.तटीय रेतीली भूमि में 10 मीटर रखना चाहिए। ढ़ालू भूमि में पंक्तियों का फासला 10.15 मीटर तथा पौधों का फासला 6.8 मीटर रखा जाता है। सघन रोपण हेतु 5ग4 मीटर का फासला रखकर 500 पौधे प्रति हेक्टेयर लगाए जा सकते हैं। पौधों को रोपने से पूर्व पॉलीथीन बैग को हटा दें। पौधों को गड्ढ़े के बीच में लगाएँ तथा ग्राफ्ट वाले हिस्से को ज़मीन से 2.5.3 सेमी. ऊँचाई पर रखें तथा उसको लकड़ी आदि गाड़कर सहारा दें।
जैविक पोषण प्रबंधन-
यह प्रायः कम उपजाऊ भूमि में जिनमें पानी संरक्षण की क्षमता कम होती है, में उगाया जाता है। अतः इसमें पोषक तत्त्वों की पूर्ति करने हेतु एकीकृत पोषण प्रबंधन अपनाना चाहिए। इसके लिए हरी खाद, दाल वाली फसलें, फसलों के अवशेष, जैविक खाद एवं जैव उवर्रकों का प्रयोग करना चाहिए। काजू में दलहन फसलों को अन्तः फसल के रूप में उगाएँ तथा इनको कटाई के बाद खेत में जुताई करके मिला दें। इससे नाइट्रोजन तथा मुख्य एवं सूक्ष्म तत्वों की अधिकतम पूर्ति हो जाती है। बागान में उपलब्ध जैविक पदार्थों को कम्पोस्ट या वर्मीकमपोस्ट के माध्यम से देना बहुत लाभदायक है। पौधों की गिरी हुई पत्तियाँ, फल, टहनियाँ आदि अवशेषों को कम्पोस्ट या वर्मीकमपोस्ट के रूप में पोषण प्रबंधन हेतु प्रयोग करें। इसके अतिरिक्त आवश्यकतानुसार जैविक खाद एवं जैव उर्वरकों जैसे. गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, लकड़ी की राख, नीम की खली, वर्मीवाश, जीवामृत आदि का प्रयोग करें। खाद की निर्धारित मात्रा को पौधे के थालों में डालकर भूमि में मिला दें तथा सिंचाई करें। एक व्यस्क पौधे के लिए 50.60 कि.ग्रा. गोबर की खाद या 20 कि.ग्रा. वर्मीकम्पोस्ट प्रतिवर्ष देनी चाहिए। जैव उवर्रक ऐजेटोबेक्टर और ऐजोएस्पिरिलम 50.60 ग्रा. प्रति पौधा गोबर की खाद में मिलाकर पूरक तत्वों के रूप में प्रयोग करना चाहिए। जैविक खाद का प्रयोग फसल में तीन बार.मानसून से पूर्व, मानसून के बाद एवं फल लगने के बाद करना चाहिए।
गोबर की खाद/कम्पोस्ट खाद में जैव उर्वरकों को मिलाकर पौधे के चारों तरफ बिखेर कर मिट्टी में मिलाएँ। पौधों की वृद्धि एवं फूलों.फलों के उचित विकास हेतु वर्मीवाश 5 प्रतिशत या जीवामृत 10 प्रतिशत या पंचगव्य 3 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।
सिंचाई-
काजू शुष्क क्षेत्रों में उगाया जाता है तथा सिंचाई की आवश्यकता कम पड़ती है। नए रोपित पौधों में गर्मी में 7.8 दिन के बाद सिंचाई करें। वयस्क पौधों में फल बनने के समय सिंचाई करें। फूल बनने से पूर्व सिंचाई रोक दें क्योंकि इसका फूल बनने पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
निराई.गुडाई/खरपतवार प्रबंधन –
तने के चारां तरफ की 2 मीटर भूमि में निकाई.गुड़ाई करें। निकाले हुए खरपतवारों को पलवार (मल्चिंग) के रूप में प्रयोग करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए जुताई.खुदाई, मिट्टी चढ़ाना, मल्चिंग आदि शस्य 125
क्रियाओं को अपनाएँ। अनानास, अरहर, लोबिया, मूँगफली, अदरक आदि को अंतःफसल के रूप में उगाएँ जिससे पौधे को पोषक तत्व मिलने के साथ.साथ खरपतवार की रोकथाम भी होगी।
कटाई.छँटाई –
पौधे की नियंत्रित वनस्पतिक वृद्धि आवश्यक है। पौध रोपण के बाद पौधे की छटाई करें ताकि तने पर 70.80 सें.मी. ऊँचाई के बाद शाखाएँ निकलें। छटाई.कटाई करने से पौधों में अधिक शाखाएँ बनती हैं तथा फल अधिक मात्रा में लगते हैं। पौधे का सही आकार रखने के लिए बड़े पेड़ों में सघन शूट/शाखाओं की समय.समय पर कटाई.छँटाई करते रहना आवश्यक है। फलों की तुड़ाई के बाद कटाई.छँटाई करें।
कीट प्रबंधन-
काजू के कुछ मुख्य हानिकारक कीट एवं उनकी रोकथाम के उपाय निम्न प्रकार हैं.
