एलोवेरा (घृतकुमारी) की खेतीं स्वास्थ और मुनाफे लिये अच्छा सौदा है। Aloevera farming is a good for health and profit in hindi

परिचय एवं महत्व –

एलोवेरा (घृतकुमारी) यह भारतवर्ष में सर्वत्र प्राप्त होती है। प्रायः इसको लोग घरों के अंदर गमलों अदि में लगा लेते हैं। यह पचने में भारी, स्निग्ध, पिच्छिल कटु, शीतल और विपाक में तिक्त है। घुतकुमारी दस्तवार, शीतल, तिक्त, नेत्रों के लिए हितकारी, मधुर, पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक और वात, विष, गुल्म, प्लीहा, यकृत, अंडवृद्धि कफ, ज्वर, ग्रन्थि, अग्निदाह, विस्फोटक, पित्त, रूधिर-विकार तथा त्वचा रोगनाशक है। अल्पमात्रा में यह दीपन, पाचन भेदन, यकृत उत्तेजक तथा बड़ी मात्रा में विरेचन और कृमिध्न है। यह स्निग्ध, पिपिच्छल एवं उष्ण होने के कारण गर्भाश्यगत रक्त संवहन को बढ़ा देता है तथा गर्भाशय की पेशियों को उत्तेजित कर उनका संकोचन बढ़ा देता है। इस कारण यह आर्तप्रजनन और गर्भस्त्रावर है।

यह औषधीय में भी प्रयोग मे लाये जाते है-

1. तिल्ली –

घृतकुमारी (एलोवेरा )के गुदे पर सुहागा बुरक कर खिलाने से तिल्ली कट जाता है।

2. गठियाँ –

इसका कोमल गूदा नियमित रूप से 10 ग्राम की मात्रा में प्रातः सायं खाने से गठिया रोग मिटती है।

3. कटिपीड़ा-

गेहूँ का आटा, घी और एलोवेरा का गूदा इतना होना चाहिए जितना आटे में गूथने के लिए काफी हो, आटे को गूदे में गुथकर रोटी बना ले, इस रोटी का चूर्ण बनाकर शक्कर और घी मिलाकर लड्डू बनाकर खाने से कमर की बादी मिटती है। कमर की पीड़ा मिटती है।
इसके पत्तों के दोनों ओर के कांटे अच्छी प्रकार साफ कर छोटे-छोटे टुकड़े काट ले, 5 किलो टुकड़े में आधा किलो नमक डालकर मुँह बन्दकर 2-3 दिन धूप में रखें।

बीच-बीच में हिलाते रहें। तीन दिन के बाद इसमें 100 ग्रा. हल्दी, 100 ग्रा. धनियाँ, 100 ग्राम लाल मिर्च, 100 ग्राम सफेद जीना, 50 ग्राम . शूंठी, 60 ग्राम भुनी हींग, 300 ग्राम अजवायन, 50 ग्राम सुहागा, 50 ग्राम लौंग, 60 ग्राम पीपल, 50 ग्राम चीनी दाल, 100 ग्राम कालाजीरा, 50 ग्राम . इलायची, 300 ग्राम राई को महीन पीस कर डालें।

4. चर्मरोग –

एलोवेरा के रस की मालिश करने से चर्मरोग में आराम मिलता है। धूप से जली हुई त्वचा पर इसके रस को लेप करने से वह ठीक हो जाती है।

5. दांत का हिलना व दांत दर्द –

एलोवेरा की छिलका दांत में रगड़ने तथा इसे खाने से दंतविकारों में लाभ मिलता है।

6. चोट लगने पर –

चोट वाले स्थान को साफ करके वहाँ एलोवेरा लगाने से घाव पकते नहीं है।

7. खांसी-

एलोवेरा का रस आधा चम्मच काली मिर्च, एक चौथाई भाग सोंठ तथा एक चौथाई भाग शहद के साथ मिलाकर लेने से खांसी से राहत मिलती है।

8.कब्ज –

एलोवेरा को डेढ़ इंच टुकड़ा सुबह-शाम लेने से कब्ज दूर होती है।

9.यकृत सूजन –

नामक एवं एलोवेरा का रस पीने से यकृत सूजन देर होती है। नवीन अनुसंधानों द्वारा यह सिद्ध हुआ है कि एलोवेरा के ताजे पत्तों का गूदा एक्स किरणों के विकिरण द्वारा उत्पन्न हानिकारक प्रभावों को दूर करने में लाभदायक है। इसके पत्तों में क्रिस्टलीय ग्लूकोसाइड बारबालोन एवं एलोन, आइसोबारवालोन, इमेडिन आदि तत्व पाए जाते है। इसके पत्तों से एक विशेष विधि द्वारा एलुया या कुमारीसार बनाया जाता है जिसकी बाजार में काफी मांग है।

भूमि-

एलोवेरा की खेती असिंचित तथा सिंचित दोनों तरह की ही भूमि पर की जा सकती है, परन्तु इसकी खेती सदैव असिंचित जमीन पर ही की जानी चाहिए। जिस जमीन पर इसकी खेती करनी हो वहाँ पानी भरा नहीं रहना चाहिए तथा पानी का निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। इसकी जड़ भूमि में ज्यादा गहरी नहीं जाती है।

