अरबी की जैविक खेती कैसे करें। उन्तशील किस्में जाने

अरबी एक कन्द वाली फसल है। इसमें स्टार्च अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके कन्द एवं पत्तियां सब्जी बनाने में प्रयोग किये जाते हैं। आर्युवैदिक चीजें बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है। अरबी की जैविक खेती करने के लिए आपको कुछ बुनियादी जानकारी और कदमों की आवश्यकता होती है। यहां आपको अरबी की जैविक खेती के लिए कुछ महत्वपूर्ण तरीके मिलेंगे –

अरबी खाने से स्वास्थ्य लाभ –

अरबी खाने इसमें कई स्वास्थ्य में लाभ हो सकते हैं। यहां कुछ लाभ बताए जा रहे हैं जो अरबी की सब्जी खाने से हो सकते हैं –

पोषण – अरबी में विटामिन्स, मिनरल्स, फाइबर, और अन्य पोषण तत्व होते हैंए जो आपके शारीरिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।
वजन नियंत्रण अरबी में कम फैट और कैलोरी होती है, जिससे यह एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए वजन नियंत्रण में मदद कर सकती है।
डायबिटीज कंट्रोल- अरबी का सेवन अपशिष्ट रूप से ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में मदद कर सकता है।
आंत का स्वास्थ्य-अरबी में फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जो आंतों को स्वस्थ रखने में मदद कर सकती है और कब्ज से राहत प्रदान कर सकती है।
हड्डियों का स्वास्थ्य-अरबी में कैल्शियम, मैग्नीशियम, और विटामिन की अच्छी मात्रा होती है, जो हड्डियों को मजबूती प्रदान कर सकती है।
हृदय स्वास्थ्य-अरबी में पॉटैशियम की अच्छी मात्रा होती हैए जो हृदय स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकती है।
विटामिन से भरपूर- अरबी विटामिन सी, विटामिन बी.कॉम्प्लेक्सए और विटामिन की अच्छी स्रोत हो सकती हैए जो आपके शरीर के लिए आवश्यक होते हैं।

भूमि एवं जलवायु –

यह गर्म और आर्द्र जलवायु में पैदा की जाने वाली फसल है। जहाँ पर पर्याप्त पानी की सुविधा हो अरबी की खेती के लिए उत्तम रहती है। यह कई प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती है। लेकिन पर्याप्त जीवांष वाली गहरी रेतीली दोमट मिट्टी जिसमें जल निकास की अच्छी सुविधा हो, इसके लिए सर्वोत्तम है। कम उपजाऊ व कम नमी वाली भूमि में इसकी उपज कम होती है। इसके लिए सामान्य पी.एच. 5.5.7.0 होना चाहिए।

Organic Farming Colocasia
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उन्नशील किस्में –

क्षेत्रों की भूमि, जलवायु आदि को ध्यान में रखते हुए कृषि/बागवानी विभाग एवं अनुसंधान केन्द्रों द्वारा अनुमोदित अरबी की उन्नत प्रजातियों का चयन करें। किसानों द्वारा प्रायः अरबी की स्थानीय किस्मों की बुआई की जाती है। अरबी की मुख्य किस्मों में नरेन्द्र अरबी.1 व नरेन्द्र अरबी.2, श्री पल्लवी, श्री लक्ष्मी, एन.डी.सी..2 आदि हैं।

बीज की मात्रा एवं बुआई का समय  –

अरबी की बुआई के लिए 750 से 1000 कि.ग्रा. मध्यम आकार वाला अंकुरित बीज एक हेक्टे. क्षेत्र में बिजाई के लिए पर्याप्त होता है। अरबी की बुआई वर्ष में दो बार फरवरी.मार्च तथा जून-जुलाई में की जाती है। बीज जनित रोग से बचाव के लिए अरबी के बीज को ट्राईकोड्रर्मा/स्यूडोमानास 5 प्रतिशत घोल अथवा बीजामृत में 30 मिनट तक डुबो कर बुआई करनी चाहिए। बीज की बुआई तैयार खेत में लाईन से लाईन 45-60 सेमी. व बीज से बीज 20-30 सेमी. की दूरी पर एवं 6-7 सेमी. गहराई पर की जानी चाहिए।