Tea Mosquito Bug (TMB) यह काजू का सबसे अधिक हानिकारक कीट है। फसल पर बौर/फूल आने व पेनिकल बनने के समय पर इसका प्रकोप होता है। पुष्प.चक्र का सूखना तथा तने एवं शाखाओं का ऊपरी सिरे से नीचे की ओर सूखना Die back इसके प्रमुख लक्षण हैं।
रोकथाम –
- खरपतवार निष्कासन करके बागों की साफ.सफाई रखें। प्रभावित पत्तियाँ, फलों आदि को काटकर नष्ट कर दें। पौधों की कटाई.छँटाई करके उचित फासला बनाए रखें।
- कीट लगने की प्रारम्भिक अवस्था में निमोली सत.5 प्रतिशत, वनस्पति कीटनाशक.10 प्रतिशत घोल तथा नीम का तेल 5 एम.एल. प्रति लीटर का छिड़काव करें।
- अधिक प्रकोप होने पर जैव कीटनाशक वरटीसिलियम या मैटाराइजियम (5.10 ग्रा. प्रति लीटर) पानी का छिड़काव करें।
- Die back की रोकथाम हेतु कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या बोरडेक्स मिक्चर.1 प्रतिशत का छिड़काव करें।
जड़ एवं तना छेदक-
यह एक हानिकारक कीट है जो पेड़ों को नष्ट कर देता है। इसकी लारवी तने के आधार पर छेद करके नुकसान पहुँचाती हैं। पत्तियों का पीला पड़ना, शाखाओं का सूखना, तने में छेद एवं उनसे गंध आदि निकलना इसके मुख्य लक्षण हैं।
रोकथाम के उपाय-
- बागों की साफ.सफाई, सूखी और सघन शाखाओं तथा मृत पौधों को नष्ट करना।
- पौधों की जड़ों को खुला न छोड़कर मिट्टी से ढ़ककर रखना।
- तने की एक मीटर की ऊँचाई तक दो.तीन बार मिट्टी और गोबर का लेप या 5 प्रतिशत नीम ऑयल का छिड़काव करना।
- जड़ों के आसपास लकड़ी की राख (5.10 कि.ग्रा.) तथा प्रयोग की हुई चाय की पत्ती प्रति पौधा डालना।
अन्य कीट -रस चूसने वाले कीट जैसे.चेपा, थ्रिप्स, मिलीबग आदि की रोकथाम हेतु लहसुन का सत.2 प्रतिशत, अग्नि.अस्त्र (3.5 प्रतिशत) तरल कीटनाशक (10 प्रतिशत), नीम ऑयल (5 एम.एल. प्रति लीटर) का छिड़काव करें।
बीमारियाँ-
ऐनथै्रक्नोज.इस बीमारी से कोमल मुलायम पत्तियाँ, पुष्प.चक्र एवं फल प्रभावित होते हैं। पत्तियों तथा शाखाओं पर भूरे रंग के गोल धब्बे बन जाते हैं जो बाद में फैलकर आपस में मिल जाते हैं। इससे पत्तियाँ सूखकर गिर जाती हैं तथा तने ऊपर से नीचे की ओर सूख जाते हैं। पूरा पुष्प.चक्र पीला हो जाता है तथा सूखकर गिर जाता है।
प्रबंधन-
बागों की सफाई, खरपतवार नियंत्रण एवं बीमारी से प्रभावित पौधे के भागों को नष्ट करना।
रोकथाम हेतु बोरडेक्स मिक्चर.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव।
शाखाओं पर सफेद धब्बे बन जाते हैं तथा शाखाएँ ऊपर से नीचे की तरफ सूखने लगती हैं।
रोकथाम.
- प्रभावित भाग को काटकर बोरडेक्स पेस्ट लगाएँ।
- मई.जून एवं अक्टूबर माह में बोरडेक्स मिश्रण.1 प्रतिशत का छिड़काव करें।
कुछ अन्य बीमारियों जैसे.गमोसिस, पत्तियों का झुलसा एवं सूटीमोल्ड आदि बीमारियों को रोकने हेतु एक प्रतिशत बोरडेक्स मिक्चर का छिड़काव करें।
फलों की तुड़ाई/ग्रेडिंग.पैकिंग प्रसंस्करण-
काजू की तुड़ाई प्रायः फरवरी से मई तक की जाती है। काजू के एपल को काट दिया जाता है तथा इसकी गिरी को दो.तीन दिन तक सुखाते हैं ताकि इसमें 9 प्रतिशत नमी रह जाए। सूखी हुई गिरियों का 2 वर्ष तक भण्डारण किया जा सकता है। कास्टिक शैल ऑयल और एक्रिड फ्यूम को निकालने हेतु गिरियों को भूना जाता है। भूनने से पहले गिरियों को पानी में भिगो लेना चाहिए ताकि इसका छिलका टूट जाए। काजू के प्रसंस्करण में सफाई, भूनना, छिलके उतारना, सुखाना, छीलना आदि मुख्य क्रियाएँ हैं। गिरियों को आकार के आधार पर छाँटकर ग्रेडिंग करते हैं तथा पैकिंग करने से पहले 3 प्रतिशत की नमी रहने तक सुखाते हैं।
काजू खेत से एक हेक्टेयर में होने वाली कमाई –
काजू के पेड़ एक बार लगा देने से कई वर्षों तक पैदावार ले सकते है। पौधे लगाने में समय खर्च आता है एक हेक्टेयर में काजू के 500 पेड़ लगते हैं एक पेड़ से 20 किलो काजू मिलता है इससे एक हेक्टेयर में लगभग 10 टन काजू की पैदावार होती है इसके बाद इसकी प्रोसेसिंग में खर्च आता है फिर बाजार में काजू 700-800 रुपये प्रति किलो ग्राम बिकता है।