रोपण –

एलोवेरा की बिजाई इसके कंदो या ट्यूबर्स से की जाती हैं। इसके छोटे पौधों का रोपण वर्षाकाल अर्थात जुलाई-अगस्त माह में किया जाता है। इसके लिए पुराने पौधों की जड़ों के पास की कुछ छोटे पौधे निकलने लगते हैं। वर्षाकाल में इन्हीं छोटे पौधों की जड़ सहित निकालकर बड़े खेत में लगा दिया जाता है तथा यही इनका बीज कहलाता है।

पौधों की संख्या-

एक मीटर में इसकी दो लाइनें लगेंगी तथा फिर एक मीटर जगह खाली छोड़कर पुनः एक मीटर में लाइनें लगेंगी। इस प्रकार एक एकड़ में एलोवेरा के 14000 से 16000 तक पौधे लगेंगे। प्रत्येक खण्ड के बाद एक मीटर जगह खरपतवार निकालने तथा पत्तियों को काटने के लिये रखते है।

उर्वरक-

अच्छी पैदावार लेने हेतु खेत की तैयारी करते समय 50-100 क्टि. गोबर की खाद या 30-40 क्टि. नाडेप कम्पोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग करें। निराई-गुड़ाई करते समय 1-2 से कि.ग्रा. जैविक खाद (बायोफर्टीलाईजर्स) का मिश्रण 2 कि. गुड. एवं
1 से 2 कि्. कम्पोस्ट खाद के साथ 7-10 दिन सड़ाकर उपयोग करने से पैदावार में बढ़ोतरी होगी एवं उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार आयेगा।

खरपतावर नियंत्रण –

प्रत्येक माह में एलोवेरा के अतिरिक्त अन्य छोटे-छोटे अवांछित पौधों को, जिन्हें खरपतवार के रूप में जाना जाता है, निकालते रहना चाहिए।

Aloevera farming
Aloevera farming

कीट एवं रोग नियंत्रण –

एलोवेरा की फसल पर कोई विशेष कीटों का प्रकोप नहीं होता है। लेकिन, फसल में पानी पड़ा होने पर पदगलन का प्रकोप हो जाता है। अतः पानी के निकास का उचित प्रबंधन करें और ट्राइकोडर्मा एवं सूडोमोनास के मिश्रण 1-2 कि.लो. ग्रा. प्रति हेक्. एवं 2 कि.ग्रा. गुड़ को 1-2 कि्. कम्पोस्ट खाद के साथ 7-10 दिन तक सड़ाकर खेते में बुरक कर जड़ों के पास मिट्टी में मिला दें।

कटाई-

पौधे लगाने के एक वर्ष बाद हर तीन माह में प्रत्येक पौधे की 3-4 पत्तियों को छोड़कर शेष सभी पत्तियों को तेज धारदार हंसिये से काट लेना चाहिए।

कुल उत्पादन-

इस प्रकार की कृषि क्रिया से वर्ष भर में प्रति एकड़ एलोवेरा के 5000 किलो ताजा पत्ते प्राप्त होते हैं। इन पत्तों को गीला भी आयुर्वेदिक दवाईयाँ बनाने वाली कम्पनियों तथा प्रसाधन सामग्री निर्माताओं को बेचा जा सकता हैं तथा इन पत्तों से मुसब्बर अथवा एलुआसार बनाकर भी इन्हें बेचा जा सकता है।
इस प्रकार बेकार पड़ी भूमि पर बिना किसी विशेष खर्च के एलोवेरा की खेती से पर्याप्त लाभ कमाया जा सकता है। वर्तमान समय में आयुर्वेदिक दवा निर्मातओं तथा सौन्दर्य प्रसाधन निर्माताओं द्वारा एलोवेरा से अनेकों उत्पाद बनाये जाने के कारण इसका बाजार तेजी से बढ़ता जा रहा है। यद्यपि वर्तमान में इसका ट्रांसपोर्टेशन थोड़ा मुश्किल है क्योंकि इसके प्रक्रियाकरण की इकाईयां दिल्ली तथा बैंगलोर में ही स्थित है। परन्तु शीघ्र ही इसके प्रक्रियाकरण से संबंधित इकाईयां स्थानीय तौर पर स्थापित हो जाने पर इसकी मांग स्थानीय तौर पर काफी हो जायेगी।

एलोवेरा की खेती के विशेष लाभ

1. इसकी खेती के लिए खाद, कीटनाशक आदि की कोई आवश्यकता नहीं होती है।
2. कोई जानवर इसको नहीं खाता अतः इसकी रखवाली की आवश्यकता नहीं होती है।
3. यह फसल वर्षपर्यन्त आमदनी देती है।
4. इस पर आधारित एलुवा बनाने व सूखा पाउडर बनाने वाले उद्योगों की स्थापना की जा सकती है।
5. इसके ड्राई पाउडर व जैल की विश्व बाजार में व्यापक मांग होने के कारण इससे विदेशी मुद्रा अर्जित की जा सकती है।

एलोवेरा (घृतकुमारी) की खेतीं स्वास्थ और मुनाफे लिये अच्छा सौदा है। Aloevera farming is a good for health and profit in hindi

https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A5%83%E0%A4%A4_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80

एलोवेरा (घृतकुमारी) की खेतीं स्वास्थ और मुनाफे लिये अच्छा सौदा है। Aloevera farming is a good for health and profit in hindi