सिंचाई –

अरबी में लगातार हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई, रोपाई के तुरन्त बाद करें ताकि कंदों का जमाव अच्छी प्रकार हो सके। गर्मी में 7-8 दिन बाद सिंचाई करते रहने चाहिए। कटाई से 3-4 सप्ताह पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।

खाद एवं जैविक उर्वरक –

खेत तैयार करते समय एक हेक्टे. क्षेत्र में 100-120 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद अथवा 60-70 क्विंटल नादेप कम्पोस्ट मिला देनी चाहिए। एजेटोबेक्टर पी.एस.बी., पोटाश उपलब्ध कराने वाले प्रत्येक जैव उर्वरक की 3-4 कि.ग्रा. मात्रा को 150-200 कि.ग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ मिलाकर खेत में प्रयोग करें। अरबी से अधिक पैदावार लेने के लिए मिट्टी चढ़ाते समय नादेप कम्पोस्ट/वर्मी कम्पोस्ट 83 के बारीक मिश्रण को 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टे. की दर से बुरककर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए।  हल्की.हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए। जिससे खेत में बराबर नमी बनी रहे। फसल पर जीवामृत तथा वेस्ट डिकम्पोजर के 500 लीटर घोल को सिंचाई के साथ 2.3 बार प्रयोग करने से उपज में बढ़ोतरी होती है।

निकाई-गुड़ाई एवं खरपतवार प्रबंधन –

प्रारम्भिक अवस्था मेंं बुआई के 30-35 दिन बाद निराई-गुड़ाई करना आवश्यकता होता है। आवश्कतानुसार निराई-गुड़ाई करने से खरपतवारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इसमें एक या दो बार मिट्टी चढ़ाने से कंदों का विकास अच्छा होता है

रोग प्रबंधन –

अरबी में फफूंदी के कारण पत्तियों पर लगने वाले झुलसा रोग का प्रकोप जुलाई.अगस्त माह में होता है। पहले पत्तियों पर छोटे पीले भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं और बाद में बडे़ होकर पत्तियां पर फैल जाते हैं तथा पत्तियां सूख जाती हैं।

रोगों की रोकथाम हेतु –

अवरोधी किस्मों के स्वस्थ्य बीज का चुनाव, खरपतवार निष्कासन, ट्राइकोडर्मा/स्यूडोमोनास द्वारा बीज एवं भूमि शोधन, खट्टी छाछ फफूंदीनाषक एवं लकड़ी की राख (12 कि.ग्रा. राख को 250 लीटर पानी में मिलाकर) का छिड़काव करें।

कीट-प्रबंधन-

अरबी की फसल में मुख्यतः रस चूसने वाले कीड़े माहू कीट तथा स्पाइडर माइट का प्रकोप होता है। कीटों के प्रबंधन के लिए पीले चिप-चिपे ट्रेप लगाएं, नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र/अग्नि-अस्त्र/नीम गुठली पाउडर के घोल का छिड़काव करें।

फसल की खुदाई –

अरबी की जड़ों की खुदाई कन्दों के आकार, किस्म, भूमि की उर्वरा.शक्ति एवं जलवायु पर निर्भर करती है। आमतौर पर अरबी बुआई के लगभग 120-150 दिन में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। पत्तियाँ सूखने पर निष्चित तौर पर फसल की खुदाई आरम्भ कर देनी चाहिए।

अरबी का भण्डारण –

खुदाई के उपरान्त कन्दों को ऐसे कमरे में रखना चाहिए। जहाँ पर कम तापक्रम के साथ शुद्ध हवा का संचार होता रहे। कन्दों को 2-3 दिन के अन्तराल पर उलट-पुलट करने से कन्दों में सड़न कम होती है तथा मिट्टी झड़ने के साथ.साथ हवा का संचार होता रहता है। ऐसा करने से कन्द काफी समय तक सुरक्षित बने रहते हैं। जैसे ही बाजार में अरबी के भाव में तेजी आए तो उसे तुरन्त बाजार में बिक्री के लिए भेज देना चाहिए।